भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में डेयरी उद्योग का महत्व अधिक है, यह लाखों परिवारों की आजीविका का आधार है. एक सफल डेयरी प्रणाली चार स्तंभों पर टिकी होती है -सही पोषण, प्रभावी प्रजनन, संतुलित देखभाल और प्रबंधन, और सही विपणन व्यवस्था. हालांकि इन सभी स्तंभों का खासा महत्व है, लेकिन डेयरी की सफलता काफी हद तक प्रजनन प्रबंधन पर निर्भर करती है, और इसमें ब्यांत अंतराल (दो प्रसवों के बीच की अवधि) का नियंत्रण अहम भूमिका निभाता है. एक आदर्श ब्यांत अंतराल 12 से 15 महीनों के भीतर होना चाहिए, जो दुग्ध उत्पादन और आर्थिक लाभ को सुनिश्चित करता है. इसलिए ब्यांत अंतराल को नियंत्रित करने के लिए वैज्ञानिक अनुशासन और तकनीकी जानकारी के साथ काम किया जाए, तो डेयरी पशुओं की उत्पादकता में स्थायी सुधार संभव है, जिससे किसानों को अधिकतम लाभ प्राप्त हो सकता है.
डेयरी पशुओं की ब्यांत अंतराल वह समय अवधि है जो किसी पशु के दो प्रसवों के बीच होती है. यह अवधि डेयरी की दुग्ध उत्पादन क्षमता और आर्थिक लाभ की दिशा तय करती है. एक अच्छी डेयरी व्यवस्था में आदर्श ब्यांत अंतराल 12 से 15 महीनों के बीच होना चाहिए. इससे न केवल दूध का उत्पादन स्थिर रहता है, बल्कि हर पशु का वार्षिक आर्थिक मूल्य अधिकतम होता है. अगर ब्यांत अंतराल लंबा हो जाए, तो दूध उत्पादन का चक्र बाधित हो जाता है, पशु बिना दूध के अधिक समय तक फार्म पर रहता है, जिससे देखभाल की लागत बढ़ती है और प्रति पशु औसत लाभ घट जाता है.
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (NDRI, 2021) की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगर ब्यांत अंतराल 13 महीनों से अधिक हो, तो प्रति पशु प्रति वर्ष दूध उत्पादन में 15-18 फीसदी की गिरावट देखी गई है. प्रजनन प्रबंधन ब्यांत अंतराल को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाता है. इसके लिए कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं और प्रजनन प्रबंधन से ब्यांत अंतराल में सुधार कर डेयरी बिजनेस को फायदेमंद बनाया जा सकता है.
जब कोई गाय या भैंस बच्चा देती है, तो उसके शरीर को वापस सामान्य स्थिति में आने के लिए समय चाहिए होता है. यह समय आमतौर पर 30 से 45 दिन का होता है, जिसमें गर्भाशय की सफाई और पुनः सक्रियता होती है. कई बार, पशु में यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाती, जिसके कारण गर्भाशय में हल्का संक्रमण, प्लेसेंटा का पूरा बाहर न आना, या पोषण की कमी हो सकती है.
तकनीकी सुझाव: पशु चिकित्सक से परामर्श कर ब्याने के 18-21वें दिन, पशु को एक इंट्रा-यूटराइन (गर्भाशय में दी जाने वाली दवा) एंटीबायोटिक (जैसे- लिक्विड ऑक्सीटेट्रासायक्लिन या बीटाडीन घोल) का उपयोग गर्भाशय संक्रमण से रक्षा करता है और उसे गर्भधारण के लिए तैयार करता है. यह एक सस्ती लेकिन अत्यधिक प्रभावशाली तकनीक है, जो प्रजनन चक्र को समय पर पुनः प्रारंभ करती है.
