जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेंट चेंज 2100 सदी की सबसे बड़ी चुनौती बन कर उभरा है. जिससे सबसे अधिक खेती और पानी प्रभावित हो रहे हैं. मसलन, खेती और किसानी पर जलवायु परिवर्तन की मार से खाद्यान्न संकट पैदा होने की संभावनाएं हैं. तो वहीं पानी पर जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियां जल संकट पैदा कर सकती है. ऐसे में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिए खेती और पानी के क्षेत्र में काफी काम हो रहे हैं. तो वहीं इसको लेकर भारत सरकार भी गंभीर है. आइए जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन से उपजने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए कृषि और पानी के क्षेत्र को कैसे तैयार किया जा सकता है और भारत सरकार इसको लेकर क्या काम कर रही है.
जलवायु परिवर्तन से वातावरण के तापमान में वृद्धि होने की संभावानाएं हैं. वातावरण में इस बढ़ाेत्तरी से फसलों में सिंचाई की भी अधिक आवश्यकता पड़ सकती है. ऐसी स्थिति में वर्षा जल को एकत्रित करके सिंचाई हेतु प्रयोग में लाना एक उपयोगी कदम साबित हो सकता है. वाटर शेड प्रबंधन के माध्यम से हम वर्षा जल को संचित करके सिंचाई के रूप में उपयोग कर सकते हैं. इससे एक ओर हमें सिंचाई में मदद मिलेगी, वहीं दूसरी ओर भू-जल पुनर्भरण में भी सहायक सिद्ध होगा.
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रासायनिक खेती से हरित गैसों में वृद्धि होती है, जो वैश्विक तापन में सहायक होती हैं. इसके अलावा रासायनिक खाद व कीटनाशकों के प्रयोग से जहां एक ओर मृदा की उत्पादकता घटती है, वहीं दूसरी ओर मानव स्वास्थ्य को भी भोजन के माध्यम से नुकसान पहुंचाती है. अतः इसलिए जैविक कृषि की तकनीकों पर अधिक जोर देना चाहिए. एकल कृषि के स्थान पर मिश्रित (समग्रित) कृषि लाभदायक होती है.
जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों को ध्यान में रखते हुए ऐसे बीज और नई किस्मों का विकास किया जाए जो हर मौसम के अनुकूल हो. हमें फसलों के प्रारूप तथा उनके बीज बोने के समय में भी परिवर्तन करना होगा. ऐसी किस्मों को विकसित करना होगा, जो अधिक तापमान, सूखे तथा बाढ़ जैसी संकटमय परिस्थितियों को सहन करने में सक्षम हों. पारंपरिक ज्ञान तथा नई तकनीकों के समन्वयन और समावेशन द्वारा मिश्रित खेती तथा इंटरक्रोपिंग करके जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटा जा सकता है.
देश में जलवायु स्मार्ट कृषि (Climate smart Agriculture-CSA) विकसित करने की ठोस पहल की गई है, जिसके लिए राष्ट्रीय परियोजना भी लागू की गई है. दरअसल, जलवायु स्मार्ट कृषि जलवायु परिवर्तन की तीन परस्पर चुनौतियों से निपटने की कोशिश करती है. जिसमें उत्पादकता और आय बढ़ाना, जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होना तथा कम उत्सर्जन करने में योगदान करना शामिल है. उदाहरण के लिए, यदि सिंचाई की बात करें तो जल के उचित इस्तेमाल के लिए सूक्ष्म सिंचाई (माइक्रो इरिगेशन) को लोकप्रिय बनाना. जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन होना यह दर्शाता है कृषि को जलवायु परिवर्तन सहन करने हेतु सक्षम बनाना.
