प्रधानमंत्री द्वारा बनाई गई एग्रीकल्चरल रिफार्म कमेटी ने किसानों के हितों के लिए एग्री कमोडिटी ट्रेडिंग करने वाले खिलाड़ियों से भी सवाल जवाब करने का फैसला किया है. इस कमेटी का लोकप्रिय नाम एमएसपी कमेटी है. जिसके गठन को साल भर से अधिक वक्त हो गया है. कमेटी ने इस दौरान न सिर्फ एमएसपी बल्कि फसल विविधीकरण और जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग पर कई बैठकें की हैं. ताकि, एक ऐसी रिपोर्ट तैयार हो सके जो व्यवहारिक हो और कृषि क्षेत्र में बदलाव लाकर किसानों के हालात ठीक करने में मददगार बने. किसानों को अच्छा दाम दिला पाए. लेकिन इस कड़ी में कमेटी ने उन वित्तीय संस्थाओं से भी सवाल-जवाब करने का फैसला किया है जो कृषि कमोडिटी या किसी न किसी तरह से कृषि क्षेत्र से जुड़े हुए हैं.
कमेटी ने इस बारे में मुंबई के नाबार्ड कॉम्प्लेक्स में 26 सितंबर को एक बैठक बुलाई है. सुबह 10 बजे से होने वाली इस विशेष बैठक में कृषि से संबंधित विभिन्न वित्तीय नियामकों जैसे नेशनल कमोडिटी और डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स), मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स), मार्केट रेगुलेटर सेबी, बीएसई, एनएसई और ई-मार्केटप्लेस एग्री-टेक कंपनियों के लोगों को बुलाया गया है. इसमें राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) भी शामिल होगा. उसके प्रतिनिधियों से भी बात होगी. किसानों के लिए इन वित्तीय नियामकों को संभवत: पहली बार किसी कमेटी ने बुलाया है.
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एनसीडीईएक्स जैसे एग्री कमोडिटी ट्रेडर्स से कमेटी यह पूछ सकती है कि ये लोग लघु और सीमांत किसानों के लिए क्या काम करते हैं. जबकि इनका बहुत बड़ा कारोबार है. सरकार छोटे किसानों को ही आगे बढ़ाने पर फोकस कर रही है. लेकिन एग्री कमोडिटी के जरिए अरबों का कारोबार करने वाले अपने तंत्र का फायदा किसानों को कैसे पहुंचाएंगे. एनसीडीईएक्स को बने दो दशक हो गए हैं. सवाल यह कि इससे आम किसान कैसे जुड़ेंगे. उन्हें वायदा बाजार का कैसे फायदा पहुंचेगा, या फिर इन प्लेटफार्म का सिर्फ कुछ ट्रेडर ही फायदा उठाते रहेंगे. अगर किसान इस पर ट्रेडिंग करते हैं तो उनका क्या स्टेटस है. उनसे दूसरे किसान कैसे सीख सकते हैं. ऐसे कारोबार में किसानों की जगह कहां है?
दावा किया जाता है कि एग्री कमोडिटी ट्रेडिंग करने वाले एनसीडीएक्स से करीब आठ लाख किसान जुड़े हुए हैं. लेकिन, उनके शेयरधारकों को भी जान लेना जरूरी है. इसमें एनएसई की सबसे ज्यादा 15 फीसदी की हिस्सेदारी है. एलआईसी के पास 11.10, नाबार्ड के पास 11.10, इफको के पास 10, ओमान-भारत संयुक्त निवेश कोष की 10, पंजाब नेशनल बैंक की 7.29, केनरा बैंक-मुंबई की 6.03 और इन्वेस्टकॉर्प प्राइवेट इक्विटी फंड-1 के 5.00 फीसदी शेयर हैं.
इसी तरह बिल्ड इंडिया कैपिटल एडवाइजर्स एलएलपी की 5, रेणुका शुगर्स लिमिटेड की 5.00 और क्रिसिल लिमिटेड की 3.70 फीसदी का शेयर है. इसमें जेपी कैपिटल सर्विसेज लिमिटेड और स्टार एग्रीवेयर हाउसिंग एंड कोलैटरल मैनेजमेंट लिमिटेड के भी शेयर हैं. बहरहाल, देखना यह कि कृषि क्षेत्र की बदौलत अरबों की कमाई करने वाले इन प्लेटफार्म के मैनेजमेंट पर किसानों हित के लिए कमेटी क्या काम कर पाएगी?
नेशनल कमोडिटी और डेरिवेटिव्स एक्सचेंज कृषि उपज का वायदा कारोबार होता है. लेकिन जनता को यह भी जानकारी होनी चाहिए कि एनसीडीएक्स में कौन-कौन लोग पार्टनर हैं. क्या उनके रहते इस कारोबार में किसानों का हित सधेगा? इसीलिए एग्रीकल्चर से संबंधित फाइनेंशियल मार्केट के रेगुलेटर सेबी को भी बुलाया गया है. एमसीएक्स पर काली मिर्च, कैस्टर बीज, कच्चा पाम ऑयल, इलायची, कपास, मेंथा ऑयल, रबर और पामोलिन आदि का कारोबार होता है. इसलिए उसे भी बुलाया गया है.
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लोकसभा चुनाव सिर पर है. उससे पहले राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं. इन सभी में किसान बड़ा मुद्दा हैं. राजनीतिक दलों के नेता एमएसपी गारंटी कानून की बात कर रहे हैं. एमएसपी कमेटी में इस पर भी मंथन हो रहा है. कमेटी के कुछ सदस्य चाहते हैं कि फ्लोर प्राइस या रिजर्व प्राइस जैसी कोई व्यवस्था हो और उसमें दूसरी फसलों को भी शामिल किया जाए. ताकि इसका फायदा सिर्फ पंजाब, हरियाणा और पश्चिम यूपी तक ही न सीमित रहे. हालांकि, किसानों का चोला ओढ़कर कमेटी में बैठे कुछ लोग चाहते हैं कि किसानों की पूरी उपज मार्केट के हवाले हो और एमएसपी जैसी व्यवस्था खत्म हो. ऐसे लोग सत्ताधारी पार्टी को चुनाव में बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं.
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