खेती और पानी के ल‍िए आफत बना क्लाइमेट चेंज, खाद्यान्न संकट से न‍िपटना चुनौती

खेती और पानी के ल‍िए आफत बना क्लाइमेट चेंज, खाद्यान्न संकट से न‍िपटना चुनौती

यह एक तथ्य है कि वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक चुनौती के रूप में उभर कर सामने आया है। यह कोई एक देश या किसी एक भौगोलिक स्थिति से संबंधित अवधारणा नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक अवधारणा है जो पूरी दुनिया के लिए चिंता का कारण बनती जा रही है

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खेती और पानी के ल‍िए आफत बना क्लाइमेट चेंज, खाद्यान्न संकट से न‍िपटना चुनौती  जलवायु पर‍िवर्तन की वजह से बेमौसम बार‍िश और लू जैसी घटनाएं आम हुई है. इस साल भी मार्च में बेमौसम बार‍िश ने फसलों को नुकसान पहुंचाया है. फोटो साभार GFX संदीप भारद्वाज

वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेंट चेंज एक वैश्विक चुनौती के रूप में उभर कर सामने आया है. यह कोई एक देश या किसी एक भौगोलिक स्थिति से संबंधित अवधारणा नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक अवधारणा है, जो पूरी दुनिया के लिए चिंता का कारण बनती जा रही है. हाल के दिनों में भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों ने बेमौसम बरसात, सूखा और बर्फबारी का सामना किया है. इससे एक तरफ कृषि क्षेत्र पर संकट गहराने से खाद्य सुरक्षा के समक्ष चुनौतियां देखने को मिल रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ कोविड-19 जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ता जा रहा है. चूंकि, हमारे देश की करीब 65-70 प्रतिशत आबादी कृषि क्षेत्र पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से निर्भर है, इसलिए आज भारत के लिए जलवायु परिवर्तन के कृषि और पानी पर होने वाले प्रभावों को गंभीरता से देखने की जरूरत है. 

वैश्विक जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (CCPI) के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की समस्या को कम करने की दिशा में काम करने वाले शीर्ष दस देशों की सूची में भारत का नाम भी शामिल है, लेकिन कई रिपोर्ट यह भी बताते हैं कि इस चुनौती का सामना करने के लिए हमें सतत प्रयास करते रहना होगा. जलवायु की बदलती परिस्थितियां कृषि को सबसे अधिक प्रभावित कर रही हैं.

2039 तक 9 फीसदी उत्पादन ग‍िरने की संभावनाएं 

जलवायु परिवर्तन के कारण आज भारत ही नहीं विश्व कृषि इस सदी में गंभीर गिरावट का सामना कर रही है. जलवायु परिवर्तन पर IPCC की रिपोर्ट की मानें तो, वैश्विक कृषि पर जलवायु परिवर्तन का कुल प्रभाव स‍िर्फ नकारात्मक ही नहीं हैं. कुछ फसल इससे लाभान्वित भी हो रही हैं, लेकिन फसल उत्पादकता पर जलवायु परिवर्तन का कुल प्रभाव सकारात्मक से ज्यादा नकारात्मक हो रहा है. 

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इस रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि अगर समय रहते जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए हर संभव प्रयास नहीं किए गए तो भारत में 2010-2039 के बीच इसके कारण लगभग 4.5 प्रतिशत से 9 प्रतिशत के बीच उत्पादन के गिरने की संभावना है.

एक अन्य शोध के अनुसार, यदि वातावरण का औसत तापमान 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है तो इससे गेहूं का उत्पादन 17 प्रतिशत तक कम हो सकता है. इसी प्रकार 2 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने से धान का उत्पादन भी 0.75 टन प्रति हेक्टेयर कम होने की संभावना है.

बचाना होगा पानी

विश्व जनसंख्या में भारत की हिस्सेदारी 18% है, लेकिन वैश्विक अनुपात की दृष्टि से पीने योग्य स्वच्छ जल के 4% संसाधन ही यहां उपलब्ध हैं. हमारी वर्तमान जल आवश्यकता लगभग 1,100 बिलियन क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष अनुमानित है, जिसके 2050 तक 1,447 बिलियन क्यूबिक मीटर तक पहुंच जाने का अनुमान है. हम कुल बारिश के पानी का महज 300 मिलियन क्यूबिक मीटर का ही संचयन कर पा रहे हैं. वहीं, अगर कृषि की बात करें तो भूजल पर हमारी निर्भरता सर्वाधिक है. देश में शुद्ध सिंचित क्षेत्र का 60 प्रतिशत भूजल के माध्यम से सिंचित है.

आलम यह है कि भारत में अनुमानतः भूजल का 85% कृषि में, 5% घरेलू तथा 10% उद्योग में इस्तेमाल किया जाता है. पानी की जरूरत से जुड़ी इस चुनौती पर खरा उतरने के लिए हमें इसलिए भी गंभीर होना होगा क्योंकि भारत दुनिया में भूजल का इस्तेमाल करने के मामले में शीर्ष पर है. हम अकेले इतना ज्यादा भूजल का दोहन करते हैं, जितना अमेरिका और चीन मिलकर करते हैं. लिहाज हमें भूजल का दोहन कम करने के साथ वर्षा के जल का संचयन और जल स्रोतों के संरक्षण पर भी विशेष ध्यान देना होगा.

ऐसा नहीं है कि दुनिया में किसी देश ने इस समस्या का समाधान नहीं किया. हमारे सामने इजराइल का बेहतरीन उदाहरण है, जिसने जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को देखते हुए कृषि और पानी के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य किया और पानी की कमी वाले इस देश में आज आवश्यकता से अधिक पानी मौजूद है. जहां एक ओर, सभी को लगता है कि इस इजराइल में आए इस बदलाव का कारण उसके विशाल विलवणीकरण संयंत्र या डीसैलिनैशन प्लांट्स हैं, लेकिन ये महज इस कहानी का एक हिस्सा भर हैं.

खाद्यान्न संकट से न‍िपटने के ल‍िए तलाशने होंगे उपाय 

खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, 2050 तक विश्व की जनसंख्या लगभग 9 अरब हो जाएगी. जिससे खाद्यान्न की आपूर्ति और मांग के बीच अंतर को कम करने के लिए मौजूदा खाद्यान्न उत्पादन को दोगुने करने की आवश्यकता पड़ेगी. इसके लिए भारत जैसे कृषि प्रधान देशों को अभी से नवीन उपाय तलाशने होंगे. हमारी कृषि व्यवस्था को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने के अनेक उपाय हैं, जिन्हें अपनाकर कुछ हद तक कृषि पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है. साथ ही पर्यावरण मैत्री तरीकों का प्रयोग करके कृषि को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल किया जा सकता है.

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