हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिले के पच्छाद तहसील के चमोदा गांव के निवासी आशीष गौतम लोगों के लिए मिसाल पेश कर रहे हैं. आशीष इस बात का एक शानदार उदाहरण हैं कि कैसे सरकारी योजनाएं जीवन बदल सकती हैं. उन्होंने राज्य सरकार की विभिन्न कल्याणकारी पहलों का फायदा उठाते हुए, उन्होंने कृषि, बागवानी, मुर्गी पालन, मत्स्य पालन और मधुमक्खी पालन में एक सफल व्यवसाय खड़ा किया है.
आशीष ने साल 2023 में 500 वर्ग मीटर का ग्रीनहाउस स्थापित करने से अपनी शुरुआत की थी. इसके लिए उन्हें बागवानी विभाग से 8.42 लाख रुपये की सब्सिडी मिली. मार्च 2023 में, उन्होंने 2,500 लाल और पीली शिमला मिर्च के पौधे लगाए, जिससे पांच टन उपज मिली और लगभग 7 लाख रुपये की कमाई हुई. इसके साथ ही, उन्होंने उसी ग्रीनहाउस में खीरे की खेती की, जिससे उनकी आय में 2 लाख रुपये और जुड़ गए.
फ्लोरीकल्चर रिवोल्यूशन स्कीम के तहत, उन्होंने 500 लैवेंडर के पौधे लगाए. इसके तेल और अर्क की बाजार में काफी मांग रहती है और आशीष को इसका फायदा मिली. सरकारी मदद के प्रति उनके सक्रिय दृष्टिकोण ने उन्हें मुर्गी पालन की ओर भी प्रेरित किया, जहां उन्हें पशुपालन विभाग से 10 रुपये प्रति चूजे की दर से 50 चूजे मिले. अंडे और मुर्गी बेचकर उन्हें लगभग 50,000 रुपये मिले, और उन्होंने अपने मछली पालन उद्यम में पॉल्ट्री से निकलने वाले कचरे का कुशलतापूर्वक उपयोग किया.
आशीष की सफलता सिर्फ़ खेती और मुर्गी पालन तक सीमित नहीं है. उन्होंने एक्वाकल्चर में कदम रखा और दो वाटर स्टोरेज टैंक (1.5 लाख लीटर और 60,000 लीटर) बनाए. मत्स्य विभाग ने 1 रुपये प्रति बीज की दर से 5,000 मछली के बीज उपलब्ध कराए, जिससे जून-जुलाई 2024 में एक टन मछली का उत्पादन हुआ और 1 लाख रुपये की आय हुई.
मधुमक्खी पालन से भी वह अच्छा कमा रहे हैं. साल 2023 में, उन्हें 48 मधुमक्खी बक्सों के लिए 1.36 लाख रुपये की सब्सिडी मिली. 2024 तक, उन्होंने 1.5 टन शहद का उत्पादन किया, इसे ऑनलाइन और क्वागधर में शी-हाट पर बेचा, जिससे 5 लाख रुपये कमाए.
मशरूम की खेती में, उन्हें मशरूम विकास योजना के तहत शेड, जलवायु-नियंत्रित कक्ष और खाद यूनिट बनाने के लिए 8 लाख रुपये की सब्सिडी का लाभ मिला. एक साल के भीतर, उन्होंने 30 टन मशरूम का उत्पादन किया, जिससे उन्हें 30 लाख रुपये की कमाई हुई. इसके अलावा, उन्हें 1,200 वर्ग फीट के कोल्ड स्टोरेज यूनिट के लिए 2.5 लाख रुपये और स्टोरेज और पानी की आपूर्ति करने वाले बोरवेल के लिए 1.03 लाख रुपये मिले.
आशीष फलों की खेती में भी माहिर हैं. उनके बाग में 2,500 सेब के पेड़ हैं. पिछले साल, उन्होंने 200 सेब के बक्से बेचे, जिससे परवाणू बाजार में 4 लाख रुपये की कमाई हुई. उनके बाग की सुरक्षा के लिए, सरकार ने एंटी-हेल नेट के लिए 36,000 रुपये की सब्सिडी दी. उन्होंने 5,000 पौधों वाली सेब की नर्सरी भी तैयार की है और 300 रुपये प्रति पौधे की दर से पौधे बेचकर, वह सालाना 15 लाख रुपये कमाते हैं.
उनके बाग में 400 कीवी के पेड़ हैं. इससे उन्हें 20 टन कीवी की फसल मिली और उन्होंने 19 लाख रुपये की कमाई हुई. कीवी प्रमोशन स्कीम के तहत, उन्हें अपने बाग को बढ़ाने के लिए 5.5 लाख रुपये की सब्सिडी मिली. अब, उनका लक्ष्य दिसंबर तक 1 लाख कीवी के पौधे उगाना है. इस काम से उन्हें डेढ़ करोड़ तक की कमाई होने का अनुमान है.
अपनी अलग-अलग फसलों से आशीष के सालाना करीब 5 करोड़ रुपये की आमदनी कमा रहे हैं. उनकी सफलता ने न सिर्फ उन्हें आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाया है, बल्कि 10-12 स्थानीय श्रमिकों के लिए रोजगार भी पैदा किया है. ये श्रमिक हर महीने 16,000-18,000 रुपये कमा रहे हैं. आशीष युवाओं को सरकारी नौकरियों के पीछे भागने के बजाय सरकारी योजनाओं का पता लगाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today