अरुणाचल प्रदेश की यानुंग जामोह लेगो ने आदी (Adi) समुदाय की पांरम्पारिक चिकित्सा पद्धतियों को पुनर्जीवित किया है. इसके लिए उन्हें इस वर्ष पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुना गया है. राज्य के पूर्वी सियांग जिले की रहने वाली 58 वर्षीय महिला यानुंग जामोह लेगो राज्य कृषि विभाग में उप निदेशक रह चुकी हैं. उन्होंने कहा कि मैं पिछले 30 वर्षों से मरीजों का इलाज कर रही हूं. इस वजह से कुछ लोग उन्हें "जड़ी-बूटियों की रानी" भी कहते हैं. यानुंग जामोह लेगो जब कृषि विभाग में थीं तब से वह हर्बल प्रथाओं के अध्ययन में लगी हुई हैं और पूरी तरह से है विभिन्न मानव रोगों के हर्वल पौधों से उपचार के लिए समर्पित हैं.
यानुंग जामोह लेगो ने यह सीख अपनी मां से मिली, जो एक पारंपरिक चिकित्सक थीं. उनके पिता एक सामाजिक कार्यकर्ता थे. यानुंग जामोह लेगो जंगलों से जड़ी-बूटियाँ इकट्ठा करने में लगी रहती थीं, जबकि उनके पति उनके कामों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेते थे, हालांकि वे जरूरत के समय जंगल से जड़ी-बूटियाँ इकट्ठा करने में मदद करते थे. यह शुरुआत में आदि समुदाय को जैव संरक्षण के औषधियों को संरक्षण और इसके लाभों के बारे में बताने के लिए बैठकें और अनौपचारिक शिक्षण अभियानों का संचालन किया करती थीं.
हर्बल पौधों से मलेरिया, पीलिया, गैस्ट्राइटिस, एसिडिटी जैसे रोगों से बचाव के लिए हर्बल तरीके से इलाज किया जाता था. इसके अलावा लोगों को अपेंडिसाइटिस बवासीर,अस्थमा, कैंसर, रेबीज, गुर्दे की पथरी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस निमोनिया, खांसी,साइनसाइटिस और टॉन्सिलाइटिस आदि रोगों के इलाज किए जाते थे. रोगी को इस विधि से इलाज के लिए उपचारकर्ता के आदेशों का पालन करने के लिए तैयार रहना चाहिए. यानुंग जामोह लेगो ने अभी तक 10,000 से अधिक रोगियों को चिकित्सा देखभाल प्रदान की है, जो पूरी तरह पारंपरिक हर्वल बिधियो पर आधारित है.
यानुंग जामोह लेगो हर साल 5,000 से अधिक औषधीय पौधों को रोपती हैं. उन्होंने स्वास्थ्य सेवा में आत्मनिर्भरता की संस्कृति को बढ़ावा देते हुए पूर्वी सियांग जिले के घरों में हर्बल किचन गार्डन की स्थापना को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया है. वह हर्बल विशेषज्ञता के लिए अपनी एक अलग से पहचान बना चुकी हैं. यानुंग जामोह लेगो आदिवासी के आदी समुदाय से हैं. इस जनजाति के लोग मुख्य रूप से पूर्वी सियांग, ऊपरी सियांग, सियांग और पूर्वोत्तर राज्य के निचले दिबांग घाटी जिलों के कुछ हिस्सों में रहते हैं. पूर्वोत्तर भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य का सबसे अधिक जनसंख्या वाला एक समुदाय है. यानुंग जामोह लेगो वित्तीय बाधाओं और व्यक्तिगत चुनौतियों के बावजूद, हर्बल चिकित्सा में उनके उल्लेखनीय योगदान ने आदि जनजाति की पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली को पुनर्जीवित करने और अरुणाचल प्रदेश के समृद्ध औषधीय ज्ञान को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाई है.
अपनी हर्बल विशेषज्ञता के लिए अलग पहचान बनाने वाली यानुंग जामोह लेगो पारंपरिक उपचार विधियों की तलाश करने वालों के लिए आशा की किरण बन गई हैं. इसके अतिरिक्त, उन्होंने जड़ी-बूटियों के औषधीय गुणों के बारे में 1 लाख से अधिक लोगों को शिक्षित किया है और इन जड़ी-बूटियों की समझ और उपयोग को बढ़ाने के लिए स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के लिए प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए हैं. इन्होंने स्वास्थ्य सेवा में आत्मनिर्भरता की संस्कृति को बढ़ावा देते हुए पूर्वी सियांग जिले के घरों में हर्बल किचन गार्डन की स्थापना को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया है. आदी जनजाति और पूरे अरुणाचल प्रदेश की खोई हुई पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली के पुनरुद्धार के लिए यानुंग जामोह लेगो का समर्पण अटूट रहा है. औषधीय जड़ी-बूटियों के समृद्ध पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करने और बढ़ावा देने, भावी पीढ़ियों के लिए इसकी निरंतरता सुनिश्चित करने में उनकी अहम भूमिका रही है. जिसके लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया है.
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