
बच्चा गाय-भैंस का हो या भेड़-बकरी का, ठंडा मौसम उन्हें बहुत परेशान करता है. कई तरह की छोटी-बड़ी बीमारियां हो जाती हैं. कई बार तो इन बीमारियों के चलते बछड़ों की जान पर भी बन आती है. निमोनिया और खूनी दस्त तक लग जाते हैं. और ये सब होता है हवा और पानी के चलते. एनिमल शेड में वेंटीलेशन बहुत मायने रखता है. बछड़ों को पानी कैसा पिलाया जा रहा है. ये वो बातें हैं जिनका बहुत ख्याल रखा जाता है. लेकिन, अगर आपने बछड़ों की देखभाल में जरा सी भी लापरवाही बरती तो उनकी मौत भी हो जाती है. क्योंकि बछड़े के जन्म के साथ ही पशुपालक का मुनाफा भी जुड़ा होता है.
एक तो बछड़े के जन्म लेते ही गाय-भैंस दूध देना शुरू कर देती है. दूसरा एक साल का होते ही बछड़ा भी मुनाफा देने वाला बन जाता है. लेकिन बछड़ों से मुनाफा कमाना आसान नहीं है. खासतौर से सर्दियों के मौसम में पशुओं को कई सारी परेशानियों से गुजरना पड़ता है. पशुपालन में बछड़ों का बहुत अहम रोल है. बछड़ा अगर मेल है तो फायदा कराएगा और अगर फीमेल है तब भी मोटा मुनाफा कराएगा. लेकिन जन्म से लेकर करीब छह महीने तक बछड़े की खास देशभाल बहुत जरूरी हो जाती है.
सर्दी के मौसम में बछड़ों में अक्सर दस्त होने की परेशानी सामने आती है. एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि कई बार ज्यादा दूध पिलाने के चलते बछड़ों को दस्त लग जाते हैं. इसकी एक बड़ी वजह पेट में कीड़े होना भी है. साथ ही पेट के दूसरे संक्रमण के चलते भी बछड़ों को दस्त हो जाते हैं. इसीलिए पशुपालकों को ये सलाह दी जाती है कि जन्म के फौरन बाद बछड़ों को खीस (कोलोस्ट्रम) पिलाना चाहिए. जब परेशानी ज्यादा बढ़ने लगे तो डाक्टर की सलाह पर मुंह के रास्ते या इंजेक्शन से एंटीबायोटिक और एंटीबैक्टीरियल दवाई देनी चाहिए. शरीर में पानी की कमी ना हो इसके लिए इलेक्ट्रोलाइट पाउडर पिलाना चाहिए. अगर दस्त के साथ ब्लड भी आने लगे तो फौरन ही डाक्टर को दिखाएं ये कोक्सीडियोसिस बीमारी भी हो सकती है.
ठंड के मौसम में बछड़ों को निमोनिया होने का डर भी लगा रहता है. निमोनिया के चलते बछड़ों को बुखार आने लगता है और सांस लेने में परेशानी होती है. यही परेशानी बछड़ों की मौत की वजह भी बनती है. एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि पशु शेड में नियमानुसार हवा आने-जाने के लिए खिड़की का ना होना भी निमोनिया की वजह है.
सर्दियों के दौरान बछड़ों को बुखार के साथ खूनी दस्त लगना एक बड़ी परेशानी है. कई बार तो जरा सी लापरवाही के चलते इसके चलते बछड़ों की मौत तक हो जाती है. एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो इस बीमारी को साल्मोनेलोसिस कहा जाता है. ऐसा होने पर घरेलू उपाय करने के वजाए सीधे डाक्टर को दिखाएं. इस बीमारी के इलाज में अक्सर एंटीबायोटिक और एंटीबैक्टीरियल दवाई दी जाती है.
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