हाल ही में गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी (GADVASU), लुधियाना और प्रोग्रेसिव डेयरी फार्मर (PDFA) के बीच एक बड़ा समझौता हुआ है. एक्सपर्ट की मानें तो इस समझौत के बाद पंजाब ही नहीं देशभर में डेयरी फार्मर की तस्वीर बदल जाएगी. समझौत के तहत पीडीएफए गडवासु की मदद से क्वालिटी का सीमन हासिल करने के लिए पंजाब के किसानों के डेयरी फार्म पर बुल की तालाश करेगा. बुल की जांच गडवासु करेगा और सीमन का उत्पादन भी करेगा. जिसका सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि इसके चलते अच्छे बुल तैयार होंगे.
वहीं साथ में सेहतमंद और ज्यादा दूध देने वाली बछियां भी पैदा होंगी. गौरतलब रहे पीडीएफए हर साल फरवरी में ज्यादा दूध देने वाली गाय-भैंसों की प्रतियोगिता आयोजित करता है. इनाम के रूप में ट्रैक्टर तक दिए जाते हैं. इस प्रतियोगिता में मुर्राह और नीली रावी भैंस, जर्सी और होल्स्टीन फ्रीजियन हिस्सा लेती हैं.
पंजाब और देशभर के किसानों को इस योजना से बड़ा फायदा होगा. समझौते के तहत होगा ये कि जो पशुपालक पीडीएफए से जुड़े हैं उनके नर बछड़ों की जांच गडवासु के साइंटिस्ट की टीम करेगी. जांच के दौरान बछड़ों का सिलेक्शन प्रजनन (सीमन) के लिए किया जाएगा. गडवासु ही तैयार बुल से लेकर फ्रोजन सीमन तैयार करेगा. फिर ये सीमन पीडीएफए की मदद से वापस उन्हीं पशुपालकों को गायों के लिए दे दिया जाएगा. इसका सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि ज्यादा से ज्यादा पशुपालकों की पहुंच अच्छी क्वालिटी के जर्मप्लाज्म तक हो सकेगी. स्थायी रूप से अच्छी नस्ल तैयार होंगी. वहीं सटीक डेटा उत्पादन के साथ सांडों का संतान परीक्षण भी संभव हो सकेगा.
इस मौके पर गडवासु के वाइस चांसलर डॉ. जे.पी.एस. गिल ने कहा कि यह समझौता मवेशियों की नस्ल को बढ़ाएगा, दूध उत्पादन में सुधार करेगा और किसानों को बेहतर लागत में प्रभावी और उच्च गुणवत्ता वाला जर्मप्लाज्म मिलेगा. वहीं यह पहल एक स्थायी पशुधन विकास मॉडल भी स्थापित करेगी जिसमें किसान नस्ल पूल में योगदान देंगे और अच्छे बच्चे हासिल करेंगे.
पीडीएफए के प्रेसिडेंट एस. दलजीत सिंह गिल ने इस मौके पर कहा कि पंजाब के डेयरी किसान ज्यादा दूध देने वाली एचएफ और जर्सी गायों को बहुत पसंद करते हैं. जिसके चलते एचएफ और जर्सी बुल के सीमन की डिमांड बढ़ी हुई है. हर कोई चाहता है कि उसे एक अच्छे बुल का सीमन मिले. इसके चलते कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा है. अभी तक सीमन दूसरे देशों से इंपोर्ट करना पड़ रहा है. उसमे भी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. बस इसी को देखते हुए ये पहल शुरू की गई है.
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