हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती करने वाले लगभग 1.5 लाख किसानों को वर्ष 2023-24 में प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना (पीके3वाई) के तहत प्रमाणित किया जाएगा. एक अध्ययन के अनुसार हिमाचल के 28 प्रतिशत किसानों ने बिना किसी प्रशिक्षण के पीय़र-टू-पीयर लर्निंग के माध्यम से अपने हुनर और दम पर प्राकृतिक कृषि तकनीको को अपनाया है. इसी वजह से इस वित्तीय वर्ष PK3Y के अंतर्गत प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों का एक जुट करना है.
कृषि सचिव राजेश कंवर ने कहा कि राज्य में कलस्टर आधारित कृषि विकास कार्यक्रम पर चर्चा के लिए कृषि विभाग के अधिकारियों की एक बैठक को संबोधित करते हुए. उन्होंने कहा कि 2023-24 में प्राकृतिक खेती करने वाले 1.5 लाख किसानों को प्रमाणित करने का प्रयास किया जाएगा
उन्होंने कहा कि मौजूदा किसानों को जोड़कर प्राकृतिक खेती के तहत उनके क्षेत्रों को बढ़ाने, कार्यशालाओं के आयोजन, क्षमता निर्माण प्रशिक्षण और एक्सपोजर यात्राओं पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि जमीनी स्तर पर परिणामों में प्रतिक्रिया और सफलता से पता चलता है कि हर कोई आश्वस्त है कि प्राकृतिक खेती तकनीकी तौर पर फायदेमंद है. हमें कृषि में पूरे लाभ के लिए अभ्यास को और आगे ले जाने की जरूरत है.
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कंवर ने विभाग के अधिकारियों से क्लस्टरों की पहचान करने, मुद्दों को प्राथमिकता देने और प्रत्येक क्लस्टर के लिए विशेष आवश्यकता के मुताबिक बजट के साथ काम करने को कहा है. साथ ही राज्य के परियोजना निदेशक, पीके3वाई नरेश ठाकुर ने कहा कि पीके3वाई ने 2022-23 में निर्धारित लक्ष्य हासिल कर लिए हैं. उन्होंने कहा कि प्राकृतिक उत्पादन के लिए पीके3वाई के तहत 51000 से अधिक किसानों को प्रमाणित किया गया है और साथ ही राज्य में प्राकृतिक खेती के मॉडल को भी मजबूत किया जाएगा.
किसानों के आय में वृद्धि और उनके कल्याण के लिए प्रदेश सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए वर्ष 2018 में ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान’ योजना की शुरुआत की थी. राज्य सरकार ने कृषि-बागवानी में रसायनों के प्रयोग को कम करने के लिए इस योजना के तहत ‘सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती’ विधि को लागू किया था. 25 करोड़ के वित्तीय प्रावधान के साथ शुरू की गई इस योजना ने किसान और बागवानों के व्यापक कल्याण और समृद्धि के लिए खेती की लागत को कम करने, आय को बढ़ाने, मानव और पर्यावरण पर रसायनिक खेती के पड़ने वाले दुष्प्रभावों से बचाने और पर्यावरण और बदलते जलवायु परिवेश के समरूप कृषि का मार्ग प्रशस्त किया है. चार साल पहले शुरू की गई ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान’ योजना के सफल परिणाम देखने को मिल रहे हैं.
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