देश के ग्रामीण इलाकों में बकरी पालन का रोजगार अब तेजी से बढ़ रहा है. बकरी पालन के व्यवसाय से जुड़कर कई किसान आर्थिक तौर पर मजबूत भी हो रहे हैं और जीवन-यापन में बदलाव ला रहे हैं. इसलिए भारत में खेती-किसानी के बाद बड़े पैमाने पर बकरी पालन किया जा रहा है. लेकिन कई बार किसानों को पशुपालन की कई जानकारियां नहीं होती हैं. ऐसे में कम जानकारी के अभाव में पशुपालकों को बहुत बार भारी नुकसान भी उठाना पड़ता है. नुकसान से बचने के लिए यह जानना जरूरी है कि बकरी पालन में हर तीन महीने में बाड़े में इन 5 बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है. साथ ही कुछ बातों की सावधानियां भी रखनी चाहिए नहीं तो पशुपालकों को नुकसान हो सकता है.
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एक ही चारागाह में बकरियों को ज्यादा समय तक चरने नहीं देना चाहिए, ऐसा करने से उन्हें कृमि रोग हो सकता है. इस रोग के फैलने से कई बार बकरियों की मौत भी हो जाती है. ऐसे में इन सभी बातों का ध्यान रखना चाहिए. बता दें कि बकरियां ठंड और बरसात सहन नहीं कर पाती. ऐसे में अधिक ठंड में बकरियों को चरने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए. वहीं, बरसात में गीली जगह, दलदल में चराई नहीं कराना चाहिए. इसके अलावा बीमार बकरियों को चरने नहीं भेजना चाहिए, फिर जब बकरियों के गर्भावस्था के अंतिम दो सप्ताह और बच्चा जनने के दो सप्ताह तक चराना सही नहीं होता है.
हर रोज बकरियां जब चरने जाएं उसके बाद बाड़े की अच्छे से सफाई करनी चाहिए. साथ ही जहां बकरियों को चराने के लिए छोड़ें उस जगह को पहले से देखकर निश्चित करने कि वहां बकरी के चरने के लिए पर्याप्त चारा हो. वहीं, बकरियां और बड़े जानवर साथ-साथ न चराएं. इसके अलावा बकरियों को चरने के लिए छोड़ने से पहले दाने की आधी मात्रा खिलाएं और वापस आने के बाद आधी मात्रा दें. वही, ठंड और बरसात के दिनों में बकरियों को सूखा चारा जैसे चने का छिलका, तुवर का छिलका, 400 से 500 ग्राम प्रति बकरी के हिसाब से खाने के लिए दें.