Delhi Pollution: दिल्ली में आर्टिफिशियल बारिश कराना नहीं है सही सॉल्युशन, एक्सपर्ट ने अब दे दी ये सलाह

Delhi Pollution: दिल्ली में आर्टिफिशियल बारिश कराना नहीं है सही सॉल्युशन, एक्सपर्ट ने अब दे दी ये सलाह

दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए किए गए क्लाउड सीडिंग ट्रायल को पर्यावरणविदों ने अल्पकालिक राहत बताया. विशेषज्ञों का कहना है कि कृत्रिम वर्षा अस्थायी उपाय है, असली समाधान प्रदूषण के स्रोतों पर नियंत्रण, उत्सर्जन में कमी और जनजागरूकता से ही संभव है.

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Delhi Pollution: दिल्ली में आर्टिफिशियल बारिश कराना नहीं है सही सॉल्युशन, एक्सपर्ट ने अब दे दी ये सलाहदिल्ली में कृत्रिम बारिश पर पर्यावरणविदों ने दी सलाह (सांकेतिक तस्‍वीर)

राजधानी दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को कम करने के लिए की गई क्लाउड सीडिंग (कृत्रिम वर्षा) की कोशिश को पर्यावरण विशेषज्ञों ने “अल्पकालिक राहत” करार दिया है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रयोग कुछ समय के लिए प्रदूषण घटा सकता है, लेकिन इससे समस्या की जड़ पर कोई असर नहीं होगा. दिल्ली सरकार ने मंगलवार को आईआईटी कानपुर के सहयोग से शहर के कुछ हिस्सों में क्लाउड सीडिंग ट्रायल किया.

'प्रदूषण की जड़ पर ध्‍यान देने की जरूरत'

पर्यावरणविद् विमलेंदु झा ने कहा, “बारिश प्रदूषण को अस्थायी रूप से कम कर सकती है, लेकिन यह दीर्घकालिक समाधान नहीं है. हर बार इसे दोहराया नहीं जा सकता. इसके बजाय सरकार को प्रदूषण की जड़ पर ध्यान देना चाहिए.”

उन्होंने यह भी चेताया कि क्लाउड सीडिंग में इस्तेमाल होने वाले रसायन- जैसे सल्फर और आयोडाइड, मिट्टी और जल स्रोतों को प्रभावित कर सकते हैं. उन्होंने सवाल उठाया, “यह शहर-विशेष उपाय है, लेकिन पड़ोसी राज्यों से आने वाले प्रदूषक का क्या?”

यह स्मॉग टावर जैसा उपाय: ज्योति

लेखिका और क्लीन-एयर एक्टिविस्ट ज्योति पांडे लवकरे ने इसे पहले के अल्पकालिक उपायों जैसे स्मॉग टावर की तरह बताया. उन्होंने कहा, “प्रदूषण घटाने का एकमात्र तरीका उत्सर्जन कम करना है, लेकिन कोई इसके लिए तैयार नहीं दिखता. बादलों या हवा में रसायन डालना सिर्फ दिखावा है, समाधान नहीं.”

वहीं, पर्यावरण विशेषज्ञ कृति गुप्ता ने कहा कि वैज्ञानिक प्रयोग जरूरी हैं, लेकिन इन्हें प्राथमिक उपाय नहीं माना जाना चाहिए. उन्होंने कहा, “वास्तविक सुधार के लिए जनजागरूकता, निजी वाहनों का सीमित उपयोग, निर्माण स्थलों की निगरानी और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर ध्यान देना होगा.” 

दिल्ली सरकार ने 7 मई को 3.21 करोड़ रुपये की लागत से पांच क्लाउड सीडिंग ट्रायल की मंजूरी दी थी, लेकिन मौसम की प्रतिकूल स्थितियों के कारण इसे कई बार टालना पड़ा. हाल में बुराड़ी क्षेत्र में किए गए परीक्षण में पर्याप्त नमी (50%) न होने के कारण बारिश नहीं हो सकी.

विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक सरकार उत्सर्जन स्रोतों पर सख्त नियंत्रण, स्वच्छ ऊर्जा और क्षेत्रीय समन्वय पर ठोस कदम नहीं उठाती, तब तक ऐसे प्रयोग केवल “क्षणिक राहत” भर साबित होंगे.

क्‍या होती है कृत्रिम बारिश ?

क्लाउड सीडिंग यानी कृत्रिम वर्षा एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसमें बादलों से कृत्रिम रूप से बारिश कराई जाती है. इस तकनीक में विमान के जरिए सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड या रॉक सॉल्ट जैसे रसायन बादलों में छोड़े जाते हैं, जिससे उनमें मौजूद नमी संघनित होकर बारिश की बूंदों में बदल जाती है. आमतौर पर 500 से 6000 मीटर की ऊंचाई पर बने निम्बोस्ट्रेटस बादल इसके लिए सबसे उपयुक्त होते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, इसकी सफलता दर 60 से 70 प्रतिशत तक होती है. अगर सही परिस्थितियां मिलें तो यह तकनीक प्रदूषण और सूखे से जूझते शहरों के लिए राहत का उपाय बन सकती है. (पीटीआई)

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