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भारत ने काफी पहले ही जलवायु परिवर्तन के प्रति स्वयं को अनुकूलित करने तथा सतत विकास मार्ग के द्वारा आर्थिक और पर्यावरणीय लक्ष्यों को एक साथ हासिल करने का प्रयास शुरू कर दिया था. इसी के तहत 2008 में जलवायु परिवर्तन के लिए राष्ट्रीय कार्ययोजना जारी की गई. जलवायु परिवर्तन पर निर्मित आठ राष्ट्रीय एक्शन प्लान में से एक (राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन) कृषि क्षेत्र पर भी केंद्रित है.
राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन वर्ष 2008 में शुरू किया गया. यह मिशन ‘अनुकूलन’ पर आधारित है. इस मिशन द्वारा भारतीय कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक प्रभावी एवं अनुकूल बनाने हेतु कार्यनीति बनाई गई. इस मिशन के उद्देश्यों में कुछ प्रमुख बातों पर ध्यान दिया गया है, जैसे कृषि से अधिक उत्पादन प्राप्त करना, टिकाऊ खेती पर जोर देना, प्राकृतिक जल-स्रोतों व मृदा संरक्षण पर ध्यान देना, फसल व क्षेत्रानुसार पोषक प्रबंधन करना, भूमि-जल गुणवत्ता बनाए रखना तथा शुष्क कृषि को बढ़ावा देना इत्यादि. इसके साथ ही वैकल्पिक कृषि पद्धति को भी अपनाया जाएगा और इसके तहत जोखिम प्रबंधन,कृषि संबंधी ज्ञान सूचना व प्रौद्योगिकी पर विशेष बल दिया जाएगा.
इसके अलावा भारत सरकार इस दिशा में भी ध्यान दे रही है कि अगर अगर हमारी वाटर यूज इफिसिएंसी बढ़ जाए, यानी हम जल के इस्तेमाल में समझदारी बरतें तो हमें काफी फायदा होगा. साथ ही जो 2047 तक पानी की मांग 1400 बिलियन क्यूबिक मीटर पहुंचने की आशंका है, उसे भी कम किया जा सकता है.
स्वाभाविक रूप से हमें पानी के संचयन के साथ वाटर यूज इफिसिएंसी बढ़ाने के लिए तकनीक का सहारा लेने की अत्यंत आवश्यकता है. कृषि के क्षेत्र में, जहां सबसे ज्यादा पानी का इस्तेमाल होता है, नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल कर पानी की समझदारी और उचित मात्रा में उपयोग करने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं.
आज देश में सिंचाई की स्मार्ट माइक्रो इरिगेशन प्रणाली को प्रमोट करने से कृषि सेक्टर में 20 प्रतिशत पानी की बचत हो रही है. कृषि सेक्टर में पानी की सही उपयोगिता सुनिश्चित करने में राज्य सरकारें भी अहम रोल अदा कर रही हैं. खासतौर पर हरियाणा सरकार ने चावल की खेती को हतोत्साहित करने के लिए इंसेंटिव स्कीम चलाई है, इस पायलेट प्रोजेक्ट के माध्यम से राज्य में लगभग एक लाख हेक्टेयर रकबा दूसरी फसलों से कवर हुआ है. महाराष्ट्र में भी गन्ना और कपास की खेती के लिए ड्रिप इरिगेशन यानी सूक्ष्म सिंचाई पद्धति को बढ़ावा दिया जा रहा है. इस दिशा में मध्य प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात की सरकारों ने भी बेहतर कार्य किया है.
इसी तरह Per Drop More Crop के जरिए कम पानी में अधिक उत्पादन लिया जा रहा है. इसके अलावा, सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देने के लिए सरकार अलग-अलग तरीके से काम कर रही है. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना इन अहम कदमों में शामिल है. भारत में पानी राज्यों का विषय है. इसलिए पानी के मुद्दे पर केंद्र और राज्य का सहयोग और समन्वय अत्यंत अहम हो जाता है.
