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केले के रेशे से रोशन हुई कुशीनगर के किसान रवि की जिंदगी, पढ़िए सफलता के पीछे संघर्ष भरी कहानी

केले के रेशे से रोशन हुई कुशीनगर के किसान रवि की जिंदगी, पढ़िए सफलता के पीछे संघर्ष भरी कहानी

Success Story: रबी केले के रेशे से सामान और अन्य उत्पाद बनाने के बाबत करीब 600 किसानों को ट्रेनिंग दे चुके है. इसके अलावा अलग-अलग स्वयं सहायता समूह से जुड़ी करीब 60 से 65 महिलाएं भी उनके साथ जुड़ी हैं.

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केले की खेती करने वाले कुशीनगर के हरिहरपुर के किसान रवि प्रसाद (Photo Credit-Kisan Tak) केले की खेती करने वाले कुशीनगर के हरिहरपुर के किसान रवि प्रसाद (Photo Credit-Kisan Tak)

उत्तर प्रदेश में केले की खेती (Banana Farming) किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है. आज हम एक ऐसे सफल किसान की कहानी बताने जा रहे है, जिसका जीवन उतार चढ़ाव भरा रहा. नाम है रवि प्रसाद. वह कुशीनगर के हरिहरपुर (तमकुहीराज) के रहने वाले हैं. साल 2015 में जब वह इकोनॉमिक्स से एमए कर रहे थे तभी एक गंभीर हादसे में उनके पिता को एक पैर गंवाना पड़ा. घर का इकलौता होने के कारण इस हादसे के बाद उनकी पढ़ाई छूट गई. सामने घर की जिम्मेदारी. ऐसे में रबी को चारो ओर अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा था. रोजी-रोटी के लिए दिल्ली गए. इसी दौरान प्रगति मैदान की प्रदर्शनी में दक्षिण भारत के एक स्टॉल पर केले के रेशे से बने तमाम उत्पाद देखकर मन में आया कि यह काम तो कुशीनगर में भी संभव है. कुछ बेसिक जानकारी लेकर घर लौटे. 2017 के अंत में काम शुरू किया.

इस बीच योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक जिला, एक उत्पाद (ओडीओपी) के नाम से एक महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की. योजना के तहत केले को कुशीनगर का ओडीओपी घोषित होने से उनका हौसला बढ़ा. उन्होंने पीएमईजीपी योजना से 5 लाख रुपये को लोन लिया, और वक्त ने साथ दिया और काम चल निकला.

स्वयं सहायता समूह में काम करती हैं कई महिलाएं 

आज केले के रेशे से उनकी ही नहीं, उनसे जुड़ी करीब पांच दर्जन से अधिक महिलाओं की जिंदगी भी रोशन हो रही है. हाल ही वह अपने उत्पादों के साथ ग्रेट नोएडा में योगी सरकार द्वारा आयोजित इंटरनेशनल ट्रेड शो में भी गए थे. उनका सारा सामान बिक गया. आज न केवल वह आत्मनिर्भर हैं, बल्कि उनकी एक सामाजिक पहचान भी है. अभी अगस्त में जिले के डीएम और सीडीओ ने उनकी इकाई का दौरा किया था. उनके मुताबिक केले को कुशीनगर का (ओडीओपी) घोषित कर योगी सरकार ने इसकी खेती और इससे जुड़े बाकी कामों को नवजीवन दे दिया.

रेशे से बनाते हैं टोपी- गुलदस्ता समेत कई प्रोडक्ट

फिलहाल वह केले के रेशे से महिलाओं और पुरुषों के लिए बैग, टोपी, गुलदस्ता, पेन स्टैंड, पूजा की आसनी, योगा मैट, दरी, कैरी बैग, मोबाइल पर्स, लैपटॉप बैग, चप्पल आदि बनाते हैं. केले का कुछ रेशा वह गुजरात की कुछ फर्मों को भी निर्यात करते हैं.

15 से 20 रुपये लीटर में बिक जाता है केले का जूस

यही नहीं केले से रेशे को अलग करने के दौरान जो पानी निकलता है वह भी 15 से 20 रुपये लीटर की दर से बिक जाता है. इसके ग्राहक मछली उत्पादन करने वाले लोग हैं. इस पानी में कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन, मैग्नेशियम और बिटामिन बी-6 मिलता है. इसे जिस तालाब में मछली पाली गई है, उसमें डाल देते हैं. इससे मछलियों की बढ़वार अच्छी होती है. यही नहीं बाकी अपशिष्ट की भी कम्पोस्टिंग करके बेहतरीन जैविक खाद बनाई जा सकती है. रबी पहले बनाते भी थे. एक बार फिरइसकी तैयारी कर रहे है.

अब तक करीब 600 किसानों को दे चुके हैं ट्रेनिंग

रबी केले के रेशे से सामान और अन्य उत्पाद बनाने के बाबत करीब 600 किसानों को ट्रेनिंग दे चुके है. इसके अलावा अलग-अलग स्वयं सहायता समूह से जुड़ी करीब 60 से 65 महिलाएं भी उनके साथ जुड़ी हैं.

केले के तने से रेशे निकालने और रंगने की प्रक्रिया

रवि के मुताबिक सबसे पहले तने को बनाना ट्री कटर में डालते हैं. वह तने को कई फाड़ में कर देती है. फिर तने के अलग फाड़ को रेशा बनाने वाली मशीन में डालते हैं. इससे रेशा निकल आता है. इस दौरान जरूरत भर केले के तने से निकले रस में थोड़ा नामक डालकर गर्म कर लेते हैं. इसके बाद इस रेशे को मनचाहे रंग में रंग कर उत्पाद बनाने में प्रयोग करते हैं. रंग बिल्कुल पक्का होता है और रेशे से तैयार उत्पाद जूट के उत्पादों से करीब 30 फीसद मजबूत होते हैं.