देश में कृषि क्षेत्र में आधुनिकता आने से पशुओं का उपयोग बहुत कम हो गया है. पहले के लोग खेती के लिए पशुओं का खूब इस्तेमाल करते हैं. आज उनकी जगह मशीनों और कृषि यंत्रों का उपयोग होता है, जिसके कारण लोगों ने पशुपालन बंद कर दिया और हजारों की संख्या में पशु सड़क पर आ गए. इन पशुओं के न रहने का कोई ठिकाना है न ही खाने के लिए चारे की कोई व्यवस्था. भोजन के लिए छुट्टा गौवंश लोगों के खेतों पर उतर जाते हैं और पूरी फसल नष्ट कर देते हैं, इससे फसलों की पैदावार में भी प्रभाव पड़ता है.
छुट्टा गौवंश देश के अधिकांश राज्यों की समस्या बन गए हैं. पशुओं के छुट्टा हो जाने से हर साल देश के खाद्य उपज पर भी बुरा असर देखा गया है. इससे निपटने के लिए राज्य सरकारें कई तरह का प्रयास कर रही हैं. इसी के तहत छुट्टा गोवंशों को आश्रय देने और किसानों की फसलों को इन पशुओं से बचाने के लिए मध्य प्रदेश के रीवा जिले में लगभग 13 हेक्टेयर की भूमि में बसामन मामा गौवंश वन्य विहार की स्थापना की है. इस गौशाला के बनने से कई तरह के लाभ देखने को मिले आइए इस बारे में विस्तार से जानें
लोगों के पशुपालन बंद करते ही हजारों की संख्या में छुट्टा गोवंशों के खान- पान और रहने का ठिकाना छिन गया. 13 हेक्टेयर में बने इस गौशाला से लगभग 4200 छुट्टा पशुओं को आश्रय मिला है. जनसंपर्क विभाग के अनुसार इन पशुओं के खान पान और दवाओं के लिए पशुपालन विभाग हर महीने 15 लाख रुपये देता है.
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जिला जन संपर्क विभाग रीवा के अनुसार इस गौशाला की शुरुआत 500 गोवंशों से हुई थी. आज यहां लगभग 4200 गोवंश रहते हैं. वर्मी कम्पोस्ट, गोनाइल, हैंडवॉश, और टॉयलेट क्लीनर जैसे कई शुद्ध उत्पाद बनाए जाते हैं, इसके साथ ही गौमूत्र से भी कई चीजें बनाई जाती हैं जिससे गौशाला को लगभग 4 लाख की वार्षिक आय भी मिलती है. इसके अलावा कई संस्थाओं से बातचीत कर इस गौशाला का बाजार विस्तार करने की तैयारी चल रही है.
बसामन मामा गौवंश वन्य विहार की स्थापना से किसानों की फसलें सुरक्षित होने के साथ सड़क हादसे में भी कमी आई है. रात के समय पशु रहने के लिए सूखे स्थान की तलाश करते हैं और सड़को पर जा कर बैठते हैं. पशुओं से टकरा कर अक्सर सड़क हादसे की घटना सामने आती थी, गौशाला के बाद क्षेत्रीय इलाकों में इस तरह की दुर्घटना में कमी देखी गई है.