भारत में बारिश के मौसम का वाहक बनने वाले दक्षिण पश्चिम मॉनसून की इस साल 19 अक्टूबर को वापसी हो चुकी है. अब पूरे देश में इस साल के मॉनसून की बारिश से धरती को असमान मात्रा में पानी मिला. मौसम विभाग सहित अन्य मौसम संबंधी एजेंसियों ने मॉनसून का लेखा जोखा तैयार किया है. इसमें बादलों की कुछ पॉकेट में सघनता होना और अधिकांश पॉकेट में मामूली बारिश ही होने की बात सामने आई है. इस साल भी छितराए मानसून के कारण पूरे देश में Crop Pattern बदलाव की ओर है. इस कारण खरीफ की फसलों की बुआई का दायरा कम होने और इसका असर रबी सीजन की फसलों पर भी पड़ने का साफ अंदेशा है. मौसम विभाग के बारिश संबधी आंकड़े बताते हैं कि इस साल मॉनसून बेहद असमान बारिश वाला रहा.
भारत में दक्षिण पश्चिम मॉनसून (Southwest Monsoon) की अवधि 2 जून से 30 सितंबर तक मानी जाती है. इसके बाद मध्य अक्टूबर तक मॉनसून की पूरी तरह से वापसी हो जाती है. मौसम विभाग के मुताबिक इस साल पूरे देश में औसत से 6 फीसदी कम बारिश हुई. इसके बावजूद देश का 31 फीसदी इलाका सूखाग्रस्त रहा. मॉनसून के असमान वितरण का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केवल 5 राज्य (बिहार, झारखंड, केरल, मणिपुर और मिजोरम) ही बारिश की कमी वाले राज्य रहे. जबकि आम तौर पर ये राज्य बारिश की अधिकता के लिए जाने जाते रहे हैं.
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भारत में खेती मॉनसून पर आधारित है. ऐसे में मॉनसून के असमान वितरण का असर खेती पर पड़ना तय है. जानकारों की राय में इसका पहला असर खरीफ सीजन की फसलों पर पड़ा. बारिश की कहीं कमी और कहीं अधिकता के कारण, खरीफ सीजन की मुख्य फसल धान का रकबा प्रभावित होने के रूप में देखा गया. समय से धान की बुवाई न हो पाने के कारण फसल पर रोगों के प्रकोप का खतरा बढ़ गया. इसके अलावा खरीफ फसलों के विलंबित होने से रबी सीजन की फसलें भी देर से बोई जा सकेगी. कुल मिलाकर मौसम चक्र के गड़बड़ होने से फसल चक्र भी इस साल गड़बड़ी के दायरे में आ गया है.
मॉनसून के असमान पैटर्न को देखते हुए यूपी के तमाम इलाकों में खरीफ सीजन के दौरान धान की बुवाई अगस्त के आखिरी सप्ताह तक चलती रही. काफी देर से बुआई होने के कारण बुंदेलखंड सहित अन्य इलाकों में धान की फसल अक्टूबर में फलत की स्थिति में आने से पहले ही तमाम तरह के रोगों का शिकार हो गई. झांसी के जिला कृषि अधिकारी केके सिंह ने बताया कि पिछले साल भी कमोबेश यही स्थिति थी. कुछ इलाकों में समय से पहले बारिश होने के कारण किसानों ने धान की अगेती फसल बो दी थी. जबकि कुछ इलाकों में बारिश देर से होने के कारण किसान धान की बुवाई देर से कर सके.
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सिंह ने कहा कि देर से बोई गई फसलों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहद कम होती है. ऐसे में रोग का सामान्य प्रकोप होने पर भी फसल खराब हो जाती है. मौसम चक्र में बदलाव के कारण फसलों में नए नए रोग देखने को मिल रहे हैं. उन्होंने बताया कि पिछले साल धान में बाल आने पर सफेद पड़ गई और उसमें दाना ही नहीं पनप सका. इसे किसानों ने सफेदा रोग कह कर पुकारा.
सिंह ने बताया कि इस साल नया रोग धान को लगने की शिकायत किसानों से मिल रही हैं. इसमें धान का पूरा पौधा लाल पड़ जाने से उसमें बालें भी नहीं लगी. यह प्रकोप देर से बोई गई फसलों में ही लगा है. इस पर किसान अपनी मर्जी से दवाओं का छिड़काव कर रहे हैं, लेकिन उसका कोई लाभ नहीं हो रहा है. ऐसे में जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर किसानों को चाहिए कि वे कम से कम गेहूं और धान जैसी मुख्य फसलों को बोने में समय का ध्यान रखें.
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