पानी, मानव जाति के लिए प्रकृति का एक अनमोल वरदान है. यही वजह है कि मानव जाति अलग-अलग ग्रहों पर जाकर पानी की तलाश में जुटी है, ताकि वहां भी मानव जीवन संभव हो सके, लेकिन धरती पर जल का दोहन होने की वजह से मौजूदा वक्त में जल का स्तर लगातार कम होता जा रहा है जोकि बहुत बड़ी चिंता का विषय है. क्योंकि इसके बिना मानव जीवन असंभव है. वहीं दुनियाभर में हर साल 22 मार्च को विश्व जल दिवस (World Water Day) मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य दुनिया के सभी देशों में स्वच्छ जल को सभी लोगों तक पहुंचाने के साथ-साथ जल के संरक्षण पर भी ध्यान देना है. इसके अलावा देश में जल का दोहन रोकने और जल संरक्षण के लिए केंद्र के अलावा राज्य सरकारें भी अलग-अलग योजनाएं शुरू करने के साथ ही फसल विविधीकरण (Crop Diversification) पर ध्यान दे रही हैं. फसल विविधीकरण से लगभग 65 से 70 प्रतिशत सिंचाई जल की बचत कर सकते हैं. ऐसे में आइए आज फसल विविधीकरण के बारे में विस्तार से जानते हैं-
फसल विविधिकरण एक ऐसी विधि है, जिसमें पारंपरिक फसलों के साथ नई फसलों या अन्य फसल प्रणालियों से फसल उत्पादन को जोड़ा जाता है. इसमें एक विशेष कृषि क्षेत्र में, एक ही समय पर विभिन्न प्रकार की फसलों का कृषि उत्पादन ले सकते हैं. देश के कई राज्यों में इस विधि से किसान एक ही खेत में कम पानी और कम लागत में अलग-अलग फसलों की खेती कर सकते हैं.
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केंद्र सरकार के अलावा कई राज्य सरकारें देश में जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए तेजी से काम कर रही हैं. वहीं फसल विविधीकरण के जरिए इसके लिए जमीन तैयार की जा रही है. सरकार की यह कोशिश है कि देश के किसान न सिर्फ पारंपरिक फसलों की खेती करें, बल्कि नकदी फसलों की खेती करने के साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति को ध्यान में रखकर भी खेती करें. इसी के मद्देनजर मध्य प्रदेश सरकार फसल विविधीकरण में जैविक खेती पर सबसे अधिक ध्यान दे रही है. इसी तरह हरियाणा सरकार मेरा पानी-मेरी विरासत योजना के तहत धान की जगह दूसरी फसल लगाने वाले किसानों को सब्सिडी देती है. धान में पानी की खपत अधिक होती है. वहीं फसल विविधीकरण योजना में किसान को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा आवश्यक कृषि आदान भी दिया जा रहा है.
जो किसान पारंपरिक खेती करते हैं यानी धान और गेहूं आदि फसल की करते हैं, वो किसान फसल विविधीकरण को अपनाकर प्राकृतिक संसाधनों का बहुत कम दोहन करने के साथ ही अपनी आमदनी में बढ़ोतरी भी कर सकते हैं. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सिंधु-गंगा के मैदानी इलाकों में संभावित विकल्प के रूप में मक्का-सरसों-मूंग एवं मक्का-गेहूं-मूंग फसल प्रणाली से उत्पादन की लागत में 15 से 25 प्रतिशत की कमी एवं कुल आमदनी में 20 से 35 प्रतिशत बढ़ोतरी कर सकते हैं. फसल विविधीकरण से 65 से 70 प्रतिशत सिंचाई जल की बचत भी कर सकते हैं.
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मौजूदा वक्त में ज्यादातर किसान बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए पारंपरिक फसलों की खेती के दौरान अत्यधिक मात्रा में बीज, खाद, कीटनाशक, खरपतवारनाशक और फफूंदनाशी का प्रयोग कर रहे हैं. इससे कीट और खरपतवार में धीरे-धीरे उनके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती जा रही है. इससे फसलों के उपज पर भी प्रभाव पड़ रहा है. इसके अलावा अंधाधुंध उर्वरकों के इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरा शक्ति, जल एवं वातावरण पर भी प्रभाव पड़ रहा है. साथ ही किसानों की कृषि लागत भी बढ़ रही है. ऐसे में इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए फसल विविधिकरण की आवश्यकता है. फसल विविधिकरण के माध्यम से इन सारी समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है.
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