भारत ना सिर्फ कृषि प्रधानदेश है, बल्कि पशुपालन में भी अग्रणी है. छोटे-बड़े किसान आज भी पशुपालन को प्रमुखता से अपनाते हुए चलते हैं. छोटे और सीमांत किसान जीवनयापन के लिए तो बड़े किसान और व्यवसायिक लिहाज से पशुपालन कर रहे हैं. यही कारण है कि पशुपालन में तेज वद्धि दिखाई दे रही है. पशुपालन एक उभरता हुआ स्वरोजगार का माध्यम बन रहा है जो ना सिर्फ लाभ, बल्कि दूसरों के लिए भी रोजगार के अवसर पैदा कर रहा है.
डेटा के मुताबिक, भारत में लगभग दो करोड़ लोग आजीविका के लिए पशुपालन पर आश्रित हैं. पशुपालन सेक्टर का भारत की जीडीपी में लगभग 4% और कृषि सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 26% का योगदान है. ऐसे में पशुपालक ऐसे पशुओं को पालना ज्यादा पसंद करते हैं, जो मुनाफे को बढ़ाए. इसके लिए सही नस्ल के पशुओं का चयन बहुत आवश्यक है.
ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी भैंस पालन को सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है. इसकी वजह यह कि ज्यादातर भैंसें कम देखभाल में भी ज्यादा दूध देती हैं. यही कारण है कि व्यवसाय के दृष्टिकोण से भैंस को अन्य पशुओं के मुकाबले बहुत बेहतर माना जाता है. अगर आप भी डेयरी बिजनेस के लिहाज से भैंस पालने की योजना बना रहे हैं और अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं तो मुर्रा नस्ल की भैंस पालना फायदेमंद साबित हो सकता है. भैंस की यह नस्ल अत्यधिक लोकप्रिय है.
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मुर्रा भैंस (Murrah Buffalo) की खासियत की बात करें तो यह दुनिया की सबसे दुधारू भैंस मानी जाती है, जो एक वर्ष में लगभग 2000 से 3000 लीटर तक दूध देती है. जब भी भैंस पालन की बात आती है तो मुर्रा नस्ल का जिक्र सबसे पहले होता है. इस नस्ल की भैंसों के सिर पर छोटे और अंगूठी के आकार के सींग होते हैं, जिनमें थोड़ा नुकीलापन भी रहता है. इनके सिर, पूंछ और पैरों के बाल का रंंग सुनहरे होता है.
इस भैंस की पूंछ लम्बी होती है, जो पैरों तक लटकती है साथ ही पिछला भाग सुविकसित होता है. भैंस का रंग काला और पूंछ का निचला भाग सफेद रंग का होता है. इसकी गर्दन और सिर पतला, थन भारी और लंबे होते हैं. इसकी घुमावदार नाक इसे अन्य नस्लों से अलग पहचान दिलाती है. यह एक ब्यांत में 2000-2200 लीटर तक दूध देती है. साथ ही दूध में फैट की मात्रा 7 प्रतिशत होती है. इस नस्ल के नर का औसत वजन 575 किलोग्राम और मादा का औसत वजन 430 किलोग्राम होता है.
भैंस की सबसे प्रसिद्ध नस्ल है का मूलस्थान हरियाणा राज्य को माना जाता है. अब यह हरियाणा के हिसार, रोहतक और जींद और पंजाब के पटियाला और नाभा जिलों में भी पाई जाती है. मुर्रा को काली, खुंडी और डेली के नाम से भी जाना जाता है.