किसान-Tech: ना बड़े तालाब की जरूरत और ना बेहिसाब पानी की खपत, ये आसान तकनीक बढ़ाएगी मछली से कमाई

किसान-Tech: ना बड़े तालाब की जरूरत और ना बेहिसाब पानी की खपत, ये आसान तकनीक बढ़ाएगी मछली से कमाई

बायोफ्लॉक तकनीक की सबसे बड़ी खासियत यही है कि इसमें मछली पालन के लिए किसान को तालाब नहीं खोदना पड़ता है. इस तकनीक के तहत मछलियों को टैंक में पाला जाता है. इसके लिए आप अपने खेत, प्लॉट या घर के आसपास 250 स्क्वायर फीट के सीमेंट टैंक में मछली पाल सकते हैं.

बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन
स्वयं प्रकाश निरंजन
  • Noida,
  • May 10, 2024,
  • Updated May 10, 2024, 12:48 PM IST

बहुत सारे ऐसे किसान हैं जिनके पास जगह और पानी दोनों ही सीमित हैं लेकिन मछली पालन कर मुनाफा कमाना चाहते हैं. ऐसे किसानों के लिए भी एक आधुनिक तकनीक होती है. किसान-Tech की इस सीरीज में आज हम ऐसी ही एक नई तकनीक के बारे में बताने जा रहे हैं. इसमें मछली पालक को ना तो बड़े-बड़े तालाब की जरूरत होगी और ना ही बहुत सारा पानी खर्च होगा. आज हम आपको बायोफ्लॉक तकनीक के बारे में विस्तार से समझाएंगे और ये बताएंगे कि कैसे किसान इस आधुनिक और वैज्ञानिक बायोफ्लॉक तकनीक को अपना कर नीली क्रांति का हिस्सा बन सकते हैं.

क्या होती है बायोफ्लॉक तकनीक

बायोफ्लॉक तकनीक की सबसे बड़ी खासियत यही है कि इसमें मछली पालन के लिए किसान को तालाब नहीं खोदना पड़ता है. इस तकनीक के तहत मछलियों को टैंक में पाला जाता है. इसके लिए आप अपने खेत, प्लॉट या घर के आसपास 250 स्क्वायर फीट के सीमेंट टैंक में मछली पाल सकते हैं. जिन किसानों के पास जगह कम है वे बायोफ्लॉक विधि से मछलीपालन करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

इस तकनीक में बायोफ्लॉक नाम के एक खास बैक्टीरिया का सबसे अहम रोल होता है. इसमें पहले मछलियों को सीमेंट या मोटे पॉलिथीन से बने टैंक में डाला जाता है. इसके बाद टैंक में मौजूद बायोफ्लॉक बैक्टीरिया मछलियों के मल को प्रोटीन में बदल देता है. बता दें कि मछलियां जितना खाना खाती हैं, उसका 75 प्रतिशत मल के रूप में शरीर से बाहर निकाल देती हैं. फिर जब मछलियां प्रोटीन में बदल चुका अपना ही मल खाती हैं तो उनका विकास बहुत तेजी से होता है. लिहाजा बायोफ्लॉक तकनीक में संसाधनों की बड़े स्तर पर बचत होती है.

तालाब और बायोफ्लॉक मछली पालन में अंतर

तालाब और बायोफ्लॉक तकनीक में अंतर ये है कि तालाब में सघन मछली पालन करना संभव नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर तालाब में सीमा से ज्यादा मछलियां डालने पर तालाब का अमोनिया बढ़ जाता है, जिससे तालाब गंदा हो जाता और मछलियां मरने लगती हैं. लेकिन ये काम बायोफ्लॉक तकनीक में किया जा सकता है. बायोफ्लॉक सिस्टम में फीड की काफी बचत होती है. उदाहरण के तौर पर अगर तालाब में मछली पालन में फीड की तीन बोरियां खर्च होती हैं तो बायोफ्लॉक तकनीक में केवल दो बोरियां ही खर्च होंगी.

बायोफ्लॉक तकनीक में एक टैंक को बनाने में कितनी लागत आएगी ये इस बात पर निर्भर करता है कि टैंक का साइज कितना बड़ा या छोटा है. अगर आपके पास जगह और लागत कम है तो टैंक छोटे-छोटे बनवा सकते हैं. हालांकि ज्यादा छोटे टैंक में मछली की ग्रोथ पर असर पड़ता है. इसके अलावा टैंक में पानी की भी बहुत ज्यादा जरूरत नहीं होती है, सीमित पानी में भी काम चल जाता है. 

