एक नहीं तीन-तीन तरह का बकरी पालन इस देश में किया जाता है. कोई दूध-मीट के लिए करता है तो कोई ब्रीडिंग फार्म चलाकर. हालांकि ये भी सच है कि अभी दूध के लिए बकरी पालन कम ही किया जाता है. इसकी एक वजह ये भी है कि दूध की डिमांड तो है, लेकिन किसी भी डेयरी कंपनी को डिमांड के हिसाब से एक जगह दूध नहीं मिल पाता है. बकरी पालन अभी असंगठित सेक्टर में आता है. यही वजह है कि आज भी बकरी पालन वजन पर निर्भर है.
बकरे-बकरी जितने ज्यादा वजन के होंगे तो उसके रेट भी उतने ही अच्छे मिलेंगे. और जब वजन की बात होती है तो बकरे-बकरियों की तीन खास नस्ल का नाम जरूर आता है. गोट एक्सपर्ट का कहना है कि इनकी ग्रोथ भी अच्छी होती है. हाल ही में इन तीनों नस्ल को सरकार ने रजिस्टर्ड भी किया है.
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गुजरी नस्ल मूलरूप से अलवर, राजस्थान की है. इस नस्ल के बकरे का औसत वजन 69 और बकरी का वजन 58 किलो तक होता है. गोट एक्सपर्ट का कहना है कि अगर इस नस्ल के बकरे को खास तरीके की डाइट दी जाए तो ये 150 किलो वजन तक भी पहुंच जाते हैं. पुणे और मुम्बई, महाराष्ट्र में इस नस्ल के बकरों को इसी आधार पर पाला जाता है. खास बात ये है कि इस नस्ल की बकरी हर रोज औसत 1.60 किलोग्राम तक दूध देती है. इस नस्ल के बकरे-बकरी सफेद और भूरे रंग के होते हैं. इसके पेट, मुंह और पैर पर सफेद धब्बे होते हैं.
सोजत नस्ल के बकरे-बकरी नागौर, पाली, जैसलमेर और जोधपुर में पाए जाते हैं. सोजत जमनापरी की तरह से सफेद रंग की बड़े आकार वाली नस्ल है. इसे खासतौर पर मीट के लिए पाला जाता है. इस नस्ल का बकरा औसत 60 किलो वजन तक का होता है. बकरी दिनभर में एक लीटर तक दूध देती है. सोजत की नार्थ इंडिया के अलावा महाराष्ट्र में भी डिमांड रहती है.
कोटा, बूंदी, बांरा और सवाई माधोपुर में करोली नस्ल की बकरियां खूब पाली जाती हैं. इस नस्ल की बकरियां औसत 1.5 लीटर तक दूध रोजाना देती हैं. एक्सपर्ट की मानें तो राजस्थान और यूपी के मीट शौकीन करोली नस्ल के बकरे बहुत पसंद करते हैं. इसकी पहचान ये है कि इसका पूरा शरीर काले रंग का होता है. सिर्फ चारों पैर के नीचे का हिस्सा भूरे रंग का होता है. ये खुले मैदान में चरने पर ही तेजी से बढ़ती है.
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