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बारांबकी के युवा किसान ने केले की खेती में अपनाई खास तकनीक, लागत 15 हजार और कमाई 1 लाख रुपये

बारांबकी के युवा किसान ने केले की खेती में अपनाई खास तकनीक, लागत 15 हजार और कमाई 1 लाख रुपये

बारांबकी जिले के ग्राम- रामनगर खास के रहने वाले किसान राज कुमार शर्मा ने बताया कि हमारे केले की पूरी सप्लाई दिल्ली और हरियाणा में होती है. वहीं जो केला थोड़ा खराब हो जाता है उसे बारांबकी के लोकल मंडी में बेच देते है.

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बारांबकी जिले में केले की खेती करने वाले 25 साल के युवा प्रगतिशिल किसान राज कुमार शर्मा (Photo-Kisan Tak) बारांबकी जिले में केले की खेती करने वाले 25 साल के युवा प्रगतिशिल किसान राज कुमार शर्मा (Photo-Kisan Tak)

देश में कृषि तेजी से बदल रहा है. किसान अब पारंपरिक फसलों को छोड़कर नगदी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं, जिसमें केले (Banana cultivation) की खेती का चलन तेजी से बढ़ रहा है. उत्तर प्रदेश के बारांबकी जिले (Barabanki News) के एक किसान केले की खेती से मोटी कमाई कर रहे हैं. जिले के ग्राम- रामनगर खास के रहने वाले किसान राज कुमार शर्मा इनमें से एक हैं, जो केले की खेती से सालाना 24 से 25 लाख रुपये तक की कमाई कर रहे हैं. इंडिया टुडे के किसान तक से बातचीत में उन्होंने बताया कि वे पिछले 4 सालों से केले की खेती कर रहे हैं और फिलहाल जी-9 वैरायटी के केले की खेती कर रहे हैं, जो 25 बीघे से अधिक जमीन पर फैला हुआ है. राज कुमार शर्मा के अनुसार, जी-9 किस्म का केला अन्य किस्मों की तुलना में अधिक मीठा होता है और ये जल्दी पक जाता है. लेकिन अब आगे महाराष्ट्र की जैन ब्रीड केले की खेती करने की सोच रहे हैं. 

एक बीघा में लगभग 15 हजार रुपये की लागत

उन्होंने बताया कि एक बीघा में लगभग 15 हजार रुपये की लागत आती है और मुनाफा एक लाख रुपये तक हो जाता है. यानी एक साल में 24 से 25 लाख रुपये की कमाई राज कुमार शर्मा कर रहे हैं. बारांबकी जिले के ग्राम- रामनगर खास के रहने वाले किसान राज कुमार शर्मा ने बताया कि हमारे केले की पूरी सप्लाई दिल्ली और हरियाणा में होती है. वहीं जो केला थोड़ा खराब हो जाता है उसे बारांबकी के लोकल मंडी में बेच देते है. 25 साल के युवा प्रगतिशील किसान राज कुमार ने कहा कि वह लखनऊ यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के बाद खेती-बाड़ी करने लगे. नई- नई तकनीक की जानकारी हासिल कर उस तकनीक का उपयोग करते है. 

गोबर से निर्मित जैविक खाद का प्रयोग

उन्होंने बताया कि केले की खेती के लिए गोबर से निर्मित जैविक खाद अमृत खाद है और मिट्टी को आज के समय में जैविक खाद की ही जरूरत है. क्योंकि जैविक खाद से मिट्टी की उर्वरक बढ़ता है, वहीं रसायन खाद के अंधाधुन उपयोग से धीरे-धीरे मिट्टी की उर्वरक को कम कर रही है. किसान राज कुमार ने बताया की जैविक खाद में किसी प्रकार का रिस्क नहीं है और न ही ज्यादा मेहनत लगता हैं, इसे सभी किसान बना सकते हैं. इसके साथ वर्मी खाद का उपयोग किया जा रहा है. वहीं सरकार के तरफ से अनुदान और जैविक खाद मिल जाता है. 

केले की फसल में मिलता है अनुदान

बारांबकी के जिला उद्यान अधिकारी महेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि जुलाई से लेकर अगस्त तक केला रोपण का बढ़िया समय माना जाता है. इसके लिए उद्यान विभाग किसानों को केले की खेती करने के लिए प्रति हेक्टेयर लागत पर 40 प्रतिशत तक अनुदान दो वर्षों में दिया जाता है. पहले साल 30,738 रुपये. वहीं, दूसरे साल 10,246 अनुदान मिलता है. पहले साल वृक्षारोपण सामग्री पर, दूसरे साल उर्वरक जैविक रासायनिक पर दिया जाता है. इस साल 90 हेक्टेयर का लक्ष्य जनपद के लिए मिला है. इसके लिए चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिसका पंजीयन ऑनलाइन भी हो रहा है. ‘प्रथम आओ प्रथम पाओ’ के आधार पर उनका चयन किया जाएगा. उन्हें समय से वृक्षारोपण का सत्यापन कराकर अनुदान की धनराशि उपलब्ध करा दी जाएगी.