बुजुर्ग किसान को हल्दी की नई किस्म 916 पर मिला पेटेंट, काली मिर्च समेत कई फसलों की किस्में कर चुके हैं विकसित

बुजुर्ग किसान को हल्दी की नई किस्म 916 पर मिला पेटेंट, काली मिर्च समेत कई फसलों की किस्में कर चुके हैं विकसित

बालाकृष्णन ने काली मिर्च की खेती में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं, जिसमें अश्वथी और सुवर्णा किस्मों सहित विभिन्न किस्मों का विकास करना और पेटेंट हासिल करना शामिल है. 75 वर्षीय बालाकृष्णन ने एसएसएलसी पूरा करने के बाद खेती को चुना.

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बुजुर्ग किसान को हल्दी की नई किस्म 916 पर मिला पेटेंट, काली मिर्च समेत कई फसलों की किस्में कर चुके हैं विकसित  हल्दी की किस्म के साथ किसान.

केरल के वायनाड के एक बुजुर्ग किसान ने अपने अनुभव और मेहनत से नई उपलब्धि हासिल की है. किसान अलंचेरी बालकृष्णन वायनाड के कम्मना के रहने वाले हैं. उन्होंने हल्दी की एक नई किस्म '916' विकसित की है. जो उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि है. उनकी इस सफलता के लिए हाल ही में उन्हें भारत सरकार के तहत पौध किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण से '916' नामक इस नई विकसित हल्दी किस्म के लिए पेटेंट प्रदान किया गया है. इससे पहले भी किसान अलंचेरी बालकृष्णन काली मिर्च समेत कई फसलों की किस्में विकसित कर चुके हैं.  

75 साल के किसान अलंचेरी बालाकृष्णन ने इससे पहले काली मिर्च की खेती में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं, जिसमें अश्वथी और सुवर्णा किस्मों सहित विभिन्न किस्मों का विकास करना और पेटेंट हासिल करना शामिल है. द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार अलंचेरी बालाकृष्णन ने सीनियर सेकेंडरी स्कूल की पढ़ाई पूरा करने के बाद खेती को अपने करियर के रूप में चुन लिया. इसके बाद से ही वे कई दशकों से खेती कर रहे हैं और इस क्षेत्र में नई उपलब्धियां हासिल कर रहे हैं. उन्हें अपने बगीचे की देखभाल करते समय लगभग 10 साल पहले मदर प्लांट के सहयोग से 916 हल्दी का कंद मिला था. 

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अधिक होती है हल्दी की पैदावार

बालकृष्णन ने देखा कि यह एक विशेष प्रकार की हल्दी थी जो ना सिर्फ अधिक पैदावार देती थी. बल्कि, दूसरी हल्दी की तुलना में अधिक चमकदार थी और रंग भी अधिक सुनहरा था. द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार बालाकृष्णन के ने बताया कि उन्होंने पौधे के फूल खिलने दिए और मदर प्लांट से लगभग 30 बीज प्राप्त किए. बाद में उन्होंने उन्हें बोया, और लगभग सभी बीज अंकुरित हो गए.  बालाकृष्णन का प्रयोग सफल रहा क्योंकि उन्होंने एक मदर प्लांट के पौधे से एक किलोग्राम तक की पैदावार हासिल की जिसकी विशेषता पहले की तरह ही थी. 

75 साल के किसान अलंचेरी बालकृष्णन.

हल्दी किस्म बनाने में 7 साल लगे   

इस सफलता के बाद बालाकृष्णन ने पौध किस्मों और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण से अपनी इस उपलब्धि के लिए औपचारिक मान्यता की मांग की. हालांकि इस हल्दी को विकसित करने में उन्हें सात साल का समय लगा था. पर फिर उन्हें इसके लिए अपने नाम का पेटेंट हासिल करने में 15 साल का समय लग गया. बालकृष्णन बताते हैं कि यह पेटेंट उनके लिए एक बड़ी प्रेरणा था. फिलहाल बालकृष्णन अपनी नई विकसित मिर्च की किस्म प्रीथी के लिए पेटेंट मिलने का इंतजार कर रहे हैं. 

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कई सम्मान भी मिल चुके

इसके अलावा बालकृष्णन वायनाड मिर्च की 12 देशी किस्मों को भी सक्रिय रूप से संरक्षित करने का कार्य रहे हैं, जिनमें करीमकोट्टा, वालेनकोट्टा और कल्लुवलनकोट्टा जैसी मिर्च की किस्में शामिल हैं. बालकृष्णन को उनके बेहतर कार्यों के लिए 2008 में केरल कृषि विश्वविद्यालय से किसान वैज्ञानिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. इसके बाद 2009 में राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन से राष्ट्रीय कृषि पुरस्कार मिला. 2023 में, उन्हें पौध संरक्षण में उनके प्रयासों के लिए राज्य जैव विविधता बोर्ड द्वारा भी सम्मानित किया गया.    
 

 

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