Prevention of FMD Disease बरसात के दिनों में खुरपका-मुंहपका (FMD) बीमारी ने भी अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है. ये एक संक्रमण से फैलने वाली बीमारी है. बारिश और जलभराव के दौरान यहां-वहां दूषित पानी पीने और सड़ा-गला खाने के चलते ये बीमारी जल्दी फैलती है. खासतौर पर इस बीमारी का शिकार खुले खुर वाले पशु होते हैं. इसमे भेड़ और बकरियां भी शामिल हैं. पश्चिरमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में दर्जनों पशुओं में एफएमडी के लक्षण सामने आए हैं. हालांकि इसकी रोकथाम के लिए साथ में दो बार टीकाकरण भी होता है.
पशुओं में एफएमडी के लक्षणों की पहचान कैसे करें
- गाय-भैंस, भेड़-बकरियों को 104 से 106 एफ तक तेज बुखार आएगा.
- बुखार आने के साथ ही पशुओं की भूख कम हो जाती है.
- बाड़े में पशु सुस्त रहने लगता है और खाना-पानी छोड़ देता है.
- पीडि़त पशु के मुंह से बहुत ज्यादा लार टपकना शुरू हो जाती है.
- मुंह में फफोले हो जाते हैं और चारा समेत कुछ भी खाने की हालत में नहीं होता है.
- खासतौर पर पशुओं के जीभ और मसूड़ों पर बहुत ज्यादा फफोले हो जाते हैं.
- पशु के पैर में खुर के बीच घाव हो जाते हैं, जो अल्सर होता है.
- कई बार तो पीडि़त गाभिन पशु का गर्भपात तक हो जाता है.
- थन में सूजन और पशु में बांझपन की बीमारी आ जाती है.
वो कौनसे कारण हैं जिसकी वजह से फैलता है एफएमडी
- दूषित चारा और दूषित पानी पीने से पशुओं में एफएमडी रोग जल्दी फैलता है.
- बरसात के दौरान पशु खुले में चरने के दौरान दूषित चारा-पानी खा और पी लेते हैं.
- खुले में पड़ी कुछ सड़ी-गली चीजें खाने से भी होता है.
- फार्म पर नए आने वाले पशु से भी ये बीमारी लग जाती है.
- पहले से ही एफएमडी से पीड़ित पशु के साथ रहने से भी हो जाती है.
पशुओं के बाड़े में कैसे करें एफएमडी की रोकथाम
- पशुओं में एफएमडी की रोकथाम करना बहुत आसान है.
- सबसे पहले तो अपने पशु का रजिस्ट्रेशन कराएं.
- उसके कान में फ्री लगने वाला ईयर टैग डलवाएं.
- पशु स्वास्थ्य केन्द्र पर साल में दो बार फ्री लगने वाले एफएमडी के टीके लगवाएं.
- पशुओं को टीका लगवाने के बाद भी 10 से 15 दिन अलर्ट रहने की जरूरत होती है.
- टीका लगने पर 10 से 15 दिन में पशु में प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है.
- बरसात के दौरान पशु के बैठने और खड़े होने की जगह को साफ और सूखा रखें.
पशुओं को एफएमडी हो जाए तो कैसे करें इलाज
- एफएमडी का कोई इलाज नहीं है, लेकिन कुछ जरूरी उपाय अपनाए जा सकते हैं.
- जैसे पीड़ित पशु को बाकी सभी पशुओं से अलग रखें.
- मुंह के घावों को पोटेशियम परमैंगनेट सॉल्यूशन से धोएं.
- बोरिक एसिड और ग्लिसरीन का पेस्ट बनाकर पशु के मुंह की सफाई करें.
- खुर के घावों को पोटेशियम सॉल्यूशन या बेकिंग सोडा से धोएं.
- पीडि़त पशुओं के घावों की जगह पर कोई भी एंटीसेप्टिक क्रीम लगाते रहें.
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