अब गर्मियों का तो नाम रह गया है कि गर्म मौसम के चलते पशुओं को हरे चारे की कमी हो जाती है. जबकि सच तो ये है कि पशुपालकों को हर एक मौसम में चारे की कमी से जूझना पड़ता है. जिसकी एक वजह मौसम के साथ-साथ कम होते चारागाह भी हैं. लेकिन फीड और फोडर एक्सपर्ट की मानें तो अभी हालात इतने नहीं बिगड़े हैं कि हम कुछ कर नहीं सकते. अगर बात गर्मियों की है तो उसके लिए सर्दियों से ही हरे चारे की तैयारी शुरू कर सकते हैं.
इस मौसम में कुछ ऐसी फसलें और घास होती हैं जिसका साइलेज और हे बनाकर सर्दियों के लिए स्टोर कर सकते हैं. यही सलाह बरसात के दिनों के लिए भी दी जाती है. क्योंकि कई बार ऐसे मौके आते हैं जब हरा चारा खूब मिल जाता है. लेकिन पशुओं को हर वक्त हरा चारा भी नहीं खिला सकते हैं. ऐसे में काम आती है हे और साइलेज बनाने की तकनीक.
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एक्सपर्ट का कहना है कि जब छोटे ढेरों वाले पौधों की पत्तियां सूख जाए लेकिन मुड़ने पर एक दम न टूटें तो ऐसी ढेरियों को पलट देना चाहिए. चारे की ढेरियों को ढीला रखा जाता है, जिससे उसमें हवा पास होती रहे. 15 से 20 फीसद नमी तक ढेरों को सुखाकर बाद में इकट्ठा कर लेते हैं. अगर कटाई के तुरन्त बाद बाड़े, गोदाम, छप्पर में ना हो तो जमा कर लेते हैं. बरसीम, रिजका, लोबिया, सोयाबीन, जई, सुडान आदि से अच्छी हे तैयार होती है. मक्का और ज्वार से भी हे तैयार की जा सकती है. पतले मुलायम तनों तथा अधिक पत्तियों वाली घासों का हे सख्त घासों के मुकाबले अच्छा बनता है.
एक्सपर्ट का कहना है कि हे और साइलेज की क्वालिटी पर इस बात का भी असर पड़ता है कि उस फसल को कब और कैसे काटा गया है जिससे हे-साइलेज बनाया जा रहा है. वैसे ज्यादातर हे बनाने के लिए फसल की कटाई फूल आने पर कर देनी चाहिए. क्योंकि ज्यादा पकी हुई फसलों से तैयार किया हुआ हे अच्छा नहीं बनता है. इतना ही नहीं फसल के ज्यादा पकने पर प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस व पोटाश की मात्रा तनों में कम हो जाती है. फसल कटाई की प्रक्रिया तेजी से करनी चाहिए. फसल की कटाई सुबह 8-10 बजे के बाद ओस समाप्त हो जाने पर ही करना चाहिए. चारा अधिक सुखाने से प्रोटीन तथा कैरोटीन तत्वों पर इसका गहरा असर पड़ता है.
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