महाराष्ट्र में महिला सशक्तिकरण के लिए शुरू की गई लड़की बहना योजना का असर दूसरे रूप में दिख रहा है. इस योजना के चलते कपास की खेती पर प्रभाव देखा जा रहा है. कपास की खेती में लगने वाली महिला मजदूरों की भारी किल्लत हो गई है और मजदूरी का खर्च भी बढ़ गया है. इससे पूरी खेती और उसकी कटाई महंगी हो गई है. वजह के बारे में बताया जा रहा है कि लड़की बहना योजना ने महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त किया है जिससे महिला मजदूर अब खेतों से दूर हो रही हैं.
महिलाएं खेती में मजदूरी का एक अहम हिस्सा हैं, लेकिन इस योजना, जिसके तहत पात्र महिलाओं को प्रति माह 1,500 रुपये की वित्तीय सहायता मिलती है, ने ग्रामीण महिलाओं को खेती के काम से दूर कर दिया है.
महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के एक कपास किसान गणेश नानोटे ने MINT से कहा, "हालांकि इस सीजन में कपास की पैदावार और क्वालिटी बेहतर है, लेकिन लोकलुभावन योजना ने पहले दौर में कपास चुनने की लागत 5 रुपये प्रति किलो से बढ़ाकर 9 रुपये प्रति किलो कर दी है."
नानोटे ने कहा, "मजदूर एक दिन में 90 किलो तक कपास की कटाई कर पाते हैं, जिससे उन्हें रोज 800 रुपये से अधिक की कमाई होती है. कपास की कटाई के अगले सीजन में लागत बढ़कर 30 रुपये प्रति किलो तक हो जाने की उम्मीद है."
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कपास की कटाई का पहला सीजन अक्टूबर में शुरू हुआ था और यह अगले साल जनवरी तक जारी रहेगा. लड़की बहना योजना के तहत जुलाई में किश्त की शुरुआत हुई, जिसमें जुलाई और अगस्त के लिए हर लाभार्थी को 3,000 रुपये की पहली किश्त दी गई.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, कपास की बुवाई पिछले साल के 120 लाख हेक्टेयर से घटकर 110 लाख हेक्टेयर रह गई है. कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CAI) के आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र में कपास की बुवाई भी 2022-23 सीजन में 42 लाख हेक्टेयर से घटकर चालू खरीफ सीजन में 40 हेक्टेयर रह गई है.
2021 में महाराष्ट्र ने 100 लाख गांठ कपास का उत्पादन किया, जबकि 2022 में उत्पादन घटकर 82 लाख गांठ रह गया. 2023 में उत्पादन थोड़ा बढ़कर 83 लाख गांठ हो गया. सीएआई के अनुमान के अनुसार 2024 में उत्पादन और घटकर 80 लाख गांठ रह जाएगा.
एक सीनियर सरकारी अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "2021 से 2023 तक महाराष्ट्र में कपास उत्पादन में गिरावट के लिए खराब मौसम की स्थिति, कीटों का प्रकोप, बढ़ती इनपुट लागत, मिट्टी की सेहत में गिरावट, बाजार में उतार-चढ़ाव, पानी की कमी और फसल की पसंद में बदलाव को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. इन सभी हालातों ने महाराष्ट्र में कपास के रकबे में कमी और कम पैदावार को जन्म दिया है."
अधिकारी ने कहा, "अगर किसानों ने मजदूरों की कमी की शिकायत की है, तो यह हमेशा के लिए न होकर कुछ दिनों की समस्या हो सकती है. हम जांच करेंगे कि क्या यह लड़की बहना योजना या अन्य कारणों से यह समस्या सामने आई है. हम इस मामले पर कड़ी नजर रखेंगे."
चेन्नई स्थित मद्रास स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के निदेशक और जाने-माने अर्थशास्त्री एन.आर. भानुमूर्ति ने कहा, "इससे मजदूरों के बार्गेनिंग पावर में सुधार हो सकता है. हालांकि, कटाई की लागत में कुछ वृद्धि हो सकती है, लेकिन यह उस सीमा तक नहीं हो सकती है, जिसका किसान अनुमान लगा रहे हैं. इसके अलावा, इन बदलावों के लिए योजना को दोष नहीं दिया जाना चाहिए."
25 अक्टूबर तक महाराष्ट्र से मंडियों में कपास की आवक 162,000 गांठ (1 गांठ 170 किलोग्राम के बराबर होती है) थी, जबकि गुजरात से 319,800 गांठों की आवक रही. दोनों राज्यों में कपास की कटाई 1 अक्टूबर से शुरू हुई.
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कुल कपास उत्पादन में महाराष्ट्र की हिस्सेदारी में उतार-चढ़ाव आया है. 2021 में, महाराष्ट्र ने भारत के कुल कपास उत्पादन में लगभग 28.7 परसेंट का योगदान दिया, 2022 में यह हिस्सेदारी घटकर 26.4 परसेंट रह गई और 2023 में और घटकर लगभग 24.7 परसेंट रह गई.
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