अमेरिकी टैरिफ से प्रभावित झींगा उद्योग ने प्रधानमंत्री से की घरेलू खपत बढ़ाने की अपील, पेश किया ये समाधान

अमेरिकी टैरिफ से प्रभावित झींगा उद्योग ने प्रधानमंत्री से की घरेलू खपत बढ़ाने की अपील, पेश किया ये समाधान

Shrimp Consumption: झींगा किसान महासंघ ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह को झींगा हैंडलिंग और विपणन इकाइयों की स्थापना के लिए एक खाका प्रस्तुत किया है. इससे अमेरिका द्वारा लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ के कारण इस क्षेत्र को होने वाले भारी नुकसान की भी भरपाई हो पाएगी.

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क‍िसान तक
  • नोएडा,
  • Oct 04, 2025,
  • Updated Oct 04, 2025, 2:18 PM IST

अमेरिकी टैरिफ से बुरी तरह प्रभावित देश के झींगा क्षेत्र ने घरेलू खपत बढ़ाने के लिए एक संरचित योजना विकसित की है. इससे डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन द्वारा लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ के कारण झींगा क्षेत्र को हुए भारी नुकसान की भरपाई करने में मदद मिलेगी. गौर करने वाली बात ये है कि भारत दुनिया के सबसे बड़े जलीय कृषि क्षेत्रों में से एक है, जिसका निर्यात आधार ₹40,000 करोड़ है, इसके बावजूद भी घरेलू झींगा बाजार अविकसित है. उपभोक्ता मछली के आदी हैं, फिर भी व्यापक रूप से पाले जाने के बावजूद, झींगा को अभी भी एक सामयिक या प्रीमियम विकल्प के रूप में देखा जाता है.

घरेलू खपत मुश्किल से 100 ग्राम प्रति व्यक्ति

इस मुद्दे को लेकर अंग्रेजी अखबार 'बिजनेस लाइन' से बातचीत के दौरान, झींगा किसान संघ के अध्यक्ष इंदुकुरी मोहन राजू ने कहा कि हम सालाना 10 लाख टन से ज्यादा झींगा उत्पादन करते हैं, लेकिन घरेलू खपत मुश्किल से 100 ग्राम प्रति व्यक्ति है. अब इसकी तुलना अमेरिका, थाईलैंड और जापान की प्रति व्यक्ति 2-3 किलोग्राम की खपत से करें तो हमारे देश में प्रति व्यक्ति मछली सेवन (5-6 किलोग्राम) में झींगा का हिस्सा मात्र 2 प्रतिशत से भी कम है.

झींगा किसान संघ के अध्यक्ष ने कहा कि कमजोर आपूर्ति श्रृंखला, खराब गुणवत्ता स्थिरता और उपभोक्ता जागरूकता की कमी के कारण बड़ी मात्रा में मांग अप्रयुक्त रह गई है. एसोसिएशन ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह को झींगा हैंडलिंग और विपणन इकाइयां (SHMUs) स्थापित करने के लिए एक खाका प्रस्तुत किया है.

बन सकता है व्यापक और दीर्घकालिक समाधान

एसोसिएशन ने ज्ञापन में कहा कि यह एक मजबूत घरेलू बाजार बनाने के लिए एक व्यापक और दीर्घकालिक समाधान हो सकता है. प्रत्येक इकाई की लागत लगभग ₹50 करोड़ होगी. हम 1,000 करोड़ रुपये के शुरुआती निवेश से शुरुआत कर सकते हैं. अगले 5 सालों में इसे 200 इकाइयों तक बढ़ाया जा सकता है, जिससे एक विश्वसनीय ढांचा स्थापित करने में मदद मिलेगी. ज्ञापन में कहा गया कि इससे किसानों और उपभोक्ताओं के बीच की खाई को पाटने और राष्ट्रीय झींगा उत्पादन के 50 प्रतिशत तक को अवशोषित करने में मदद मिलेगी. इसने कहा कि यह किसानों के नेतृत्व वाली, सरकार समर्थित पहल होगी जिससे देश की निर्यात पर अत्यधिक निर्भरता कम होगी, किसानों की आय स्थिर होगी और घरेलू झींगा विपणन एक सफल कहानी बन जाएगा. इसके साथ ही अमेरिकी टैरिफ से भी झींगा क्षेत्र को सुरक्षा कवच मिलेगा.

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