मेंथा का नाम सुना होगा आपने. हो सकता है इस्तेमाल भी किया होगा. सीधे तौर पर इस्तेमाल न किए हों, तो दवा या सुगंधी के रूप में जरूर प्रयोग किया होगा. इसके बाद भी अगर आप मेंथा तेल का इस्तेमाल नहीं समझ पा रहे हैं तो एक बार सर्दी-खांसी की दवाई को देख लें. मेंथा इस तरह की दवाओं का अहम स्रोत हुआ करता है. दवा के अलावा कॉस्मेटिक्स जैसे कि क्रीम, फेशियल प्रोडक्ट में इसका प्रयोग खूब होता है. माउथवॉश में भी यह इस्तेमाल होता है. इसके अलावा खाने-पीने की चीजों को सुगंधित बनाने के लिए भी मेंथा तेल का उपयोग होता है. इस आधार पर समझ सकते हैं कि मेंथा का कारोबार कितना बड़ा है और उसी हिसाब से इसकी खेती-बाड़ी में भी बड़ी अहमियत है.
मेंथा यानी पिपरमिंट के क्षेत्र में भारत के किसानों ने ऐसा कमाल किया कि देश आज दुनिया के प्रमुख उत्पादकों में शामिल हो गया है. मेंथा दरअसल यूरोपीय पैधा है, लेकिन इसकी प्रधानता आज दुनिया के कई कोने में फैल गई है. यहां तक कि भारत भी कभी मेंथा का आयात करता था, मगर आज वह निर्यातकों की लिस्ट में शामिल हो गया है. इसमें भी उत्तर प्रदेश का नाम सबसे अहम है जिसने अकेले उत्पादन के मामले में चीन को पछाड़ दिया.
मेंथा की खेती गंगा के मैदानी इलाकों में प्रमुखता से होती है. इसमें यूपी, पंजाब, हरियाणा और बिहार के गंगाई इलाके प्रमुख हैं. 'सीएसआईआर' की एक रिपोर्ट बताती है कि देश में पैदा किए जाने वाले कुल मेंथा में 75 फीसद हिस्सेदारी यूपी की है, जबकि 15 फीसद मध्य प्रदेश और बिहार, 5 फीसद उत्तराखंड और बाकी बचे 5 फीसद में पंजाब और हरियाणा आते हैं. क्षेत्रफल और उत्पादन के लिहाज से देखें तो यूपी मेंथा उत्पादन में अग्रणी प्रदेश है.
पहले मेंथा को लेकर किसानों के बीच जागरुकता कम थी. लोग इसकी खेती के फायदे कम जानते थे. लिहाजा व्यापारिक लाभ के बारे में भी कम ही अवगत थे. लेकिन सरकार ने इसकी खेती पर जोर दिया और किसानों के बीच इस खेती की पहल बढ़ाई गई. हालात तेजी से सुधरे और आज भारत दुनिया के मेंथा निर्यातकों में प्रमुख देश के रूप में शुमार हो गया है. मेंथा का होने वाला निर्यात सबसे अधिक सुगंधित तेलों का होता है जो कि कुल हिस्सेदारी का लगभग 80 फीसद है. यानी 40,000 टन सुगंधित तेलों का निर्यात हो रहा है. इसके अलावा मेंथॉल क्रिस्टल और इससे जुड़े उत्पाद भी बहुतायत में शामिल हैं.
मेंथा का निर्यात बढ़ा है, तो इसके पीछे मेंथा की खेती का सबसे बड़ा रोल है. देश में आज लगभग 3,00,000 हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती की जा रही है. खास बात ये है कि इतने बड़े क्षेत्र के 95 फीसद हिस्से में सीएसआईआर के विकसित की गई मेंथा की किस्मों की खेती हो रही है. सीएसआईआर का इस क्षेत्र में व्यापक शोध हुआ है जिससे अधिक तेल उत्पादन वाली किस्में विकसित की गई हैं. इतना ही नहीं, ऐसी किस्मों का इजाद हुआ है जो कम दिनों में तैयार होती है जिससे किसान फसल की अलग-अलग वेरायटी का लाभ ले सकता है. मेंथा की खेती और निर्यात में आज तेजी आई है तो सीएसआईआर की टेक्नोलॉजी का भी बड़ा रोल है जिसने किसानों की राह आसान कर दी है.
सीएसआईआर की पहल से मेंथा की खेती और तेल उत्पादन में 'वैल्यू एडिशन' हुआ है. यानी मेंथा तेल का अलग-अलग प्रोडक्ट में कैसे फायदा ले सकते हैं. मेंथा तेल एक ही प्रोडक्ट है, लेकिन उस एक प्रोडक्ट को दवा, सुगंधी, माउथ फ्रेशनर, बेवरेज फ्लैवर आदि में इस्तेमाल कर वैल्यू एडिशन बढ़ाया जा रहा है. भारत इस काम में आज बहुत आगे निकल गया है. हालांकि यह सफर साल 2000 से शुरू हुआ है, लेकिन हाल के वर्षों में मेंथा के निर्यात में और अधिक तेजी देखी जा रही है. इसका सबसे बड़ा फायदा रोजगार में देखा जा रहा है. सीएसआईआर की रिपोर्ट कहती है कि मेंथा की खेती के चलते 648 लाख कार्य दिवस तैयार हुआ है. एमएसएमई सेक्टर में 162 लाख श्रम दिवस तैयार हुआ है. यह गिनती लगातार बढ़ती जा रही है.
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