देश के ज्यादातर किसान अभी भी पारंपरिक खेती कर अपना भरण पोषण कर रहे हैं. हालांकि, पारंपरिक खेती में फायदे भी हैं, लेकिन लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन की वजह से किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. साथ ही पारंपरिक और खेती से मिट्टी की उर्वरता शक्ति भी कम हो रही है और फसलों की उत्पादकता में कमी आ रही है. पर देश के कुछ किसान ऐसे भी हैं जिन्होंने ऐसी समस्याओं का समाधान निकाल लिया है. क्योंकि किसान अब पारंपरिक खेती को छोड़ प्राकृतिक खेती को अपना रहे हैं. प्राकृतिक खेती से न सिर्फ उपज बेहतर हो रहा है, साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ रही है.
हरियाणा के गुरुग्राम जिले के मकरौला गांव के किसान सतीश कुमार ऐसे ही एक किसान हैं, जिन्होंने पारंपरिक खेती को छोड़ प्राकृतिक खेती में अपना हाथ को आजमाया है और सफल हुए है. इन्होंने अपने 3 साल की कड़ी मेहनत और लगन से प्राकृतिक खेती कर अपना नाम प्रगतिशील किसान के लिस्ट में शामिल किया है और अपने गांव और जिले का रोल मॉडल बन कर उभरे हैं.
प्रगतिशील किसान सतीश कुमार का बचपन से ही रूक्षान खेती की और था. उन्होंने अपने पुश्तैनी खेत में पारंपरिक खेती की जिसमें उनकी लागत बढ़ती गई और आय में गिरावट आता रहा. तब उन्होंने मुनाफा बढ़ाने के लिए रास्ता ढूंढना शुरू किया. फिर उन्होंने कृषि विभाग से संपर्क किया और अपने खेत की मिट्टी और पानी की जांच कराई. किसान सतीश कुमार ने बताया कि मिट्टी और पानी की जांच की रिपोर्ट ठीक रही क्योंकि वो पहले से ही खेतों में रसायनों का कम प्रयोग करते थे. उन्होंने बताया की वो आज भी खेती में पैदावार बढ़ाने के लिए फसल चक्र को अपनाते हैं.
हरियाणा के प्रगतिशील किसान सतीश प्राकृतिक खेती को अपनी मुख्य आजीविका का आधार बनाकर आज खूब मुनाफ़ा कमा रहे हैं।
— Dept. of Agriculture & Farmers Welfare, Haryana (@Agriculturehry) April 12, 2023
पर्यावरण हितैषी कृषि से औरों के लिए प्रेरणा बने सतीश ने ऐसा क्या किया कि औरों के लिए आज वे प्रेरणा बन गये, आइए जानते हैं।https://t.co/S5fZDp5PP3 pic.twitter.com/V3lIFLp57W
फसल चक्र के हिसाब से किसान सतीश अपने खेतों में गेहूं, मूंग और ढेंचा की खेती करते हैं. जिससे मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे खरीफ सीजन में धान के फसल का अच्छा उत्पादन होता है. साथ ही सतीश कुमार ने केंचुए की खाद और जीवामृत का इस्तेमाल भी करते हैं. उन्होंने बताया कि केंचुआ खाद और जीवामृत से मिट्टी के जीवांश बढ़ने लगे और रासायनिक उर्वरकों की निर्भरता कम हो गई.
सतीश कुमार का यह सफर यहीं खत्म नहीं हुआ, वह जीवामृत से फसल में उत्पादन के बढ़ने पर प्राकृतिक खेती सीखने कृषि विज्ञान केंद्र गए. वहां उन्होंने इसकी ट्रेनिंग ली और इस पद्धति से गेहूं की तीन किस्मों की खेती की, वह किस्म सोना, बंसी और मोती गेहूं है. इस पद्धति को अपनाकर सतीश कुमार बेहतर मुनाफा कमा रहे हैं. वहीं हरियाणा कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार प्राकृतिक तरीके से उगाई गई ये देसी किस्म साधारण किस्म से तीन गुणा अधिक कीमत पर बिकती है.
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