Mangur Fish: मांगुर बनेगी मछलियों की ‘हीट शील्ड’... किशनगंज फिशरीज कॉलेज की जबर्दस्त खोज

Mangur Fish: मांगुर बनेगी मछलियों की ‘हीट शील्ड’... किशनगंज फिशरीज कॉलेज की जबर्दस्त खोज

Mangur Fish: फिशरीज कॉलेज किशनगंज मछली के क्षेत्र में कर रहा कई काम. उसकी एक खोज में पाया गया है कि मांगुर मछली के जीन से दूसरी मछलियां को गर्मी सहन करने में काबिलियत आ सकती है. अब इस शोध को आगे बढ़ाया जा रहा है ताकि बड़ा रिजल्ट हासिल किया जा सके.

fish farmingfish farming
अंक‍ित कुमार स‍िंह
  • Patna,
  • May 23, 2025,
  • Updated May 23, 2025, 4:10 PM IST

जल क्षेत्र में देश के अंदर बिहार की भागीदारी करीब 6 प्रतिशत के आसपास है. इस जल क्षेत्र का एक बड़ा उपयोग राज्य में मछली उत्पादन के तौर पर लिया जाता है. हालांकि जलवायु परिवर्तन के दौर में, जहां लोग परंपरागत मछली पालन से हटकर आधुनिक तरीके से मछली पालन कर रहे हैं, लेकिन तापमान में बढ़ोतरी की वजह से मछलियों के स्वास्थ्य से लेकर उनके विकास पर असर देखने को मिल रहा है. वहीं, बिहार का इकलौता फिशरीज कॉलेज किशनगंज अपने स्थापना के सात सालों के दौरान मछली के क्षेत्र में कई तरह के रिसर्च कर रहा है और सफलता भी हासिल कर रहा है. 

इसी कड़ी में अब मात्स्यिकी महाविद्यालय किशनगंज के वैज्ञानिकों द्वारा मांगुर मछली पर किए गए शोध में पता चला है कि इस मछली का एक जीन बढ़ते तापमान को सहन करने में काफी प्रभावशाली है. इसका उपयोग वैज्ञानिक अन्य मछलियों में करने की योजना बना रहे हैं ताकि जलवायु परिवर्तन के दौर में बढ़ रहे तापमान को अन्य मछली आसानी से सहन कर सकें. वहीं, महाविद्यालय के कैंपस में तैयार हो चुका, रेफरल लैब की मदद से मछलियों से जुड़ी किसी तरह की बीमारी का पता कुछ घंटों में लगाया जा सकता है.

ये भी पढ़ें: Fish Farming: मछलियों की ये तीन वैराइटी खूब कराती हैं मुनाफा, सबसे ज्यादा खाई जाती हैं यहां 

मांगुर मछली का खतरे में अस्तित्व

मात्स्यिकी महाविद्यालय, किशनगंज के डीन डॉ. वी.पी. सैनी कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के दौर में बढ़ते तापमान के साथ मांगुर राजकीय मछली का अस्तित्व खतरे में पड़ा हुआ है. बीते कुछ सालों से इसकी संख्या कम हो रही है. वहीं बहुत कम ऐसे रिसोर्स बचे हैं, जहां इसे आसानी से प्राप्त किया जा सकता है. बिहार सरकार द्वारा 2008 में मांगुर को राजकीय मछली घोषित किया गया था. आगे, डॉ. सैनी ने बताया कि मांगुर मछली का उपयोग कई रोगों की दवा के रूप में किया जाता है. वहीं अब इसके जीन को दूसरे मछलियों में डाला जाएगा, ताकि जलवायु परिवर्तन के दौर में बढ़ रहे तापमान को अन्य मछलियां सहन कर सकें.

पहला फेस पूरा, दूसरे फेस का शोध जारी

डॉ. वी.पी. सैनी कहते हैं कि मांगुर मछली के जीन का पता लगाने के मकसद से उसका पूरा डीएनए टेस्ट करने के लिए भारत सरकार द्वारा बायोटेक्नोलॉजी (निकरा) का प्रोजेक्ट लिया गया. करीब तीन साल तक मांगुर मछली का पूरा डीएनए टेस्ट करने के दौरान पता चला कि इसके अंदर "हीट टॉलरेंट" जीन है, जो अधिक तापमान सहन कर सकता है. यह पता लगने के साथ ही अब दूसरे फेस में इस जीन का उपयोग दूसरी मछलियों में कैसे किया जाए, इसको लेकर काम करना शुरू कर दिया गया है. अगर दूसरे फेस का शोध काम सही से पूर्ण हो जाता है तो जलवायु परिवर्तन के दौर में बढ़ते तापमान को अन्य मछलियां सहन कर सकती हैं.

ये भी पढ़ें: Drone use in Fisheries: ड्रोन से आसान हो जाएंगे मछली पालन के ये दो काम, कैमरे-सेंसर से हैं लैस

मछली जांच के लिए बिहार का पहला रेफरल लैब

मात्स्यिकी महाविद्यालय, किशनगंज के डीन कहते हैं कि अब मछलियों से जुड़ी किसी भी रोग की जांच आसानी से बिहार में की जा सकती है. वहीं, मछलियों में आने वाले रोग की जानकारी अब पहले ही किसान को मालूम चल जाएगी. पानी, मिट्टी की गुणवत्ता से लेकर मछली के भोजन से जुड़ी गुणवत्ता की पूरी जानकारी महाविद्यालय के कैंपस में स्थित रेफरल लैब की मदद से पता लगाई जा सकती है. वहीं, इस लैब में काम शुरू हो चुका है. कोई भी मछली पालक अपनी मछलियों से जुड़ी जानकारी हासिल कर सकते हैं.

 

MORE NEWS

Read more!