बस्तर में काली म‍िर्च की खेती को सरकार कर चुकी थी खार‍िज, क‍िसानों ने फसल उगा कर जगाई उम्मीद

बस्तर में काली म‍िर्च की खेती को सरकार कर चुकी थी खार‍िज, क‍िसानों ने फसल उगा कर जगाई उम्मीद

वन विभाग का समर्थन मिलता तो बस्तर आज केरल की तरह काली मिर्च के लिए जाना जाता. विभाग के शुरुआती प्रयास अच्छे रहे, लेकिन बाद में प्रोत्साहन में कमी देखी गई. इससे बस्तर और आसपास के इलाकों में काली मिर्च की खेती सफल नहीं हो पाई. हालांकि कुछ किसानों की मेहनत ने अभी भी इसकी खेती को जिंदा रखा है. इससे वे अच्छी कमाई भी प्राप्त कर रहे हैं.

काली मिर्च की खेती करने वाले किसान डॉ राजाराम त्रिपाठीकाली मिर्च की खेती करने वाले किसान डॉ राजाराम त्रिपाठी
क‍िसान तक
  • जगदलपुर/बस्तर,
  • Dec 15, 2022,
  • Updated Dec 15, 2022, 2:59 PM IST

काली मिर्च की खेती दक्षिण के राज्यों में ही नहीं होती. छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी इसका प्रयोग हो चुका है. हालांकि यह प्रयोग उस पैमाने पर कामयाबी नहीं पा सका जितने की उम्मीद थी. इसके बारे में कहा जाता है कि वन विभाग की अनदेखी से काली मिर्च की खेती सफल नहीं हो सकी. अगर कोशिश पूरे मन से होती तो नक्सल प्रभावित बस्तर का नाम केरल की तरह काली मिर्च के लिए लिया जाता. विन विभाग का नाम इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि वनों में ही काली मिर्च को उगाने का काम शुरू किया गया था. वन में साल जैसे पेड़ों पर काली मिर्च की लताओं को चढ़ा कर इसकी खेती शुरू की गई थी. बस्तर के किसानों को कहना है कि वन विभाग के प्रयास मुकम्मल होते तो आज 20-25 किसान ही नहीं, बल्कि बड़ी तादाद में लोग इसकी खेती करते और अच्छा मुनाफा कमाते. 

अब जान लेते हैं कि बस्तर और कोंडागांव जिले में काली मिर्च की खेती परवान क्यों नहीं चढ़ सकी. वजह कई बताई जाती है जिनमें एक बात सबसे अहम है कि विभाग ने ऐसे समय में पौधों का वितरण और रोपण करवाया जब इसका समय ही नहीं था. इससे पौधे सूख गए और इसे असफल करार दे दिया गया. बस्तर में काली मिर्च की फसल के लिए अनुकूल मौसम और परिस्थिथियां मौजूद हैं. इसके बावजूद यहां के किसानों को जागरूक करने में शासन-प्रशासन विफल रहा. इस बीच कुछ किसानों ने अपने दम पर काली मिर्च की खेती को आगे बढ़ाया और वे मेहनत करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. हालांकि यह संख्या बहुत अधिक नहीं है, लेकिन इन किसानों के प्रयास बड़े हैं.

वन विभाग की मुहिम

कोंडागांव जिले के किसानों को करीब 5 साल पहले काली मिर्च के करीब 1000 पौधे सब्सिडी में दिए गए थे. इसे लगाने का सही समय मॉनसून से पूर्व अर्थात जून या जुलाई होता है. लेकिन पौधों का वितरण और रोपण अक्टूबर-नवंबर में किया गया, जिससे पौधे सूख गए. इसके बाद वन विभाग ने इसे असफल करार दे दिया. लेकिन बस्तर अंचल में कोंडागांव जिले के कई गांवों जैसे पलना, रांधना, जड़कोंगा, काटागांव, माकड़ी के किसानों ने काली मिर्च की खेती को जारी रखा. आज इन किसानों की उपज भले ही कम हो, पर इनकी उगाई गई काली मिर्च कई मामलों में केरल की काली मिर्च से बेहतर है. टेस्ट में पता चला कि बस्तर की काली मिर्च में बाकी जगहों की उपज की तुलना में औषधीय तत्व अधिक मात्रा में पाए जाते हैं.