इसके अलावा बायोफ्लॉक तकनीक में मछली की ब्रीड के हिसाब से अलग-अलग टैंक तैयार कराए जा सकते हैं और साथ ही हर एक टैंक का अलग-अलग तापमान कंट्रोल किया जा सकता है, लेकिन तालाब में मछली पालन करने के दौरान यह दोनों ही काम संभव नहीं है. 

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बायोफ्लॉक तकनीक के फायदे

तालाब के मछली पालन में बहुत नुकसान होता है, जबकि इसमें मछली पालकों को सबसे बड़ा फायदा ये है कि इसमें मछलियां ना तो चोरी होंगी और ना ही सांप और बगुला खाएंगे. इसमें वातावरण नियंत्रित रहता है जिससे मछलियां मरती भी नहीं हैं. 

बायोफ्लॉक के तहत अगर आप मछली पालन करते हैं तो सबसे बड़ी बचत पानी की होती है. वहीं अगर आप 1 हेक्टेयर के तालाब में मछली पालन करते हैं तो एक या दो इंच के बोरिंग से हर समय पानी देना पड़ता है जबकि बायोफ्लॉक मछली पालन में चार महीने में सिर्फ एक बार ही टैंक में पानी भरना पड़ता है. 

अगर इस बीच टैंक में ज्यादा गंदगी जमा हो जाए तो सिर्फ दस प्रतिशत पानी निकालकर इसे साफ किया जा सकता है. इसके अलावा बायोफ्लॉक मछली पालन में श्रम की भी बहुत अधिक खपत नहीं होती साथ ही लागत भी काबू में रहती है. 

बायोफ्लॉक मछली पालन की तकनीक के अंतर्गत कम जगह में ज्यादा उत्पादन लिया जा सकता है. इसके अलावा इसमें उस जमीन और जगह का भी उपयोग किया जा सकता है जो बेकार पड़ी हो या फिर कोई जगह लीज पर लेकर भी इस तकनीक से मछली पालन किया जा सकता है.

कितनी आएगी लागत

बायोफ्लॉक तकनीक में एक टैंक को बनाने में 30 से 35 हजार रुपये का खर्चा आता है. इसमें उपकरण और लेबर चार्ज भी शामिल है. लेकिन इसके लिए शेड और मछलियों के बीज की लागत अलग से लगेगी. इसमें टैंक जितना बड़ा होगा, उसे बनाने की लागत भी बढ़ती चली जाएगी.  

इतनी लगात में मछली पालक 10 हजार लीटर क्षमता का एक टैंक बनवा सकते हैं. इतनी क्षमता वाले टैंक का मछली पालन के लिए लगभग 5 सालों तक इस्तेमाल किया जा सकता है.

लेकिन अगर आपके पास लागत नहीं है तो सरकार से सब्सिडी भी प्राप्त कर सकते हैं. बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन के लिए केंद्र सरकार सब्सिडी देती है. केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत बायोफ्लॉक सिस्टम लगाने के 60 प्रतिशत तक की सब्सिडी मिलती है.   

कितनी होती है कमाई

बायोफ्लॉक तकनीक से अगर कोई 10 हजार लीटर क्षमता वाले टैंक में मछलियां पालता है तो उससे लगभग 6 महीने में ही करीब 3 से 4 क्विंटल मछलियां बेची जा सकती हैं. इतनी मछलियों की कीमत लगभग 40 हजार होगी. इस लिहाज से 10 हजार लीटर के एक टैंक से सालाना 80 हजार रुपये की मछली बेच सकते हैं. वहीं अगर इन टैंकों में महंगी मछलियां पाली जाएं तो यह लाभ 4.5 गुना अधिक हो सकता है.

इस तकनीक से किसान सिर्फ 1 लाख रुपये खर्च करके हर साल 1 से 2 लाख रुपये की कमाई कर सकते हैं. इस तकनीक में एक बार सिस्टम तैयार होने के बाद अगले छह महीने के बाद से भी मुनाफा मिलना शुरू हो जाता है.

इन मछलियों का पालन कर सकते हैं

बायोफ्लॉक तकनीक में तिलिपियां, मांगुर, केवो, कमनकार जैसी कई प्रजातियों की मछलियों का उत्पादन कर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.

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