Women Farmer's Success Story: यूपी का सीतापुर (Sitapur News) जिला महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment) का मिसाल बन रहा है. यहां पर महिलाएं घर की दहलीज से लांघने में कोई संकोच नहीं कर रही हैं और घर परिवार की जिम्मेदारी संभालने के साथ-साथ यहां पर महिलाएं रोजगार के माध्यम से भी जुड़ी हैं. आजकल के कई युवा इन महिला किसानों से प्रेरणा ले रहे हैं. इनके योगदान को शब्दों में समेट पाना मुश्किल है. सीतापुर के मिश्रिख ब्लॉक की महिलाएं जलकुंभी से तरह-तरह के कई सुंदर प्रोडक्ट्स तैयार कर रही हैं और उन्होंने अपना खुद का ब्रांड खड़ा किया है. जिनके प्रोडक्ट्स की डिमांड सीतापुर, लखनऊ, नोएडा, दिल्ली, कुशीनगर और अयोध्या तक हो रही है. आज हम एक ऐसी सफल महिला किसान की कहानी बताने जा रहे है जिसने बहुत कम समय में समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. ये है सीतापुर के मिश्रिख ब्लॉक का रहने वाली नाजिया खातून...
इंडिया टुडे के डिजिटल प्लेटफॉर्म किसान तक से खास बातचीत में नाजिया खातून ने बताया कि वर्ष 2022 में ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान से ट्रेनिंग लेने के बाद जलकुंभी से होम डेकोरेशन के सामान बनाने का काम शुरू किया था. इस कार्य में मेरे साथ अनीता, शलेद्री और नीलम ने हाथ बढ़ाया, जिसका नतीजा है कि जलकुंभी से तैयार प्रोडक्ट्स की डिमांड बढ़ रही है.
नाजिया बताती हैं कि सबसे मजदूरों की मदद से जलकुंभी को नदी/तालाब से बाहर निकालकर उसके पत्तों को सुखाया जाता है. उन्होंने बताया कि जलकुंभी को पानी से साफ करतीं हैं. जड़ व पत्ते अलग कर तना सुरक्षित करतीं हैं. सूखने पर तना काला नहीं होता और उत्पाद में चमक आती है. उत्पाद बनाने में दफ्ती, गोंद, मोती, मूंगा, लटकन व चेन आदि का प्रयोग करती हैं. नाजिया समेत 3 महिलाओं की सालाना इनकाम 5 लाख रुपये के करीब है.
नाजिया ने आगे बताया कि अपने बनाए प्रोडक्ट्स को 'कुंभी' ब्रांडनाम से प्रोमोट कर रही हैं. वे एक से बढ़कर एक खूबसूरत पर्स, जूते, हैट, बॉटल कवर, गमले, सजावटी सामान जलकुंभी से बना रही हैं. उन्होंने बताया कि दिल्ली समेत यूपी के कई जिलों से हमारे बनाए गए प्रोडक्ट्स के आर्डर आ रहे है, वहीं ऑनलाइन आर्डर भी मिल रहे है.स्थानीय स्तर पर भी इनकी बहुत मांग है. नाजिया बतातीं हैं कि एक गमला व बैग बनाने में करीब 8 घटे लगते हैं.फैंसी बैग की लागत 300 रुपये, गमला व चप्पल अन्य उत्पाद बनाने में 50-60 रुपये खर्च होते हैं.
आरजू महिला स्वयं सहायता समूह के बैनर तले अपने सामानों के बेचने वाली नाजिया आज ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान की ट्रेनर हैं. उन्होंने बताया कि आज जलकुंभी के उत्पादों की पैकेजिंग और ब्रांडिंग पर हम लोग जोर दे रहे हैं. जलकुंभी के उत्पादों की मार्केटिंग के लिए प्रदेश में जगह-जगह स्टाल लगाना पड़ता है, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इसकी जानकारी हो सकें. नाजिया कई मंचों पर सम्मानित भी चुकी हैं.
बता दें कि जलकुंभी की वजह से गांव में बहुत समस्या सामने आती रहती है, कभी मवेशी इसमें फंस जाते थे तो तालाब होने के बावजूद मछली पालन भी लोग नहीं कर पाते है. आज यही जलकुंभी महिलाओं के लिए आय का जरिया बन रहा है. अब महिलाएं जलकुंभी को समस्या न मानकर उनको रोज़गार का जरिया मानती हैं. जिससे उनको एक के बाद एक लक्ष्य हासिल होता जा रहा है. जलकुंभी से बनी चीजें अब आस-पास के दूसरे इलाकों के लोगों को भी रास्ता दिखा रही हैं.
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