बीमारियों से ज्यादा सवाल अब खानपान पर उठने लगे हैं. डॉक्टरों की मानें तो आज खाने का तरीका ही बहुत सारी बीमारियों के लिए रास्ता बनाता है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इंसान इसके चलते खाना-पीना ही छोड़ दे. अगर कुछ खानपान बीमारियों को जन्म दे रहे हैं तो बहुत सारे ऐसे भी हैं कि जिनका सेवन बीमारियों ही बीमारियों का इलाज करता है. जरूरत है अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में उसे शामिल करने की. शायद यही वजह है कि एनिमल रिसर्च से जुड़े बड़े-बड़े साइंटिस्ट आज फ्यूचर मिल्क पर बात कर रहे हैं. उसकी खूबियां बता रहे हैं. इतना ही नहीं बड़ी-बड़ी बीमारियों में कैसे उसका इस्तेमाल किया जा सकता है इसकी भी चर्चा हो रही है. जैसे केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के डायरेक्टर मनीष चेतली बताते हैं कि खासतौर से यूरोप में बच्चों की ज्यादातर दवाईयां बकरी के दूध से बनती हैं.
बच्चे ही नहीं बड़ों की बहुत सारी बीमारियों में भी सीधे ही पीने पर बकरी का दूध फायदा पहुंचा रहा है. ऊंटनी के दूध के फायदे किसी से छिपे नहीं है. ये दूध देशभर में जरूरतमंदों तक सही तरीके से पहुंच जाए इसके लिए कोरोना-लॉकडाउन के वक्त स्पेशल ट्रेन चलाई गई. सभी तरह के दूध और दूध से बनने वाले प्रोडक्ट पर खास रिसर्च करने वाला नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनडीआरआई), करनाल भी फ्यूचर मिल्क को लेकर हो रही चर्चा में अहम रोल निभा रहा है.
देश के टॉप डेयरी और एनिमल प्रोडक्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के एक्सपर्ट का कहना है कि गायों के दूध में कम मेडिशनल वैल्यू और कम लागत के चलते आने वाले वक्त में नॉन बोवाइन पशुओं के दूध का इस्तेमाल हो सकता है. एक्सपर्ट का कहना है कि बकरी, भेड़, ऊंट, गधे और याक आदि में बोवाइन के मुकाबले मेडिशनल वैल्यू ज्यादा होती है. और भारत में इनकी संख्या भी बढ़ रही है. इसलिए ये जरूरी है कि मानव पोषण और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए इनका इस्तेमाल किया जाना चाहिए. बीते कुछ वक्त पहले सीआईआरजी के डायरेक्टर मनीष चेतली, ऊंट अनुसंधान संस्थान, बीकानेर के निदेशक डॉ अर्तबंधु साहू समेत और भी दर्जनों एक्सपर्ट ने एनडीआरआई, करनाल में "गोजातीय और गैर-गोजातीय दूध और मानव स्वास्थ्य" विषय पर हुई सेमिनार में इसकी जरूरत पर चर्चा की थी. इस दौरान ये भी बताया गया था कि किस तरह से दूध और दूध से बने प्रोडक्ट मानव जीवन के लिए जरूरी हैं.
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डॉ. धीर सिंह का कहना है कि आज मानव स्वास्थ्य के लिए लिपिड, लैक्टोज, इम्युनोग्लोबुलिन, विभिन्न पेप्टाइड्स, न्यूक्लियोटाइड्स, ओलिगोसेकेराइड और मेटाबोलाइट्स आदि बहुत फायदेमंद साबित हो सकते हैं. और इनकी पूर्ति नॉन बोवाइन पशुओं के दूध से हो सकती है. बस जरूरत इतनी है कि हम उनकी तलाश करें.
डॉ अर्तबंधु साहू का कहना है कि ऊंटनी के दूध के गुण आंत को तो हेल्दी बनाते ही हैं साथ में उससे जुड़ी बीमारियों को भी दूर करते हैं. वहीं दूसरी ओर ऑटिज्म और डॉयबिटिज से जुड़े लक्षणों में भी सुधार करते हैं. संक्रामण वाली बीमारियों के खिलाफ भी हमारी रोग प्रतिरक्षा में सुधार होता है. इन प्रतिरक्षा बढ़ाने वालों में प्रोटीन के अंश, जैसे लैक्टोफेरिन, इम्युनोग्लोबुलिन, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-वायरल गुण प्रमुख योगदान देते हैं.
डॉ. मनीष चेटली का कहना है कि बकरी के दूध को "दवाई" माना जाता है. इसके पीछे बड़ी वजह ये है कि बकरी का दूध इम्यूनोमॉड्यूलेटरी गतिविधि, मलेरिया और डेंगू के दौरान पैरासाइटिमिया इंडेक्स को कम करता है. ये बात डॉक्टर भी मानते हैं. इतना ही नहीं बकरी के दूध में मौजूद प्रोटीन हाई ब्लड प्रेशर और हॉर्ट की बीमारी से लड़ने में मदद करते हैं. और बकरी का दूध खासतौर से बच्चों के लिए जरूरी अमीनो एसिड को प्रभावी बनाता है. इसके दूध में प्रोटीन ज्यादा होता है. जबकि लैक्टोज की मात्रा गाय के दूध के मुकाबले 30 से 40 फीसद तक कम होती है. अब अगर दूध उत्पादन की बात करें तो सालाना देश के कुल दूध उत्पादन में बकरी के दूध की हिस्सेदारी तीन से साढ़े तीन फीसद है. नॉन बोवाइन मिल्क ही देश का फ्यूचर मिल्क है. ये इस बात से भी साबित हो जाता है कि आज नॉन बोवाइन मिल्क गाय के मुकाबले 10.4 फीसद की दर से बढ़ रहा है, जबकि गाय का दूध 3.84 फीसद की दर से बढ़ रहा है.
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फ्यूचर मिल्क के बारे में इंडियन डेयरी एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और अमूल के पूर्व एमडी डॉ. आरएस सोढ़ी ने किसान तक को बताया कि डेयरी के कई बड़े प्लेयर की बकरी के दूध पर नजर है. बाजार भी अच्छा है. डिमांड भी है. बड़े बकरी फार्म की संख्या़ अभी कम है. लेकिन इस तरफ कोशिश शुरू हो गई हैं. कई लोगों ने बड़े बकरी फार्म की शुरुआत कर दी है. गुजरात में ही दो से तीन बड़े बकरी फार्म पर काम चल रहा है. अगर बड़े बकरी फार्म खुलने लगे तो फिर बड़ी कंपनियां भी आ जाएंगी.
खास बात ये है कि फ्यूचर मिल्क में याक भी शामिल है. बेशक आज याक की संख्या कम है, लेकिन बावजूद इसके जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किएम और अरुणाचल प्रदेश में याक पालन किया जा रहा है. भेड़ की बात करें तो आज राजस्थान से ज्यादा भेड़ों की संख्या दक्षिण भारत के राज्यों में ज्यादा है. जम्मू-कश्मीर में भी एकदम से भेड़ पालन बढ़ा है. भेड़ और बकरी दो ऐसे पशु हैं जो दोहरा फायदा कराते हैं. इनके मीट की डिमांड भी बहुत है. जबकि भेड़ तो ऊन भी देती है.