पशुओं में बांझपन, सुन कर भले अजीब लगे, लेकिन यह हकीकत एक समस्या के रूप में सामने आई है. वैसे तो, इंसान हों या जानवर, सभी का जीवन चक्र एक समान गति से चलता है. प्रकृति के सामान्य अनुक्रम में अपवाद के ताैर पर इंसानों सहित सभी जीवों में संतानोत्पत्ति की क्षमता में विषमतायें दिखती हैं. मगर, बदलते दौर में इंसानों के बाद मवेशियों में भी बांझपन, अब अपवाद नहीं बल्कि समस्या बन गया है. विशेषज्ञों की मानें तो, मिट्टी, पानी के लिहाज से सख्त मिजाज वाले बुंदेलखंड इलाके में बांझपन की समस्या के घेरे में मवेशियों का आना, पशुपालन के भविष्य का अच्छा संकेत नहीं है. खासकर डेयरी सेक्टर के लिए, जिसे सरकार लगातार बढ़ावा देने के क्रम में दुधारू पशुओं की नस्ल सुधार पर भी जोर दे रही है. ऐसे में डेयरी क्षेत्र के लिए बुंदेलखंड में किसानों के लिए खुल रहे संभावनाओं के द्वार के मद्देनजर यह स्थिति चिंता पैदा करती है. इस क्षेत्र के पशु चिकित्सा वैज्ञानिकों ने बताया कि पिछले कुछ समय में ऐसे किसानों की संख्या बढ़ी है जो अपने मवेशियों में बांझपन की समस्या लेकर उनके पास आते हैं.
बुंदेलखंड में झांसी स्थित रानी लक्ष्मी बाई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के पशु चिकित्सा विभाग के विशेषज्ञों ने बताया कि डेयरी किसान अपनी गाय, भैंस,बकरी और भेड़ जैसे दुधारू पशुओं में गर्भधारण नहीं होने या गर्भपात होने, समय से पहले बच्चे का जन्म होने जैसी समस्याएं लेकर आ रहे हैं. पशु चिकित्सा विशेषज्ञ डाॅ प्रमोद सोनी ने बताया कि पिछले छह महीनों में इस समस्या को लेकर आने वाले किसानों की संख्या बढ़ी है.
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विश्वविद्यालय के पशु चिकित्सा वैज्ञानिक डॉ वीपी सिंह ने बताया कि इलाके के डेयरी किसान मवेशियों को खाने के लिए जो आहार दे रहे हैं, उसमें पौष्टिकता का अभाव पाया गया है. खासकर बाजार में मिलने वाले पशु आहार में मिलावट के कारण यह समस्या ज्यादा देखी गई है. इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में नैसर्गिक चारागाहों के अभाव के कारण मवेशियों को गंदे पानी के एकत्र होने वाले नाले और पोखर जैसे स्थानों के आसपास उगने वाले दूषित चारे पर निर्भर रहना पड़ता है. इस कारण से मवेशियों के भोजन में पोषक तत्वों के बजाय दूषित तत्वों का प्रभाव बढ़ जाता है. इसका सीधा असर उनकी सेहत पर पड़ता है.
डॉ सिंह ने कहा कि डेयरी किसानों अपने मवेशियों में जिन समस्याओं काे लेकर आते हैं, उनमें आम तौर पर गर्भ धारण कर बच्चे को जन्म देने में विफलता, कुपोषण जनित संक्रमण, जननांगों का अल्प विकसित होना, अंडाणुओं एवं हार्मोन का असंतुलन जैसी समस्याएं सामने आती हैं. उन्होंने बताया कि भोजन में पोषक तत्वों का अभाव होने के कारण मवेशी के शरीर में कैल्शियम, फास्फोरस, आयोडीन, कॉपर, खनिज लवण, विटामिन ए एवं विटामिन डी की कमी हो जाती है. इसका सीधा असर मवेशियों की प्रजनन क्षमता पर पड़ता है.
डॉ सिंह ने बताया कि पोषक आहार की कमी से मवेशी में गर्भाधान की अवधि लंबी हो जाती है. इससे मादा पशु के जीवनकाल में गर्भाधान की संख्या कम हो जाती है. साथ ही गर्भपात होने या कमजोर बच्चे पैदा होने का खतरा भी बढ़ जाता है.
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डाॅ सोनी ने बताया कि बुंदेलखंड की कठोर जलवायु को देखते हुए यहां पोषक चारे का अभाव सामान्य समस्या है. साथ ही पर्यावरण प्रदूषण ने इस संकट को और ज्यादा गहरा दिया है. उन्होंने बताया कि इस समस्या से निपटने के लिए पशुपालकों को बाजार में मिलने वाले दोयम दर्जे के पशु आहार की बजाए बेहतर गुणवत्ता के पोषक चारे का इस्तेमाल करने पर जोर दिया जा रहा है.
डॉ सोनी ने बताया कि पशुपालकों को दूषित पानी वाले गंदे स्थानों, खासकर, शहरी इलाकों से गांव की तरफ आने छोड़े गए नालों के आसपास अपने पशुओं को चराने से बचने की सलाह दी जाती है. इसके बजाए किसानों को पशुचारण के लिए अपने गांव में चारागाह की जमीनों पर सामूहिक तौर से नेपियर जैसे अच्छे चारे उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. जिससे उनके मवेशियों को पोषक हरा चारा मिल सके.
उन्होंने कहा कि दुधारू जानवरों को एक जगह बांध कर रखने से भी तनाव एवं अवसाद जनित समस्याएं पैदा होती हैं. इनका परिणाम भी बांझपन जैसे रोगों के रूप में सामने आता है. उन्होंने कहा कि इसके लिए डेयरी किसानों को अपने मवेशियों को साफ चरागाहों में ले जाकर चराने की भी सलाह दी जाती है.