डेयरी पशु के लिए संतुलित आहार पोषण केवल दूध उत्पादन के लिए जरूरी नहीं, बल्कि गर्भाशय और अंडाशय के सही क्रियाशीलता के लिए भी बेहद जरूरी है. अगर पशु को कैल्शियम, फॉस्फोरस, जिंक, सेलेनियम, आयोडीन जैसे खनिज पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलते, तो वे अक्सर गर्मी में नहीं आते, या साइलेंट हीट (वह स्थिति जब पशु गर्मी में आता है लेकिन कोई बाहरी लक्षण दिखाई नहीं देते) की स्थिति उत्पन्न होती है. हर दूधारू पशु को प्रतिदिन 50-70 ग्राम खनिज मिश्रण देना चाहिए, चाहे वह दूध दे रहा हो या नहीं दे रही हो.
भारत में अनेक पशु समय पर गर्भ नहीं ठहराते क्योंकि पशु के गर्मी में आने की पहचान सही समय पर नहीं हो पाती. गर्मी में आने का एक चक्र (21 दिन) चूकना, डेयरी में महीनों की देरी का कारण बनता है. गाय या भैंस के गर्मी में होने के लक्षणों में शामिल हैं - बेचैनी और चहल-पहल, दूसरे पशुओं पर कूदना या खुद पर कूदने देना, दूध की मात्रा में कमी, जननांग से म्यूकस जैसा स्राव, और बाहरी जननांगों की सूजन. हीट डिटेक्शन (गर्मी में आने की पहचान) कार्ड और सुबह और शाम पशु का विशेष निरीक्षण कर पशु के गर्मी में आने की पहचान को आसान बनाया जा सकता है.
डेयरी पशुओं के लिए एक आदर्श प्रजनन चक्र को समझना और उसका पालन करना डेयरी व्यवसाय की सफलता के लिए अहम है. इस चक्र की शुरुआत पहले प्रसव (दिन 0) से होती है, जिसके बाद पशु की गर्भाशय सफाई और जांच का कार्य 30 से 45 दिनों के भीतर पूरा हो जाना चाहिए. इसके उपरांत, पशु के 45 से 60 दिनों के अंदर पहली हीट (गर्मी) में आने और उसके गर्भाधान का लक्ष्य रखा जाता है.
गर्भाधान के बाद, 75 से 90 दिनों के बीच गर्भ की जांच अवश्य करा लेनी चाहिए ताकि गर्भावस्था की पुष्टि हो सके. अगर यह चक्र सफलतापूर्वक पूरा होता है, तो पशु का अगला प्रसव 365 दिनों (12-15 माह) के भीतर हो जाता है, जो डेयरी की उत्पादकता और लाभ के लिए एक बेहतर स्थिति है. अगर इस चक्र को नियमित रूप से पालन किया जाए, तो हर गाय साल में एक बार बच्चा दे सकती है. यही है डेयरी की सफलता की परिभाषा है.
• हर पशु का ब्याने और गर्भाधान का रिकॉर्ड रखें.
• प्रसव के बाद पहले 7 दिनों तक विशेष निगरानी रखें.
• गर्भाधान के तीन महीने बाद पशु का गर्भ परीक्षण अवश्य कराएं.
• अगर तीसरे गर्भाधान में भी गर्भ न ठहरे, तो प्रजनन संबंधी रोग की जांच कराना आवश्यक है.
• मिनरल मिक्सचर और संतुलित आहार को डेयरी की हमेश वयवस्था बनाएं.
डेयरी पशुओं के प्रजनन को केवल एक बार का कार्य समझना गलत है. यह एक सतत प्रक्रिया है, जो पशु के स्वास्थ्य, आहार, देखभाल और तकनीकी जानकारी पर आधारित है. अगर ब्यांत अंतराल 12 से 15 महीनों के बीच नियंत्रित हो जाए, तो दूध का उत्पादन बढ़ेगा, पशु की जीवनभर की उत्पादकता बढ़ेगी, और डेयरी एक स्थायी, लाभकारी व्यवसाय बन सकेगा. यह मार्ग तभी संभव है जब किसान और पशुचिकित्सक एक साथ मिलकर काम करें.
लेखक: डॉ. रणवीर सिंह (ग्रामीण विकास, पशुपालन और नीति निर्माण प्रबंधन में चार दशकों का अनुभव)