Fish Farming in Naxalite Area 20 साल पहले तक झारखंड का गुमला जिला नक्सलियों के दो-दो ग्रुप के उग्रवाद से जूझ रहा था. दो-तीन घंटे के अंतराल पर एक दिन में कब तीन से चार मर्डर हो जाएं कुछ पता नहीं चलता था. एक नक्सल समर्थक के मुताबिक 5-5 हजार रुपये के लिए मर्डर हो जाते थे. नक्सल प्रभावित झारखंड के और दूसरे जिलों का हाल भी कुछ ऐसा ही था. लेकिन अब उग्रवाद प्रभावित जिलों की तस्वीर बदल रही है. नक्सलवाद पर मछलियां भारी पड़ रही हैं. वामपंथी उग्रवाद के समर्थक रहे युवा अब बंदूक छोड़ जाल थाम रहे हैं. केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाओं का फायदा उठाकर मछली पालन कर रहे हैं.
मछलियां बेचकर आम नागरिकों की तरह से हर महीने हजारों रुपये की कमाई कर रहे हैं. और इस सब में अहम रोल निभाया है मछली पालन ने. अच्छी बात ये है कि ये खुद तो मछली पालन कर ही रहे हैं, साथ में अपने जैसे दूसरे लोगों को भी मछली पालन में लाकर मुख्य धारा से जोड़ने का काम कर रहे हैं. किसान तक ने गुमला में कभी वामपंथ उग्रवाद के समर्थक रहे ऐसे ही तीन लोगों से जानी उनके मछली पालक बनने की कहानी.
साल 2004 से 2007 तक नक्सल के समर्थक रहे ओम प्रकाश साहू ने किसान तक को बताया कि उस वक्त गुमला में दो ग्रुप का आतंक था. हाल ये था कि ऐसे लोगों को बिना सपोर्ट किए रहा भी नहीं जा सकता था. लेकिन एक वक्त ऐसा आया कि जब हमने ये देखा कि विचार और हक के नाम पर हमारे लड़के मर रहे थे. जबकि हुक्म देने वाले लीडर पैसा कमा रहे थे. इतना ही नहीं बहन-बेटियां भी सुराक्षित नहीं रह गईं थी. तभी हमने कुछ लड़कों को साथ लेकर शांति सेना बनाई और ऐसे उग्रवादियों के खिलाफ हथियार उठाय. साथ ही हम लोगों ने इस दौरान तालाब में मछली पालन भी शुरू कर दिया. इसमे अच्छा मुनाफा मिलने लगा. तभी झारखंड सरकार से हमने मछली पालन की ट्रेनिंग ली. साथ ही केन्द्र सरकार की प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) का फायदा लेकर मछली पालन को बढ़ाने का काम कर रहे हैं.
लखन सिंह भी कुछ वक्त तक नक्सल के समर्थक रहे हैं. लेकिन जब उन्हें ये महसूस हुआ कि वो गलत रहा पर हैं तो उन्होंने मुख्य धारा में वापस लौटकर मछली पालन शुरू कर दिया. आज लखन पांच तालाब में मछली पालन करते हैं. किसान तक से बातचीत में उन्होंने बताया कि एक तालाब हमने अपने बच्चों के नाम कर दिया है. उस तालाब की मछलियों को बेचकर जो भी पैसा आता है वो बच्चों की पढ़ाई पर खर्च होता है. रांची में मछली पालन विभाग से ट्रेनिंग लेकर और पीएमएमएसवाई की योजनाओं का लाभ लेकर मछली पालन को और बढ़ा रहे हैं.
ईश्वर गोप भी कभी नक्सलवाद के समर्थक रहे हैं, लेकिन आज पांच एकड़ के तालाब में मछली पालन कर रहे हैं. सिर्फ 11 सौ रुपये की मामूली फीस पर गोप को ये तालाब सरकार से मिले हैं. अब इन्हीं तालाब में पीएमएमएसवाई योजना का लाभ उठाकर इस काम को बढ़ा कर रहे हैं. एक सहकारी संस्था भी बना ली है. इस संस्था से 115 लोग जुड़े हुए हैं. संस्था के पास 22 तालाब हैं.
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