युवा इंजीनियर का कमाल... पराली से बना दिया ईको-फ्रेंडली थर्माकोल

युवा इंजीनियर का कमाल... पराली से बना दिया ईको-फ्रेंडली थर्माकोल

दिल्ली के रहने वाले युवा इंजीनियर अर्पित धूपर ने देश में बढ़ते प्रदूषण और पराली जलाने की समस्या को ध्यान में रखते हुए एक स्टार्टअप की शुरूआत की है. इसमें वह धान की फसल के अवशेष पराली का सदुपयोग करते हुए बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग प्रोडक्ट बना रहे हैं. इस कंपनी का नाम धरक्षा इको सलूशन है.

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युवा इंजीनियर का कमाल... पराली से बना दिया ईको-फ्रेंडली थर्माकोलअपनी यूनिट पर अर्पित धूपर अपने साथी के साथ

पराली बीते कुछ सालों में समस्या बन कर उभरी है. पंजाब-हर‍ियाणा में पराली जलाने की घटनाओं से द‍िल्ली-एनसीआर में प्रदूषण बढ़ता है. पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की इन घटनाओं को देखते हुए दिल्ली के रहने वाले युवा इंजीनियर अर्पित धूपर ने एक स्टार्टअप की शुरूआत की है. इसमें वह धान की फसल के अवशेष पराली का सदुपयोग करते हुए बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग प्रोडक्ट बना रहे हैं. इस कंपनी का नाम धरक्षा इको सलूशन है. अर्पित ने किसान तक से बात करते हुए बताया कि वो हरियाणा के फरीदाबाद में अपनी एक यूनिट में पराली और मशरूम कल्चर को मिलाकर एक ईको-फ्रेंडली थर्मोकोल बना रहे हैं.

पराली जलाने की समस्या को समझा

अर्पित ने बताया कि वर्ष 2019 में उन्होंने हरियाणा, पंजाब और दिल्ली के किसानों से मिलना शुरू किया और पराली जलाने की समस्या के विषय को लेकर उनसे बात की और जमीनी हकीकत को जानने का प्रयास किया. तब उन्होंने यह जाना कि किसान अगली फसल के लिए खेत को तैयार करने कि लिए धान की फसल के अवशेष को खेत में ही जला दिया जाता है, जिससे कि उनके खेत में लगने वाली अगली फसल को वह समय से लगा सकें.

मशरूम उगाने से हुई शुरूआत

अर्पित बताते हैं कि इस सफर की शुरूआत उन्होंने मशरूम फार्मिंग से की थी और उन्होंने ओयस्टर मशरूम उगाया, लेकिन समय बीता तो उनकी समझ में आया कि इसकी खेती से वह केवल पराली का प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन इसके बाद भी अवशेष रह जाते हैं.  

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बायो टेक्नोलॉजी का किया अध्ययन

इसी क्रम में फिर अर्पित ने बायो टेक्नोलॉजी का अध्ययन किया और जाना कि कैसे वो पराली अवशेष को खत्म कर सकते हैं और फिर वर्ष 2021 में उन्होंने एक मशरूम कलचर बनाया जो कि पराली को खा जाता है. 

ऐसे होता है बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग प्रोडक्ट तैयार 

इस यूनिट पर अर्पित पहले पराली को चॉप करते हैं. फिर इसमें एक खास किस्म का मशरूम कल्चर और मिश्रण तैयार किया जाता है, जो कि पूरी तरह से प्राकृतिक होता है. फिर इन्हें प्लस्टिक बैग में भरकर बॉयलर में एक तापमान पर रखा जाता है, जिससे कि बैग में नमी बरकरार रहे. फिर इन बैग को लैब में रखा जाता है, जिसमें एक सीमित तापमान में इसे रखा जाता है. जब इन बैग मशरूम उगना तैयार होता है तो इनको पूरी फसल तैयार होने से पहले ही खोल लिया जाता है और इन बैग से निकलने वाले पदार्थ को सांचे में भरकर जरूरत के अनुसार बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग प्रोडक्ट तैयार किये जाते हैं. 

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थर्माकोल को रिप्लेस करने की दिशा में कर रहे हैं काम

अर्पित बताते हैं कि थर्माकोल तो प्लास्टिक से कई ज्यादा हानिकारक होता है, इसलिए उन्होंने इसको रिप्लेस करने के लिए बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग प्रोडक्ट तैयार किया है और पराली को जलाने से होने वाले प्रदूषण को रोकने की दिशा में भी एक प्रयास किया है. इसी क्रम में वो अब तक करीब 250 टन पराली को जलने से बचा चुके हैं. 

किसानों की भी हो रही है कमाई

धराक्षा इको-सॉल्यूशन कंपनी बायोडिग्रेडेबल पैकेजिग प्रोडक्ट तैयार करने के लिए किसानों से उनकी पराली  2,500 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से खरीद रही है. जिससे कि किसानों को आमदनी भी हो रही है और खेतों में जलने वाली पराली से होने वाले प्रदूषण में भी कमी आ रही है.


  

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