खुरपका-मुंहपका बीमारी यानी फुट एंड माउथ डिसीज़ (FMD) पशुओं को होने वाली एक जानलेवा बीमारी है. FMD खुर वाले पशुओं को होती है. पशुओं की इस बीमारी से दुनिया के कई देश चिंतित हैं. कुछ देश इस पर काबू पा चुके हैं तो कुछ काबू करने की कोशिश कर रहे हैं. भारत में भी इस पशु रोग को नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है. इस बीमारी के नियंत्रण के लिए वैक्सीन बनी हैं. हालांकि, कुछ छोटे-मोटी चीजों को ध्यान में रखने पर FMD को फैलने से रोका जा सकता है. इन उपायों से बहुत से देश खुरपका-मुंहपका मुक्त हो चुके हैं.
भारत सरकार के पशुपालन और डेयरी विभाग ने भी इससे जुड़ी एडवाइजरी जारी की है. FMD वायरस से होने वाला रोग है. यह कब सक्रिय होगा और कब फैलेगा, इसका समय तय नहीं है. ऐसे में केन्द्र सरकार ने पायलट प्रोजेक्ट की शुरूआत की है, जिसके तहत नौ राज्यों में एफएमडी फ्री जोन बनाने की तैयारी की जा रही है. हर साल इस बीमारी के टीकाकरण पर सरकार के करोड़ों रुपये खर्च होते हैं.
पशु एक्सपर्ट के मुताबिक, एफएमडी दुधारू पशु गाय-भैंस, भेड़-बकरी के अलावा घोड़े आदि में होती है. ऐसे में पशुपालकों को इस बीमारी के लक्षणों की जानकारी होना बेहद ही जरूरी है. जितना जल्दी हो सके लक्षण पहचाना बहुत जरूरी है, ताकि रोग को अन्य पशुओं में फैलने से रोका जा सके और बीमार पशु के लिए भी जरूरी उपाय किए जा सकें.
FMD से ग्रसित पशु को 104 से 106 डिग्री फॉरेन्हाइट तक तेज बुखार आता है और उसकी भूख कम हो जाती है. साथ ही पशु में सुस्ती छाने के साथ मुंह से बहुत ज्यादा लार टपकती है. मुंहपका होने से अंदर और बाहर फफोले पड़ जाते हैं. इन्हें पशु की जीभ और मसूड़ों पर देखा जा सकता है. इसके अलावा खुर के बीच वाली जगह ज़ख्म हो जाते हैं. इसमें एक और बड़ा नुकसान यह है कि गाभिन पशु का गर्भपात तक हो जाता है और थन में सूजन आने से दूध देने में परेशानी होती है. एफएमडी पशु में बांझपन की समस्या भी लाती है.
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बरसाती मौसम में दूषित चारा, दूषित पानी पीने, खुले में चरने से पशुओं को एफएमडी होती है. पहले से रोग ग्रसित पशुओं से दूसरों में फैलने का खतरा रहता है. पशु एक्सपर्ट के मुताबिक, आसान उपायों से पशुओं को खुरपका-मुंहपका रोग से बचाया जा सकता है.
पशु रोग से पीड़ित हो या नहीं, उसका रजिस्ट्रेशन जरूर कराना चाहिए और पशु की ईयर टैगिंग कराना भी न भूलें. इसके अलावा पशु को साल में दो बार एफएमडी की वैक्सीन लगवानी चाहिए, जोकि सभी सरकारी केन्द्र मुफ्त में लगाया जाता है. यह सुनिश्चित करें कि पशुगृह साफ सुथरा और सूखा रहे.
रोगग्रसित पशु को अन्य स्वस्थ्य पशुओं से अलग रखना चाहिए. मुंह के घावों को पोटेशियम परमैंगनेट से धोना चाहिए. इसके अलावा बोरिक एसिड और ग्लिसरीन का पेस्ट बनाकर पशु के मुंह की सफाई करना चाहिए. वहीं, खुर के घावों को पोटेशियम या बेकिंग सोडा से धोना चाहिए और घावों पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाना चाहिए.