सरकार और जल शक्ति मंत्रालय के पहल पर विशेष रूप से नदी जोड़ो परियोजना में राज्यों के बीच सहयोग और समन्वय दिख रहा है. उदाहरण के तौर पर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सरकार केन बेतवा रिवर लिंक प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में उत्साह के एक साथ आए; यह राज्यों के बीच पानी के मुद्दे पर सहमति और समन्वय की बड़ी मिसाल है; इस दिशा में जल शक्ति मंत्रालय अन्य राज्यों के साथ भी मिलकर कार्य कर रहा है.
इस दिशा में आगे बढ़ते हुए सरकार ने उन भौगोलिक क्षेत्रों से जहां जल की उपलब्धता ज्यादा है, वहां से कम उपलब्धता वाले क्षेत्रों में पानी पहुंचाने के लिए 30 इंटर लिंकिंग रिवर प्रोजेक्ट आइडेंटीफाइड किए हैं. यह एक महत्वपूर्ण कार्य है. इस कार्य को कार्य करने के लिए राज्यों की साझी सहमति बनाने की दिशा में सरकार ठोस तरीके से आगे बढ़ रही है.
इसी तरह 2015 में ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना’ का वृहद दृष्टिकोण देश के समक्ष रखा गया था. इसके तहत जल शक्ति मंत्रालय, राज्य सरकारों की जल संसाधन से संबंधित परियोजनाओं को पूरा करने के लिए उन्हें वित्तीय सहायता मुहैया कराता है. कुछ समय पूर्व ही अर्जुन सहायक कैनाल परियोजना का लोकार्पण कर बुंदेलखंड के किसानों को अनमोल सौगात दी गई.
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कृषि उत्पादन प्रकृति और पर्यावरण के अनुकूल प्रक्रियाओं के साथ कृषि उत्पादन और मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए भारत सरकार भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति कार्यक्रम (बीपीकेपी) की एक समर्पित योजना को कार्यान्वित कर रही है. आज भारत विश्व में जैविक खेती की संख्या में सबसे आगे है. सर्वेक्षण के अनुसार 2021-22 तक जैविक खेती के तहत 44.3 लाख और 59.1 लाख हेक्टेशयर रकबा लाया गया है. इस बार के बजट में प्राकृतिक खेती को बढ़ाने के लिए सरकार ने अगले 3 वर्षों में एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए मदद मुहैया कराने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए देश में 10,000 जैव इनपुट संसाधन केंद्र स्थापित करने की पहल की गई है.
जल संरक्षण और संचयन को ध्यान में रखते हुए 2019 में जल शक्ति अभियान शुरू किया गया था. इस अभियान के तहत अब तक शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में 46 लाख से अधिक जल संरक्षण और जल संचयन से जुड़े कार्य किए जा चुके हैं. 36 करोड़ से अधिक पौधे लगाए जा चुके हैं. 43 हजार से अधिक प्रशिक्षण अभियान और कृषि मेले आयोजित किए जा चुके हैं. 374 जल शक्ति केंद्र स्थापित किए गए हैं. हाल में ही भारत सरकार ने जल शक्ति अभियान: कैच द रेन 2023 की शुरुआत की है.
भारत के लिए अच्छी बात यह है कि भूजल संरक्षण की दिशा में पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने जो प्रयास किए हैं उसके बड़े ही उत्साहवर्धक परिणाम सामने आए हैं. सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के डायनेमिक ग्राउंड वाटर रिसोर्स असेसमेंट के आंकड़े बताते हैं कि 2022 में देश में अत्यधिक भूजल दोहन वाले ब्लाकों की संख्या 1006 दर्ज की गई, जबकि 2017 में यह आंकड़ा 1186 था. इसी प्रकार अतिसंवेदनशील ब्लाकों की संख्या भी 2017 के 313 से घटकर अब 260 रह गई है. दूसरी ओर 2017 में जहां सुरक्षित ब्लाकों की संख्या 4310 थी वह अब 2022 में बढ़कर 4780 हो गई है.
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