Fish Farming in Coat Pits जरूरी नहीं कि कुछ बड़ा करने के लिए बंद आंखों से ख्वाब ही देखे जाएं. कई बार इंसान की मजबूरी भी उसे बड़े रास्तों पर ले जाती है. ऐसी ही एक कहानी है आरा बस्ती गांव, रामगढ़, झारखंड के शशिकांत महतो की. शशिकांत उस परिंवार का हिस्सा हैं जिनकी जमीन कोयला खदान के लिए ले ली गई थी. परिवार सालों-साल जमीन के एवज में एक अदद नौकरी के लिए लड़ता रहा. कोयला खदान शुरू हुई और 1998 में बंद भी हो गई, लेकिन जमीन से विस्थापित परिवारों को नौकरी नहीं मिली. शशिकांत जैसे करीब चार दर्जन परिवारों की जमीन इस कोयला खदान के लिए ली गई थी. खदान बंद होने के बाद उम्मीद जागी कि अब ली गई जमीन वापस मिल जाएगी.
लेकिन खदान चलाने वाली कंपनी ने नियमनुसार 150 से 200 फीट गहरी खाली खदान (कोल पिट्स) को भरा नहीं और 50 के करीब परिवार 12 साल तक आस लगाए रहे. लेकिन उसके बाद इन्हीं परिवारों ने उस कोल पिट्स को तालाब के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. शशिकांत ने अपने जैसे और युवाओं को जोड़कर कोल पिट्स में मछली पालन शुरू कर दिया. लेकिन शशिकांत और उनकी टीम इसी पर नहीं रुकी और उन्होंने 15 किलो की मछली का उत्पादन कर रांची के फिशरीज डिपार्टमेंट को भी चौंका दिया.
शशिकांत महतो ने किसान तक को बताया कि जब खदान बंद होने के बाद भी हमे जमीन वापस नहीं मिली तो हमने खदान में भरे पानी में मछली पालन शुरू कर दिया. हम सब दोस्तों ने तीन-तीन हजार रुपये मिलाकर साल 2010 शुरूआत कर दी. लेकिन खुले और गहरे तालाब में मछली पालन करने की अपनी कुछ परेशानियां भी हैं. हमारे पास रोजी-रोटी का कोई और साधन नहीं था इसलिए कम मुनाफे के बावजूद हम खुले तालाब में मछली पालन करते रहे.
फिर एक दिन हमारे जाल में 15 किलो की कतला मछली फंस गई. उसी दौरान फिशरीज डिपार्टमेंट, रांची में प्रदर्शनी लगी हुई थी. हमने भी वहां स्टॉल लेकर अपनी 15 किलो की मछली रख दी. जिसे खूब पसंद किया गया. विभाग ने हमारी मछली को पहला इनाम दिया. इनाम के तौर पर विभाग ने पांच हजार रुपये का चेक और केज तकनीक दी.
शशिकांत ने बताया कि इनाम में विभाग से एक केज मिला था. छह वाई चार मीटर के एक केज में चार टन तक मछली का उत्पादन होता है. साल 2015 से केज की शुरुआत की थी. एक केज से हमे ऐसी कामयाबी मिली कि आज हम चार करोड़ की लागत से 126 केज में मछली पालन कर रहे हैं. कोल पिट्स 22 एकड़ में फैला हुआ है. इसमें हम पंगेशियस और मोनोसेस तिलापिया नस्ल की मछली पाल रहे हैं. हमारी मछली बिहार में सासाराम, गया समेत तीन जिलों में जा रही है. इसके अलावा रांची में भी हमारी मछली बिकती है. एक साल में 40 टन तक मछली का उत्पादन कर रहे हैं. मछली बेचने पर 35 फीसद तक मुनाफा हो जाता है.
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