Goat Meat: बकरी नहीं बकरा कराता है जल्दी और ज्यादा मुनाफा, जानें कैसे 

Goat Meat: बकरी नहीं बकरा कराता है जल्दी और ज्यादा मुनाफा, जानें कैसे 

Goat Farming अब तो देश के साथ-साथ विदेशों से भी बकरे के मीट की डिमांड आ रही है. मौजूदा मीट बाजार को देखते हुए मीट कारोबार में अब मंदी आने की संभावनाएं ना के बराबर रह गई हैं. देश में कुल मीट उत्पादन का आंकड़ा करीब एक करोड़ टन है. इसमे बकरे के मीट की हिस्सेदारी करीब 15 फीसद है. 

नासि‍र हुसैन
  • Jun 09, 2025,
  • Updated Jun 09, 2025, 1:47 PM IST

Goat Farming अभी दो दिन पहले तक बकरों की जमकर खरीद-फरोख्त हुई है. बकरीद पर दी जाने वाली कुर्बानी के लिए करोड़ों रुपये के बकरे बिके हैं. एक अनुमान के मुताबिक एक महीने में ही करीब पांच करोड़ बकरे बिके हैं. गोट एक्सपर्ट बताते हैं कि बकरी पालक अपनी पूरे साल की कमाई इस एक महीने में कमा लेते हैं. यही वजह है कि बकरी से ज्यादा बकरा जल्दी और ज्यादा मुनाफा कराता है. क्योंकि तीन महीने की उम्र पर आते ही बकरा बाजार में बिकने के लिए तैयार हो जाता है. बहुत सारे बकरी पालक बकरीद के लिए पूरे साल बकरा पालते हैं. 

और बकरा पालने के लिए वो ज्यादातर बकरे का तीन से चार और पांच महीने का बच्चा खरीदकर लाते हैं. इसी वजह से बकरी पालन को किसानों का एटीएम भी कहा जाता है. इसकी दूसरी वजह ये भी है कि बकरी पालन ज्यादातर मीट के लिए किया जाता है. 12 महीने लोकल बाजार में और एक्सपोर्ट के लिए मीट की जरूरत होती है. केन्द्रीय पशुपालन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक मीट उत्पादन में भारत का नंबर पांचवां है.

मीट के लिए बकरों की आती है डिमांड 

गोट एक्सपर्ट के मुताबिक बकरीद पर और एक्सपोर्ट होने वाले मीट के लिए बकरों की डिमांड रहती है. क्योंकि बकरीद पर सिर्फ बकरों की कुर्बानी होती है बकरी की नहीं. वहीं एक्सपोर्ट में बकरों का ही मीट पसंद किया जाता है. हालांकि, वैसे तो अपने इलाके के हिसाब से मौजूद बकरे और बकरियों की नस्ल पालनी चाहिए. क्योंकि वही नस्ल अच्छी तरह से ग्रोथ करेगी. लेकिन खासतौर पर मीट के लिए पसंद किए और पाले जाने बकरों की जो नस्ल हैं उसमे बरबरी, जमनापरी, जखराना, ब्लैक बंगाल, सुजोत प्रमुख रूप से हैं. 

इसलिए बढ़ रही है बकरे के मीट की डिमांड 

गोट एक्सपर्ट का कहना है कि मीट एक्सपोर्ट के दौरान मीट में केमिकल और दूसरे तत्वों की जांच होती है. जांच में पास होने के बाद ही मीट का कंटेनर आगे बढ़ाया जाता है. कई बार एक्सपोर्ट के दौरान बकरे के मीट के कंसाइनमेंट लौटकर आए हैं. यह इसलिए होता था कि बकरों को जो चारा खिलाया जाता था उसमे कहीं न कहीं पेस्टीसाइड का इस्तेमाल हुआ होता था. लेकिन अब केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा ने आर्गनिक चारा उगाना शुरू कर दिया है. इस चारे को बकरों ने भी खाया. लेकिन जब उनके मीट की जांच हुई तो वो केमिकल नहीं मिले जिनकी शिकायत आती थी. 

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