Dairy Cooperative आज के वक्त में पशुपालकों की दो बड़ी जरूरतें हैं, पहली दूध बेचकर अच्छा मुनाफा मिल जाए और दूसरी ये कि जब जरूरत हो तो बिना देर किए और बिना किसी परेशानी के वित्तीय सहायता मिल जाए. इसके लिए जरूरी है कि डेयरी किसानों को कोऑपरेटिव वाला मुनाफा मिले न कि कॉर्पोरेट वाला. एक्सपर्ट का कहना है कि इसी को देखते हुए सहकारिता मंत्रालय ने Cooperation Amongst Cooperatives की शुरूआत की है. इसके तहत पशुपालन और डेयरी से जुड़े लोगों के खाते कोऑपरेटिव बैंकों में खोलने की सुविधा दी गई है.
जैसे गुजरात में 93 फीसद डेयरी कोऑपरेटिव के खाते सहकारी बैंकों में खुले हुए हैं. इतना ही नहीं गुजरात में माइक्रो ATM के मॉडल से प्रदेश के पशुपालकों को बड़ा फायदा मिल रहा है. एक्सपर्ट का कहना है कि मिल्क कोऑपरेटिव से ही पशुपालकों और डेयरी किसानों का भला होगा. क्योंकि कोऑपरेटिव को ग्राहकों से जो पैसा वापस मिलता है उसका 75 फीसद डेयरी किसान और पशुपालकों को पास कर दिया जाता है.
डेयरी एक्सपर्ट का कहना है कि कोऑपरेटिव डेयरी क्षेत्र में उपभोक्ता के पास से आने वाले पैसे में से 75 फीसद से ज्यादा किसानों को वापस मिलता है. जबकि कॉर्पोरेट सेक्टर में किसानों को सिर्फ 32 फीसद पैसा ही वापस मिलता है. इसलिए जरूरत इस बात की है कि हमें देश के हर किसान के लिए इस अंतर को कम करने का लक्ष्य रखना चाहिए. इसके साथ ही कॉर्पोरेट सेक्टर से जुड़े डेयरी किसानों से 16 करोड़ टन गोबर को कोऑपरेटिव में लाने की कोशिश करनी चाहिए.
डेयरी एक्सपर्ट के मुताबिक देश में 23 राज्यस्तरीय मिल्क कोऑपरेटिव हैं, लेकिन हमें श्वेत क्रांति-2 के तहत हर राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश में एक राज्यस्तरीय कोऑपरेटिव की स्थापना करनी चाहिए. देश के 80 फीसद जिलों में मिल्क कोऑपरेटिव बनाने का लक्ष्य रखना चाहिए. इतना ही नहीं मौजूदा वक्त की 28 मार्केटिंग डेयरियों की संख्या बढ़ाकर तीन गुना कर सकते हैं. अच्छी खबर ये है कि मीथेन और कार्बनडाइऑक्साइड के उत्सर्जन में बहुत कमी आई है, इसलिए इसका सौ फीसद कार्बन क्रेडिट किसानों के बैंक खाते में जाना चाहिए और सर्कुलरिटी का असली मतलब भी यही है.
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