क्यों फेल हुई खेती

सवाल है कि ऐसा क्या हुआ जो छत्तीसगढ़ में काली मिर्च की खेती हर किसान तक अपनी जगह नहीं बना पाई. इसकी कई वजहें बताई जाती हैं. हर फसल की खेती के लिए एक खास विधि होती है जो पारंपरिक हो सकती है या आधुनिक भी. इस विधि के विपरीत यदि खेती की जाए तो फसल के पनपने की संभावनाएं कम हो जाती हैं. बस्तर में काली मिर्च की खेती के साथ यही बात देखने को मिली. यहां जब किसानों को काली मिर्च के पौधे दिए गए तो उन्हें ठीक ढंग से खेती की विधि से अवगत नहीं कराया गया. इसके चलते पौधे पनप नहीं पाए. काली मिर्च की खेती को पहला धक्का यही लगा. फिर बाद में किसान भी इससे दूर होते गए और काली मिर्च की खेती कम होती गई.

दूसरी जरूरी बात ये कि काली मिर्च की लताओं को पनपने के लिए सहारे की जरूरत होती है. ज्यादातर पौधों को दूसरे पेड़ों के सहारे ही चढ़ाया जाता है, जिसमें कटलहल, आम, साल, नारियल, अकेसिया के पेड़ उपयुक्त होते हैं. इन पेड़ों से भी उन्हें बाहरी पोषण मिलता है. लेकिन यहां इन बातों का ध्यान नहीं रखा गया, जिससे भी यह योजना असफल हो गई. लेकिन काली मिर्च यहां से बिल्कुल गायब नहीं हुई, बल्कि कुछ किसानों ने इसकी खेती पर भरोसा रखा और आज भी खेती कर रहे हैं. इसमें 20-25 किसान शामिल हैं.

अपने दम पर किसान

इन किसानों में एक नाम राजाराम त्रिपाठी का है जिन्होंने वर्षों से काली मिर्च की खेती को जारी रखा है. वे कहते हैं कि कम मेहनत में काली मिर्च अच्छा मुनाफा दे रही है. इसका लाभ लेने वालों में राजाराम त्रिपाठी अकेले नहीं हैं, बल्कि उनकी तरह कई किसान कई एकड़ में काली मिर्च की खेती कर रहे हैं. इन किसानों की शिकायत है कि वन विभाग की तत्परता अधिक होती तो उनकी कमाई और भी बढ़ सकती थी.

राजाराम त्रिपाठी की तरह ग्राम पलना में राजकुमार साहू, ग्राम मरका में संतूराम, ग्राम माकड़ी में मिट्ठूराम सहित कई किसान साल वृक्षों के नीचे काली मिर्च के पौधे लगाकर उससे आमदनी प्राप्त कर रहे हैं. क्वालिटी अच्छी होने से उन्हें अच्छा मुनाफा भी मिल रहा है. बस्तर अंचल में हर ओर साल के पेड़ मौजूद हैं. किसान साल के इन पेड़ों का अच्छा फायदा उठा रहे हैं.

काली मिर्च की खेती के लिए बस्तर को उपयुक्त माना जाता है क्योंकि बस्तर समुद्री तल से ऊंचाई में होने के कारण यहां का वातावरण अनुकूल है. काली मिर्च की खेती के लिए 23 से 32 डिग्री के बीच औसत तापमान होना चाहिए. बस्तर का यही औसत तापमान है. यहां की मिट्टी भी इसके लिए उपजाऊ है.

वन विभाग का पक्ष

वन विभाग का दावा है कि खेती की योजना के तहत करीब 1 लाख 27 हजार काली मिर्च के पौधों का वितरण किया गया था, लेकिन इनमें से कितने जीवित बचे हैं, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. डीएफओ ने दावा किया कि कुछ जगहों पर साल के वृक्षों पर पौधों के बेल लगे हुए हैं जिनमें अब फल आने लगे हैं. दक्षिण कोंडागांव के डीएफओ रमेश कुमार जांगड़े ने कहा कि दक्षिण कोंडागांव वनमंडल में साल 2006 से 2009 के बीच वनौषधि पादप बोर्ड के सहयोग से साल वृक्षों पर काली मिर्च के 7000 और 15000 बेल चढ़ाए गए थे.

वर्ष 2014-15 में फिर से आईएपी योजना के तहत कालीमिर्च के एक लाख पौधों को ग्रामीणों को वितरित किए गए. लेकिन अहम सवाल ये है कि इतने बड़े स्तर पर काली मिर्च के पौधे बांटे गए तो उनकी उपज कहां गई. सवाल ये भी है कि जब इतनी बड़ी तादाद में काली मिर्चे के पौधे बांटे गए, तो वे दिखते नहीं. अगर वाकई पौधे लगाए गए तो बस्तर में चारों ओर काली मिर्च की फसल दिखती. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं दिखता. आखिर क्यों? इसके बारे में विभाग की तरफ से कोई ठोस जवाब नहीं मिल पाया है.(रिपोर्ट/धर्मेन्द्र महापात्र)

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