सोयाबीन की एक खास किस्‍म की खेती से 3 लाख रुपये कमा रहे हैं पुणे के किसान चंद्रकांत देशमुख, जानें कैसे  

सोयाबीन की एक खास किस्‍म की खेती से 3 लाख रुपये कमा रहे हैं पुणे के किसान चंद्रकांत देशमुख, जानें कैसे  

सोयाबीन वह फलीदार सब्जी है जो कई तरह के पोषक तत्‍वों से भरपूर होती है. प्रोटीन से लेकर इसमें विटामिन और मिनरल्‍स तक होते हैं जो इस सब्‍जी को और ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण बना देते हैं. लेकिन अब यही सब्‍जी पुणे के किसान चंद्रकांत देशमुख के लिए आय का भी अच्‍छा साधन बन गई है. वह इसकी एक खास किस्‍म की खेती में कुछ हजार रुपये का निवेश करके दस गुना ज्‍यादा कमा रहे हैं.

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सोयाबीन की एक खास किस्‍म की खेती से 3 लाख रुपये कमा रहे हैं पुणे के किसान चंद्रकांत देशमुख, जानें कैसे  सोयाबीन की खास किस्‍म से पुणे के किसान को हो रहा फायदा

सोयाबीन वह फलीदार सब्जी है जो कई तरह के पोषक तत्‍वों से भरपूर होती है. प्रोटीन से लेकर इसमें विटामिन और मिनरल्‍स तक होते हैं जो इस सब्‍जी को और ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण बना देते हैं. लेकिन अब यही सब्‍जी पुणे के किसान चंद्रकांत देशमुख के लिए आय का भी अच्‍छा साधन बन गई है. वह इसकी एक खास किस्‍म की खेती में कुछ हजार रुपये का निवेश करके दस गुना ज्‍यादा कमा रहे हैं. वह न सिर्फ इसे अपने जिले में बेच रहे हैं बल्कि दूसरे राज्‍यों को भी सप्‍लाई कर रहे हैं जिसकी वजह से उनकी आय में भी इजाफा हुआ है. चंद्रकांत देशमुख सोयाबीन की स्‍वर्ण वसुंधरा की खेती में सफलता की नई कहानी लिख रहे हैं. 

व्‍यवसायिक खेती का बेहतर तरीका  

सोयाबीन की हरी फली तब काटी जाती है जब बीज फली की चौड़ाई का 80 से 90 प्रतिशत भर देते हैं. यह अपने बड़े आकार के बीजों, हाई शुगर लेवल, 75 प्रतिश से ज्‍यादा 2-और 3-बीज वाली फली, भूरे रंग के रोएं और चमकीले हरे रंग की फली और बीज के ऊपर के चढ़े कोट की वजह से अनाज वाली सोयाबीन से काफी अलग होती है. स्वर्ण वसुंधरा, सोयाबीन सब्‍जी की बेहतर किस्म है जिसे इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्‍चर रिसर्च (आईसीएआर) के पूर्वी क्षेत्र, पहाड़ी और पठार क्षेत्र के लिए कृषि प्रणाली अनुसंधान केंद्र, रांची के प्लांडू में डेवलप किया गया है. भारत में व्यवसायिक खेती के लिए सीवीआरसी की तरफ से इसे रिलीज किया गया है. 

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साल 2019 में लिए बीज 

देशमुख ने साल 2019 में आईसीएआर प्लांडू से 50 किलो स्वर्ण वसुंधरा बीज लिए थे. साल 2020 में उन्होंने महाराष्‍ट्र के परभणी तालुका के वारपुड गांव की काली मिट्टी में 10 एकड़ में 60 सेमी x15 सेमी की दूरी पर स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली से वसुंधरा की खेती की. उन्होंने प्रति एकड़ 15 क्विंटल ग्रेडेड (2- और 3-बीज वाली) हरी फली काटी.  

