मक्‍के के छिलके से कप-प्‍लेट बना रहे मुजफ्फरपुर के नाज़ उजैर, सालाना 5 लाख कमाई, अब रेलवे से मिला बड़ा ऑर्डर

मक्‍के के छिलके से कप-प्‍लेट बना रहे मुजफ्फरपुर के नाज़ उजैर, सालाना 5 लाख कमाई, अब रेलवे से मिला बड़ा ऑर्डर

पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर नाज़ उजैर ने 10 साल तक प्‍लास्टिक को री-प्‍लेस करने के लिए विभ‍िन्‍न कृषि फसलों पर रिसर्च की. अब वे मक्‍का के छिलके और वेस्‍ट से कप-प्‍लेट आद‍ि बनाते हैं. वे अभी सालाना 5 लाख रुपये कमा रहे हैं, जबकि‍ अब उन्‍हें रेलवे से भी एक बड़ा ऑर्डर मिला है.

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मक्‍के के छिलके से कप-प्‍लेट बना रहे मुजफ्फरपुर के नाज़ उजैर, सालाना 5 लाख कमाई, अब रेलवे से मिला बड़ा ऑर्डरमक्‍का के छिलके से बन रहे दोने पत्‍तल

किसान मक्का के छिलके और बाल आमतौर पर फेंक देते हैं, लेकिन बिहार के मुजफ्फरपुर के रहने वाले मोहम्‍मद नाज़ उजैर इनसे कप-प्लेट, दोने-पत्‍तल जैसे प्रोडक्ट बना रहे हैं. मोहम्‍मद नाज इन कप-प्‍लेट्स को काफी कम लागत में बना रहे हैं, जिससे 5 लाख रुपये सालाना कमाई हो रही है. उनके उत्‍पाद मार्केट में मिलने वाली सिंगल यूज प्लास्टिक से बने डिस्‍पोजेबल उत्‍पादों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं. नाज़ उजैर मुजफ्फरपुर के मुरादपुर के रहने वाले हैं. उनके द्वारा बनाए गए प्रोडक्ट की सप्लाई अभी मंदिरों में प्रसाद वितरण के लिए हो रही है. नाज को रेलवे से भी 30 लाख कप प्‍लेट्स का ऑर्डर मिला है.

पांच साल मक्‍का पर किया शोध

मोहम्‍मद नाज पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर हैं, जो पिछले दस सालों से प्लास्टिक के विकल्प पर शोध कर रहे हैं. उन्‍होंने बांस, केला, पपीता आदि पौधों पर पांच साल शोध किया, फिर अगले पांच साल सिर्फ मक्के पर शोध किया. मोहम्‍मद नाज ने कहा कि मक्के के छिलके से बना प्रोडक्ट पर्यावरण के लिए लाभकारी है. प्लास्टिक के विकल्प के रूप में इसका इस्तेमाल कर कैंसर जैसे बीमारी से बचा जा सकता हैं. यह प्रोडक्ट सौ प्रतिशत स्वदेशी है. उन्‍होंने साल 2019 में इन उत्‍पादों के पेटेंट के लिए आवेदन फाइल किया. 2024 के फरवरी में उन्‍हें पेंटेट ग्रांट हो गया.

भांजे को कैंसर के कारण खोया तो बदलाव लाने की ठानी

मोहम्‍मद नाज़ ने बताया कि उनके भांजे की कैंसर के कारण मौत हो गई थी, जबकि‍ वह हर प्रकार के नशे और बुरी आदतों से दूर था. रिसर्च में पता चला कि‍ हम जो प्लास्टिक के उत्‍पादों में कुछ खाते हैं तो उससे 32 प्रकार के कैंसर होने की संभावना रहती है. IIT खड़गपुर के प्रोफेसरों की रिसर्च का हवाला देते हुए कहा कि जैसे हम पेपर कप में चाय पीते हैं तो इससे 25000 माइक्रो प्लास्टिक कण हमारे शरीर में चले जाते हैं. मोहम्‍मद नाज ने कहा कि उनका सपना था कि‍ कुछ ऐसी चीज़ों की मदद से ऐसा किया जाए जिसके जरिये प्लास्टिक के कम से कम दस प्रॉडक्ट्स को रीप्लेस किया जा सके. तभी वह अपनी मेहनत को सफ़ल मानेंगे.

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दोस्‍त की शादी में मक्‍के पर पड़ी नज़र

मोहम्‍मद नाज ने कहा, '’एक दिन मैं दोस्त की शादी में गया हुआ था तो मैंने देखा कि‍ एक कार मक्के की खेत में मक्के की बाली पर चढ़ाती हुई चली जाती है, उसी बाली पर कई और गाड़ियों ने भी चढ़ाते हुए ओवरटेक कर गई. तब मैं उस मक्के की बाली को हाथ में लिये और गौर से अध्यन किया तो मैंने पाया की मक्के का दाना तो कुछ निकल गया था पर उसके पत्ते पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, तबसे मैंने शोध चालू कर दिया और पिछले पांच सालों से मैं सिर्फ मक्के पर ही शोध कर रहा हूं और आज मैं इस स्थिति में हूं कि‍ प्लास्टिक के एक सौ प्रॉडक्ट्स को री-प्लेस कर सकता हूं.''

10 साल में 100 प्रोडक्‍ट्स बनाने का है सपना

नाज का सपना आने वाले 10 वर्षों में प्लास्टिक के 100 प्रोडक्ट्स को रीप्लेस करने का है. फ़िलहाल कुछ महीनों में कप, स्ट्रॉ, साबुन रैपर, बिस्कि‍ट रैपर, चोकोलेट रैपर , कलम जैसे प्रॉडक्ट्स पर काम चल रहा है. नाज ने बताया कि वह एक कप डेढ़ रुपये और प्‍लेट दो रुपये में बेचते हैं. वे किसानों से मक्के के छिलका एक रुपये से लेकर दो रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से खरीदते है. कीमत उनकी क्‍वालिटी पर निर्भर रहती है.

वे एक किलोग्राम छिलके-बाल से लगभग 200 कप बनाते हैं. एक कप बनाने पर मजदूरी की लागत 45 पैसे आती है. दिनभर में उनकी एक हजार रुपये की आमदनी हो जाती है. वहीं, सालाना कमाई 5 लाख रुपये तक होती है. अभी पांच लोगों में फैक्ट्री में काम कर रहे हैं, जिसमे महिला और पुरुष दोनों शामिल हैं.

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