
केंद्र सरकार ने वर्ष 2025 तक सालाना 60 लाख टन सरप्लस चीनी को इथेनॉल में बदलने का लक्ष्य रखा है. दावा है कि ऐसा करने से चीनी मिलों और किसानों दोनों की समस्या कम होगी. मिलों के पास नकदी बढ़ेगी जिससे किसानों को गन्ना बकाया का समय से भुगतान करने में मदद मिलेगी. फिलहाल, मौजूदा चीनी सीजन 2022-23 में 45 से 50 लाख टन सरप्लस चीनी को इथेनॉल में बदलने का टारगेट है. भारत में चीनी के सरप्लस स्टॉक के कारण मिलों का फंड रुकता है. इससे नकदी की स्थिति प्रभावित होती है और किसानों को समय पर पेमेंट नहीं मिल पाता. इसलिए सरकार सरप्लस चीनी को इथेनॉल में बदलने पर जोर देने लगी है.
खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन इथेनॉल आपूर्ति वर्षों (दिसंबर-नवंबर) में चीनी मिलों ने ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को इथेनॉल बेचकर 48,573 करोड़ रुपये की कमाई की है. इससे चीनी मिलों और शीरा आधारित डिस्टिलरियों को समय पर किसानों को पैसा देने में मदद मिली है.
सरकार का कहना है कि चीनी की बिक्री में 3 से 15 महीने का समय लगता है. इसकी तुलना में इथेनॉल की बिक्री से जल्दी पैसा मिलता है. इथेनॉल बेचकर चीनी मिलों के खातों में लगभग 3 सप्ताह में ही पैसा जमा हो जाता है. ऐसे में मिलों की नकदी सुधारने के लिए इथेनॉल उत्पादन अच्छा माध्यम है. इससे गन्ना किसानों का बकाया मिलने में आसानी होगी.
सामान्य चीनी मौसम में चीनी का उत्पादन लगभग 320-360 लाख टन होता है. जबकि घरेलू खपत 260 लाख टन ही है. ऐसी स्थिति की वजह से चीनी मिलों में पुराना स्टॉक इकट्ठा हो जाता है. इस सरप्लस स्टॉक के कारण फंड रुक जाता है. इससे चीनी मिलों की नकदी की स्थिति प्रभावित होती है. इसलिए सरकार मिलों से इथेनॉल बनाने को कह रही है. बता दें कि सरकार ने वर्ष 2025 तक पेट्रोल के साथ फ्यूल ग्रेड इथेनॉल के 20 प्रतिशत की ब्लेंडिंग का टारगेट सेट किया है.
मंत्रालय की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि चीनी सीजन 2018-19 में सिर्फ 3.37 लाख टन चीनी ही इथेनॉल में बदली गई थी. बाद में इस पर काफी जोर दिया गया. तब 2019-20 में 9.26 लाख टन चीनी को इथेनॉल में परिवर्तित किया गया. साल 2020-21 में यह बढ़कर 22 लाख टन तक पहुंच गया. जबकि 2021-22 में 36 लाख टन का आंकड़ा पार हो गया. सरकार की मंशा है कि सरप्लस चीनी मिलों के लिए परेशानी का सबब न बने. इसलिए मिलों को बी-हैवी शीरे, गन्ने के रस, शुगर सिरप और चीनी से इथेनॉल उत्पादन की अनुमति दी गई है.
पेट्रोल के साथ इथेनॉल ब्लेंडिंग के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार चीनी मिलों और डिस्टिलरियों को उनकी डिस्टिलेशन क्षमता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. जिसके लिए बैंकों से लोन हासिल करने में मिलों की मदद की जा रही है. जिसके लिए 6 प्रतिशत की दर से ब्याज छूट या बैंकों द्वारा लिए गए ब्याज का 50 प्रतिशत, इसमें जो भी कम हो, उसका वहन सरकार कर रही है. इतना ही नहीं, चीनी एक्सपोर्ट को आसान बनाने के लिए भी सरकार मिलों को मदद दे रही है. बफर स्टॉक के रखरखाव के लिए मिलों को मदद मिल रही है. गन्ना मूल्य बकाया का भुगतान करने के लिए भी बैंकों के जरिए मिलों को आसान लोन दिलाया जा रहा है.
केंद्र सरकार के मुताबिक चीनी सीजन 2019-20 में लगभग 59.60 लाख टन चीनी का एक्सपोर्ट हुआ था. साल 2020-21 में 70 लाख टन और 2021-22 में 109 लाख टन चीनी का एक्सपोर्ट किया गया. दावा है कि चीनी सीजन 2020-21 तक के 99 प्रतिशत और 2021-22 के 97.40 प्रतिशत गन्ना देय का भुगतान कर दिया गया है.
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