राजस्थान में ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आय का मुख्य साधन पशुधन है. क्योंकि राजस्थान के 51 प्रतिशत किसानों के पास एक हेक्टेयर से कम भूमि है. इसीलिए पशुपालन से ही यहां के किसान गुजर-बसर करते हैं. लेकिन कई बार इन किसानों के पशुओं में थनैला नाम का रोग लग जाता है.
इससे दुधारू पशुओं की दूध देने की क्षमता प्रभावित होती है. कम दूध देने के कारण किसान की आय पर भी असर पड़ता है. इसीलिए इस रोग से बचाव के तरीके जानना जरूरी है. हालांकि आमतौर पर गायों में यह रोग तेजी से फैलता है.
थनैला दुधारू पशुओं को होने वाला एक रोग है. इस रोग के दौरान पशु के थनों काआकार बड़ा हो जाता है और इनमें सूजन आ जाती है. इसके अलावा गाय और भैंस के थनों में गांठ पड़ने लगती है एवं पस जम जाता है.
यही नहीं दूध का रास्ता भी संकराहो जाता है और दूध के स्थान से पस एवं दूषित दूध निकलने लगता है. इस दौरान पशु का व्यवहार पूरी तरह बदल जाता है. थनैला रोग होने के कारणों में पशु को बांधन की जगह पर सफाई नहीं होना, पशु के दूसरे रोगी पशु के संपर्क में आना, दुधारू पशु के थनों में दूध निकालते समय दूध बच जाने से भी थनैला रोग होता है.
थनैला रोग के लक्षण
आपके पशु में अगर कोई बीमारी आती है तो उसके व्यवहार में बदलाव आ जाता है. गाय या भैंस में थनैला रोग के कुछ लक्षण हैं जिन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है.
जैसे – पशु के थन का आकार बढ़ना, थनों में सूजन आ जाना , थन में गांठ पड़ जाना , गाय का बेचैन रहना और रंभाना, गाय के थन से दूध में खून या पस निकलना, थनों का रास्ता संकरा हो जाना, दर्द रहना और पशु का खाना-पीना छोड़ देना शामिल है.
थनैला रोग के घरेलू इलाज भी हैं. इनमें मवेशी के थनों पर अरंडी के तेल से मालिश करनी चाहिए. वहीं, रोगी पशु को कुछ दिनों तक दही और गुड़ खाने के लिए दे सकते हैं. इसके अलावा नीम के पत्तों को पानी में अच्छी तरह से उबाल कर थनों की सिकाई करनी चाहिए.
दूध में खून आने पर पशु को केले में कपूर की गोली डालकर खिलाई जा सकती है. इससे खून आना रुक जाएगा. पशु विशेषज्ञ कहते हैं कि इस तरह के घरेलू नुस्खों से थनैला का इलाज किया जा सकता है. फिर भी लाभ नहीं मिलता है तो नजदीकी पशु चिकित्सालय में डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.