घरेलू ही नहीं एक्सपोर्ट बाजार में भी समुद्री शैवाल (Sea Weed) की डिमांड बढ़ने लगी है. एक्सपर्ट का तो यहां तक कहना है कि बाजार में जितनी डिमांड है उतना माल नहीं है. इतना ही नहीं लोग मुंह मांगे दाम पर शैवाल खरीदने को तैयार हैं लेकिन उन्हें अपनी डिमांड के हिसाब का चाहिए. वहीं एक्सपर्ट ये भी कहते हैं कि आज सीवीड की खेती के लिए मछुआरों को जागरुक करने की जरूरत है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अभी देश में बहुत कम लोग सीवीड की खेती कर रहे हैं. केन्द्र सरकार सीवीड की खेती को बढ़ावा देने के लिए सीवीड पार्क की योजना लाई है.
इतना ही नहीं सीवीड की क्वालिटी के लिए अच्छे बीज और जर्मप्लाज्म को इंपोर्ट करने के प्लान पर भी काम चल रहा है. ज्यादा से ज्यादा मछुआरों को इसकी खेती से जोड़ने के लिए ये कदम उठाय जा रहे हैं. सीवीड के एक्सपर्ट की मानें तो आज सीवीड का इस्तेमाल आज बड़े पैमाने पर खाद्य, ऊर्जा, रसायन और दवा उद्योग के साथ पोषण, बायोमेडिकल और पर्सनल केयर प्रोडक्ट में हो रहा है.
जानकार बताते हैं कि सीवीड की खेती को बढ़ावा देने के लिए साल 2025 तक के लिए टॉरगेट तय किए गए हैं. टॉरगेट को हासिल करने के लिए जोर-शोर से काम चल रहा है. इसी कड़ी में करीब 127 करोड़ रुपये से बहुउद्देशीय सीवीड पार्क की स्थापना की जा रही है. नए प्लान के तहत सीवीड की नई किस्मों के इंपोर्ट होने से रिसर्च और डवलपमेंट को भी बढ़ावा मिलेगा, जिससे लाल, भूरे और हरे शैवाल का उत्पादन बढ़ेगा. ऐसा होने पर प्रोसेसिंग यूनिट को कारोबार भी मिलेगा और उनकी संख्या भी बढ़ेगी.
जानकार बताते हैं कि पाक खाड़ी के गांव मुनईकाडु में मछुआरे सीवीड की खेती कर रहे हैं. हाल ही में हम लोगों ने मुनईकाडु गांव के किसानों से मुलाकात की थी. इस वक्त देश में करीब 1500 परिवार सीवीड की खेती में लगे हुए हैं. सीवीड का मौजूदा सालाना उत्पादन करीब पांच हजार टन प्रति हेक्टेयर है. हालांकि नीति और तकनीक का इस्तेमाल कर उत्पादन को और कई गुना बढ़ाया जा सकता है. गौरतलब रहे भारत में अभी सीवीड उद्यमों को व्यावसायिक रूप से महंगी प्रजातियों के लिए पर्याप्त मात्रा में बीज की उपलब्धता और सीवीड की एक खास प्रचलित प्रजाति कप्पाफाइकस के बीज की क्वालिटी के लिए चुनौती का सामना करना पड़ता है.
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