रांची, झारखंड की रहने वालीं सीमा देवी आज एक मिसाल बन चुकी हैं. आज उनकी पहचान आम महिलाओं से जरा हटकर है. हाल ही में इंडियन डेयरी एसोसिएशन ने दूध उत्पादन के लिए उन्हें सम्मानित किया है. लेकिन उनकी जिंदगी की कहानी कम रोचक नहीं है. परेशानियों के तूफान से घिरे होने के बाद भी सीमा आज भी हार मानने को तैयार नहीं है. अपनों के सपनों में अपनी मंजिल तलाशने वालीं सीमा ने डेयरी सेक्टर में एक ऐसी लकीर खींची है जिसे जल्द ही पार कर पाना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा.
सीमा की मानें तो वो एक बड़े घर की बहु बनकर आई थी, लेकिन वक्त ने ऐसी करवट बदली कि उन्हें बड़े से छोटा होने में देर नहीं लगी. जो सीमा किचिन के काम में सिर्फ हाथ बंटाती थीं वो आज भी अपने पशुओं के बाड़े में हाथों से गोबर उठाती हैं. डेयरी को ऊपर उठाने के लिए सीमा आज भी अपने ही मंत्र ‘लागत कम करो और मुनाफा बढ़ाओ’ पर काम कर रही हैं.
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सीमा देवी ने किसान तक को बताया कि परिवार की हालत बिगड़ने के बाद पशुपालन के अलावा हमारे पास कोई और रास्ता नहीं था. इसलिए बिना नस्ल देखे दो गाय खरीद ली. दो गायों का दूध बाजार में बेचना शुरू कर दिया. लेकिन गैर नस्लीय गाय ना तो दूध ज्यादा देती थीं और ना ही उनके दूध से लागत के साथ मुनाफा निकल रहा था. कुछ महीने की प्रेक्टिस के बाद हमने गायों के चारे में दाना मिलाना शुरू कर दिया. जिससे उनका दूध उत्पादन बढ़ गया.
साथ ही गायों के सभी काम अपने ही हाथ से करना शुरू किया. जब खुद से काम किया तो लागत कम हो गई. दाना खिलाने से उनका दूध बढ़ गया. जिसके चलते हमने थोड़ा-थोड़ा पैसा बचाना शुरू कर दिया. पैसा हाथ में आते ही हमने गिर, साहीवाल, जर्सी आदि नस्ल की गाय खरीदना शुरू कर दिया. आज हमारे पास 40 गाय हैं. ऐसा करने के बाद हम अपना दूध झारखंड की मेघा डेयरी को बेचने लगे. डेयरी में हर रोज 28 सौ से तीन हजार लीटर दूध निकल आता है.
सीमा देवी ने बताया कि एक बेटे-बेटी समेत चार लोगों के परिवार की जिंदगी को पटरी पर लाने के दौरान ही एक बार फिर से जिंदगी ने ऐसा झटका दिया कि हमारी आंखों के सामने ही पति को कैंसर हो गया. पति का इलाज कराने के दौरान ही पता चला कि हमे भी जानलेवा कैंसर ने जकड़ लिया है. लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी पति नहीं बचे. पति के जाते ही हम भी चारपाई पर आ गए. एक महीने तक खुद को कैंसर पीड़ित समझते रहे. इस दौरान बेटी ने डेयरी का काम संभाल लिया. लेकिन हम बेटी की जिंदगी को डेयरी में नहीं समेटना चाहते थे. हमने हिम्मत कर खुद से काम संभालना शुरू कर दिया. इसके लिए सबसे पहले हमने खुद को ये कहकर मजबूत किया कि हम कैंसर पीड़ित नहीं हैं.
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सीमा ने बताया कि पति हमेशा बातों ही बातों कहा करते थे कि एक दिन मैं अपने घर में 70 गाए बांधूगा. फिर अपने बेटे को डॉक्टर और बेटी को आईएएस अफसर बनाऊंगा. अब पति तो चले गए हैं, लेकिन मैं उनके सपने को पूरा करने की कोशिश में लगी हुई हूं. बेटी बीएचयू में पढ़ रही है और बेटा कोटा, राजस्थान में रहकर मेडिकल की तैयारी कर रहा है. साथ ही आज जिस तरह से डेयरी का काम बढ़ रहा है तो उस हिसाब से दो से तीन साल में पति के 70 गाय वाले सपने को पूरा कर लूंगी.
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