करहल की लड़ाई यादव बनाम यादव पर आई, परिवार और रिश्तेदारी की तल्खी बना मुद्दा!

करहल की लड़ाई यादव बनाम यादव पर आई, परिवार और रिश्तेदारी की तल्खी बना मुद्दा!

करहल में सबसे ज्यादा 1 लाख 25 हज़ार यादव मतदाता हैं. दूसरे नंबर पर शाक्य वोट माना जाता है जो तकरीबन 35000 है. जाटव वोट 30 हजार है, क्षत्रिय 30 हजार, ब्राह्मण 18 हज़ार, पाल 18 हजार, लोधी 13 हज़ार और मुसलमान 15 हज़ार वोट है. बीजेपी इस बार यादवों के अलावा सभी गैर यादव ओबीसी वोटों को अपने साथ रखने की जद्दोजहद में है.

Meghalaya: High voter turnout as Gambegre assembly by-poll kicks off in West Garo HillsMeghalaya: High voter turnout as Gambegre assembly by-poll kicks off in West Garo Hills
क‍िसान तक
  • Lucknow,
  • Nov 13, 2024,
  • Updated Nov 13, 2024, 7:02 PM IST

मुलायम सिंह यादव का परिवार अगर सबसे बड़ा सियासी परिवार है तो बीजेपी ने जिस अनुजेश यादव को टिकट दिया है, उनका सबसे पुराना सियासी परिवार है. हालांकि दोनों परिवारों में रिश्तेदारियां हैं लेकिन इस चुनाव ने सबसे बड़े सियासी परिवार और सबसे पुराने सियासी परिवार को आमने-सामने खड़ा कर दिया है. अनुजेश यादव से जब बड़े सियासी परिवार की बात 'आजतक' ने की तो वो बिफर पड़े. उन्होंने कहा, हमसे बड़ा परिवार या पुराना परिवार क्या मुलायम सिंह का है? अनुदेश यादव ने कहा, 1952 में मेरे दादा सदन में हैं.

मैदान में मुलायम के रिश्तेदार

अनुजेश ने कहा कि जब मंच से यह कह दिया गया कि हमारे परिवार के साथ कोई रिश्ता नहीं है तो हम भी उनसे कोई रिश्ता रखने के लिए लालायित नहीं हैं. बता दें कि अनुजेश रिश्ते में मुलायम सिंह यादव के दामाद हैं, अखिलेश यादव के बहनोई हैं और तेज प्रताप यादव के फूफा हैं. 

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अनुजेश की मां उर्मिला यादव दो बार समाजवादी पार्टी की विधायक रह चुकी हैं और इस चुनाव में अपने बेटे और बीजेपी उम्मीदवार अनुजेश के लिए गांव-गांव वोट मांग रही हैं. गांव में छोटी-छोटी चौपाल लगाकर लोगों को एक रहने की बात कह रही हैं और परिवार से पुराना वास्ता देकर बीजेपी के लिए वोट मांग रही हैं. लेकिन जैसे ही परिवार और रिश्ते की बात आती है उनके सब्र का बांध भी टूट जाता है. उर्मिला यादव कहती हैं कि इस परिवार ने हमें छोड़ा है, हमें पार्टी से निकाला है. जब पार्टी से निकाल दिया तो अब कैसा साथ, कैसा रिश्ता.

तेज प्रताप यादव भी इस परिवार से रिश्ते खत्म मानते हैं. वो इन दिनों हर उस यादव परिवार के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं जहां लगता है कि यादव वोट उनसे खिसक जाएगा. रिश्तेदारी पर जब बात निकली तो तेज प्रताप ने कह दिया, मैंने तो फूफा और भतीजा सुना था, दो दामादों की बात तो मैं पहली बार सुन रहा हूं. वैसे उनसे अब रिश्ते नहीं हैं क्योंकि जो बीजेपी का हो गया वह समाजवादी पार्टी का नहीं हो सकता. रही बात परिवार और पार्टी छोड़ने की तो पार्टी ने कभी इस परिवार को नहीं छोड़ा. इन लोगों ने खुद ही पार्टी छोड़ी और एक बार नहीं दो-दो बार पार्टी छोड़कर बाहर गए. इसलिए ऐसे आरोप निराधार हैं.

करहल के इस चुनाव में इस बार लड़ाई यादव वोटों पर आकर टिक गई है. अमूमन हर बार यादव वोट एक तरफा समाजवादी पार्टी को जाता रहा है और यही उसकी जीत की वजह भी रही है. लेकिन इस बार इस यादव वोट बैंक में सेंध लगाने की असली लड़ाई है. 2002 में जब बीजेपी इस सीट को जीती थी, तब भी बीजेपी के यादव उम्मीदवार शोभारण सिंह ही जीत पाए थे.

करहल का जातीय समीकरण 

करहल में सबसे ज्यादा 1 लाख 25 हज़ार यादव मतदाता हैं. दूसरे नंबर पर शाक्य वोट माना जाता है जो तकरीबन 35000 है. जाटव वोट 30 हजार है, क्षत्रिय 30 हजार, ब्राह्मण 18 हज़ार, पाल 18 हजार, लोधी 13 हज़ार और मुसलमान 15 हज़ार वोट है. 

बीजेपी इस बार यादवों के अलावा सभी गैर यादव ओबीसी वोटों को अपने साथ रखने की जद्दोजहद में है. यादव बहुल इलाकों में अभी अखिलेश यादव का वही जलवा बरकरार है और जो भी मिले समाजवादी पार्टी के ही समर्थक मिले. लेकिन दूसरी ओर ओबीसी और स्वर्ण बिरादरियों में बीजेपी के लिए जोर दिखाई देता है. 

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बहुजन समाज पार्टी ने शाक्य उम्मीदवार पर दांव लगाया है. बीएसपी को जाटवों और शाक्य बिरादरी का एक धड़ा वोट कर सकता है, लेकिन यह जीत के लिए काफी नहीं है. ऐसा तो बीएसपी के समर्थक भी मान रहे हैं. स्थानीय पत्रकार भी मानते हैं कि इस बार बीजेपी का असर यादवों में बढ़ेगा, लेकिन यह बीजेपी की वजह से नहीं बल्कि यादव बनाम यादव यानी अनुजेश यादव की वजह से बढ़ने वाला है. यही समाजवादी पार्टी के लिए टेंशन की बात है.(कुमार अभिषेक की रिपोर्ट)

 

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