Dagri Cow Dairy Farming: भारत के लगभग सभी राज्यों में देसी गायों की अलग-अलग नस्लें पाई जाती हैं, लेकिन इनमें से सबसे ज्यादा गुजरात में पाई जाती हैं. दरअसल गुजरात में चार रजिस्टर्ड देसी गायों की नस्लें पाई जाती हैं जिनमें कांकरेज, डांगी, गिर और डगरी गाय आदि शामिल हैं. गाय की देसी नस्ल डगरी गाय गुजरात की एक पारंपरिक खेती वाली मवेशी नस्ल है, जिसे "गुजरात मालवी" के नाम से भी जाना जाता है. वहीं बोली में डगरी का अर्थ 'देसी' या पुराना या मूल होता है. गुजरात में पाई जाने वाली अन्य नस्लों की तुलना में डगरी गाय बहुत कम दूध देती है.
एनडीडीबी के अनुसार डगरी गाय एक ब्यान्त में औसतन 316 लीटर तक दूध देती है, जबकि अधिकतम 650 लीटर और न्यूनतम 75 लीटर तक दूध देती है. वहीं इस नस्ल के बैल पहाड़ी इलाकों में खेती के लिए सबसे उपयुक्त माने जाते हैं. साथ ही इसके छोटे आकार की वजह से इसको कम मात्रा में चारा देना पड़ता है. इस वजह से ये गाय ग्रामीणों के साथ-साथ आदिवासियों के लिए काफी किफायती होती है. ऐसे में आइए डगरी गाय की पहचान और विशेषताएं जानते हैं-
• डगरी नस्ल के मवेशी मुख्यतः सफेद और कभी-कभी भूरे रंग के होते हैं.
• इस गाय के शरीर का आकार आम तौर पर मध्यम से छोटा होता है
• प्रौढ़ गायों की ऊंचाई औसतन 102.5 सेमी. होती है, जबकि बैलों की ऊंचाई 106.7 सेमी. होती है.
• प्रौढ़ गायों की औसतन लंबाई 110.8 सेमी. होती है, जबकि 115.5 सेमी. होती है.
• इस गाय का माथा सीधा होता है. सींग छोटे, पतले, आकार में उलटे या नुकीले सिरे वाले सीधे होते हैं.
• प्रौढ़ गायों का औसतन वजन 150-180 किलोग्राम, जबकि प्रौढ़ बैलों का वजन 210-250 किलोग्राम होता है.
• गायें कम दूध देती हैं. दूध का उत्पादन 1.5 से 4 लीटर प्रतिदिन होता है.
• एक ब्यान्त में औसतन 316 लीटर तक दूध देती है.
• डगरी गाय एक ब्यान्त में अधिकतम 650 लीटर और न्यूनतम 75 लीटर तक दूध देती है.
• दूध में औसत वसा 4.08 प्रतिशत पाया जाता है.
• डगरी गाय के दूध में न्यूनतम 3 प्रतिशत वसा पाया जाता है, जबकि अधिकतम 5.5 प्रतिशत वसा पाया जाता है.
• इस नस्ल के बैल पहाड़ी इलाकों में खेती के लिए सबसे उपयुक्त होते हैं.
• इस नस्ल के मवेशियों को कम चारे की आवश्यकता होती है.
• 'राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी)' मानदंडों के अनुसार, इसे खेती योग्य मवेशी के रूप में मान्यता दी गई है.
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डगरी नस्ल की गाय को होने वाली बीमारियों की बात करें तो पाचन प्रणाली की बीमारियां, जैसे- सादी बदहजमी, तेजाबी बदहजमी, खारी बदहजमी, कब्ज, अफारे, मोक/मरोड़/खूनी दस्त और पीलिया आदि होने की आशंका होती है, जबकि रोगों की बात करें तिल्ली का रोग (एंथ्रैक्स), एनाप्लाज़मोसिस, अनीमिया, मुंह-खुर रोग, मैगनीश्यिम की कमी, सिक्के का जहर, रिंडरपैस्ट (शीतला माता), ब्लैक क्वार्टर, निमोनिया, डायरिया, थनैला रोग, पैरों का गलना, और दाद आदि होने की आशंका होती है.