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चंद्रकांत देशमुख ने प्रति एकड़ सोयाबीन की स्वर्ण वसुंधरा किस्म की जो खेती की उसमें निवेश कुछ इस तरह से था- 

खेती की लागत- 30,000 रुपये जिसमें जमीन का पट्टा मूल्य, जमीन की तैयारी, खाद और उर्वरक, सिंचाई, अंतर कृषि प्रक्रिया, कीटनाशक, कटाई जैसी चीजें शामिल थीं. 
सकल आय-3,00,000 रुपये जिसमें सोयाबीन की फसल उपज: 15 क्विंटल, बाजार की कीमत 200 रुपये प्रति किलोग्राम शामिल थी. 
शुद्ध आय- 2,70,000 रुपये की . 

बीज को कैसे इकट्ठा करें

ब्लैंचिंग प्रक्रिया के लिए साफ की गई हरी फली को पांच मिनट के लिए गर्म पानी 90 डिग्री सेल्सियस में रखा जाता है. इसके बाद इसके असली रंग और बनावट को बनाए रखने के लिए ब्लैंच की गई फली को तुरंत 5 मिनट के लिए ठंडे पानी यानी 4 डिग्री सेल्सियस वाले तापमान में डुबोया जाता है.इसके अलावा, इन फलियों को डीप फ्रीजर में रखने से पहले 5 मिनट के लिए सामान्य पानी में डुबोया जाता है. 

देशमुख ने कई चरणों में इसके बीज की खरीद की और उसे -18 डिग्री सेल्सियस पर ब्लांच की गई हरी फलियों को इकट्ठा किया. फलियों को 18 महीने तक इकट्ठा किया जा सकता है. ब्लांच की गई और जमी हुई 2 और 3 बीज वाली हरी फलियां 300 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेची जा रही हैं. देशमुख बाजार की मांग के अनुसार जमी हुई फलियों को पुणे, मुंबई, बेंगलुरु और हैदराबाद भेज रहे हैं. एक बीज वाली फली के छिलके वाले हरे बीज ब्लांच करने के बाद 400 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचे जा रहे हैं. इसे नमक के साथ खाया जाता है.

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बीज से बनता है टोफू भी 

देशमुख ने 7 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से सूखे पके हुए बीज काटे. इन्‍हें 100 से 150 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचा जा रहा है. देशमुख सूखे परिपक्व बीज से टोफू यानी सोया पनीर भी बना रहे हैं. एक किलो बीज से 2.25 किलो टोफू मिलता है. स्वर्ण वसुंधरा का टोफू सफेद रंग का, मुलायम और बिना बीन के स्वाद वाला होता है. इसकी महाराष्‍ट्र में बहुत मांग है. स्वर्ण वसुंधरा टोफू 300 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचा जा रहा है. स्वर्ण वसुंधरा के 1 क्विंटल अनाज से 225 किलोग्राम सोया पनीर बनाने की लागत 13000 रुपये है. 225 किलोग्राम सोया पनीर की बिक्री से शुद्ध लाभ 54,500 रुपये है. भुने हुए अनाज का प्रयोग उच्च गुणवत्ता वाले सत्तू बनाने के लिए भी किया जा रहा है.

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80 से 85 दिन में तुड़ाई 

इसकी हरी फलियां बुवाई के 70 से 75 दिनों के बाद पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं. छिलके वाली चमकदार हरी फलियों की 50 से 55 प्रतिशत वसूली होती है. 80 से 85 दिनों की फसल अवधि में तीन बार तुड़ाई होती है. यह पाचन में आसान होती है और प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, लिपिड, आवश्यक फैटी एसिड, फास्फोरस, आयरन, कैल्शियम, जिंक, थायमिन, राइबोफ्लेविन, विटामिन - ई, आहार फाइबर और शुगर का एक बेस्‍ट सोर्स है. छिलके वाली हरी फलियों का उपयोग स्वादिष्ट पकी हुई सब्जियों के रूप में किया जाता है. जबकि पके हुए सूखे बीजों से कई और प्रोडक्‍ट्स बनाए जाते हैं.

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