
हरियाणा में सरसों की फसल पर मौसम की मार से इस बार कई तरह की बीमारियां देखने को मिल रही हैं. चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बलदेव राज काम्बोज ने किसानों को चेताया है कि सरसों में जड़ गलन, फुलिया और उखेड़ा जैसी समस्याओं के लक्षण दिखाई दे रहे हैं, इसलिए समय रहते फसल की निगरानी और छिड़काव करें. उन्होंने बताया कि इस वर्ष अत्यधिक वर्षा और अधिक नमी के कारण सरसों की बुवाई अनुकूल परिस्थितियों में नहीं हो पाई. प्रो. काम्बोज ने कहा कि किसान देरी से बुवाई से बचने के लिए कम तैयार खेत में फसल बोने को मजबूर हुए हैं, जिससे सूक्ष्म जलवायु परिस्थितियां बदल गईं और बीमारियों का खतरा बढ़ गया है.
उन्होंने कहा कि जिन किसानों ने बीज उपचार नहीं किया था, उनके खेतों में इन रोगों का प्रभाव अधिक देखा जा रहा है. हालांकि, इस वर्ष तापमान कम रहने से पेंटेड बग (चितकबरा कीट) की समस्या नहीं है, लेकिन कई किसान पुराने अनुभव के आधार पर कीटनाशक छिड़काव कर रहे हैं. उन्होंने सलाह दी कि इस अवस्था में कीटनाशक का इस्तेमाल न करें.
विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने बताया कि जड़ गलन रोग मुख्य रूप से फ्यूजेरियम, राइजोक्टोनिया और स्क्लेरोटियम फफूंद के कारण होता है. इसमें बीजपत्ती अवस्था पर पौधे सूखने लगते हैं और जड़ों में सफेद फफूंद दिखाई देती है. उन्होंने बताया कि इस अवस्था में कार्बेन्डाजिम का 0.1 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करें और जरूरत पड़ने पर 15 दिन बाद दोहराएं.
डॉ. गर्ग ने आगे बताया कि पत्तियों के नीचे सफेद फफूंद जमना फुलिया रोग का लक्षण है. इसमें पत्तियां पीली होकर सूखने लगती हैं. इस स्थिति में मैंकोजेब (डाइथेन एम-45) या मेटलैक्सिल + मैंकोजेब (4% + 64%) का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें. अगर फसल में जड़ गलन और पत्तियों पर धब्बे दोनों दिखाई दें तो कार्बेन्डाजिम 0.1 प्रतिशत और मैंकोजेब 0.25 प्रतिशत की दर से टैंक मिश्रण बनाकर छिड़काव करें.
वहीं, तिलहन अनुभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राम अवतार ने बताया कि सिंचाई के बाद पौधों का मुरझाना और फसल की कमजोरी अक्सर खेत में लंबे समय तक पानी जमा रहने से होती है. किसानों को हल्की सिंचाई करने और अधिक नमी की स्थिति में पहली सिंचाई 10 दिन देरी से करने की सलाह दी गई है.
पादप रोग विशेषज्ञ डॉ. राकेश पूनियां ने कहा कि जिन खेतों में पौधों की शक्ति में कमी और पत्तियों के मुरझाने के लक्षण दिख रहे हैं, वहां कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी एक ग्राम और स्टेप्टोसाइक्लीन 0.3 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करें.
इस मौके पर विश्वविद्यालय के फार्म निदेशक डॉ. सुरेंद्र सिंह धनखड़, डॉ. सुरेंद्र यादव, डॉ. संदीप आर्य, डॉ. नीरज कुमार और डॉ. राजबीर भी मौजूद रहे. कुलपति प्रो. काम्बोज ने कहा कि इस वर्ष विश्वविद्यालय ने किसानों को उपचारित बीज उपलब्ध कराया था, जिससे रोगों का असर कम देखने को मिला है. उन्होंने किसानों से अपील की कि वे वैज्ञानिक सलाह का पालन करें और समय-समय पर फसल की जांच करते रहें.