भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने शुक्रवार को अपने लंबी अवधि के मौसम पूर्वानुमान में कहा है कि दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून से सितंबर) के दौरान पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश सहित उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में सामान्य से कम बारिश होने की आशंका है. वहीं, पूरे मानसून सीजन के दौरान एलपीए 96 से 92 फीसदी रहने की आशंका है. जबकि 96-104 प्रतिशत बारिश के एलपीए को सामान्य माना जाता है. हालांकि, मानसून के दौरान देशभर के शेष इलाकों में सामान्य बारिश होने की संभावना है. गौरतलब है कि उत्तर पश्चिम में कम बारिश देश के अन्न भंडार माने जाने वाले पंजाब और हरियाणा के किसानों के लिए परेशानी का कारण बन सकती है. ऐसे में आइए विस्तार से जानते हैं आईएमडी ने मानसून 2023 के लिए लंबी अवधि के पूर्वानुमान में क्या कुछ कहा है-
शुक्रवार को मौसम विभाग का लंबी अवधि के पूर्वानुमान का दूसरा चरण था. पहले चरण के पूर्वानुमान 11 अप्रैल को जारी किए गए थे. वर्षा ऋतु के लिए लंबी अवधि के पूर्वानुमान में मौसम विभाग ने कहा है कि प्रायद्वीपीय क्षेत्रों दक्षिण कर्नाटक और उत्तरी तमिलनाडु, राजस्थान और लद्दाख के कुछ इलाकों को छोड़कर देश के ज्यादातर हिस्सों में जून में कम बारिश होगी. वहीं, भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में जल का गर्म होना शुरू हो गया है और अल नीनो की स्थिति बनने की 90 प्रतिशत संभावना है, जो भारत में मॉनसून की बारिश को प्रभावित करती है.
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हालांकि, मॉनसून के दौरान हिंद महासागर में इसके लिए अनुकूल मौसमी दशा ‘आईओडी’ बनने की संभावना है जो अल नीनो के प्रतिकूल प्रभाव को दूर करेगा और देश के अधिकांश हिस्सों में मॉनसून को पहुंचाएगा. इन मौसमी दशाओं के मद्देनजर आईएमडी ने उत्तर-पश्चिम क्षेत्र को छोड़कर, देश के शेष हिस्से के लिए सामान्य मॉनसून के अपने पूर्वानुमान को बरकरार रखा है.
सामान्य से कम बारिश को देखते हुए, खरीफ सीजन में धान की खेती करने वाले किसानों को धान की रोपाई के लिए भूमिगत जल पर अधिक निर्भर रहना पड़ सकता है,जो पंजाब में पहले से ही तेजी से कम हो रहा है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, 30 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान और बासमती की सिंचाई के लिए किसान पहले से ही पंजाब में लगभग 14 लाख नलकूपों के माध्यम से पानी खींच रहे हैं.
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वहीं पंजाब और हरियाणा दोनों सरकारें किसानों को धान की खेती कम करने के लिए प्रोत्साहन राशि दे रही हैं. दरअसल, पंजाब सरकार चावल की सीधी बिजाई (डीएसआर) के लिए 1,500 रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि देती है. डीएसआर पद्धति से लगभग 15 प्रतिशत कम पानी की खपत होती है.
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