Sericulture : रेशमी धागों ने छत्तीसगढ़ की महिलाओं के जीवन में बुनी खुशियां, समूह में कर रही महिलाएं रेशम की खेती

Sericulture : रेशमी धागों ने छत्तीसगढ़ की महिलाओं के जीवन में बुनी खुशियां, समूह में कर रही महिलाएं रेशम की खेती

रेशम की खेती देश के सीमित इलाके में होती है. रेशम से बनने वाला कोसा का कपड़ा जब ऊंचे दामों पर बिकता है, तो रेशम उपजाने वाले किसानों को भी अपनी आय बढ़ाने का मौका मिलता है. छत्तीसगढ़ की महिलाओं ने Sericulture को मुनाफे की खेती के रूप में अपनाकर रेशमी धागों से जीवन में खुशियों को बुनना शुरू कर दिया है.

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Sericulture : रेशमी धागों ने छत्तीसगढ़ की महिलाओं के जीवन में बुनी खुशियां, समूह में कर रही महिलाएं रेशम की खेतीछत्तीसगढ़ में रेशम विभाग महिलाओं को रेशम पालन का प्रश‍िक्षण देता है

छत्तीसगढ़ में महिलाओं ने समूह बनाकर रेशम की खेती यानी Silk Farming शुरू कर दी है. इस काम में राज्य सरकार इन महिलाओं की मददगार बनी है. सरकार के सहयोग से छत्तीसगढ़ की ग्रामीण महिलाएं समूह बनाकर कोसा कृमि पालन और कोसा उत्पादन (Worm rearing and cocoon production) कर रही हैं. इससे महिलाएं न केवल स्वावलंबी बनी हैं, बल्कि अपनी आय में इजाफा करके अपने परिवार का भी सहारा बन रही हैं.

रेशम विभाग कर रहा मदद

छत्तीसगढ़ में सरकार ने ग्रामीण महिलाओं को खेती बाड़ी से जुड़े कामों को स्वरोजगार का माध्यम बनाया है. इसके लिए महिलाओं के Self help groups यानी स्वयं सहायता समूह गठित कर सरकार की वित्तीय मदद से खाद, बीज और रेशम उत्पादन सहित अन्य काम कर रही हैं. इससे कुटीर उद्योगों के जरिए महिलाएं स्वावलंबन की डगर पर आगे बढ़ रही है.

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संतोषी साहू ने बताया कि पहले वह अपने खेतों में खरीफ की फसल लेने के बाद साल भर मजदूरी की तलाश में रहती थी, लेकिन अब कोसा फल उत्पादन कर रेशम की खेती से जुड़ने के बाद उनके जीवन में खासा बदलाव आया है. समूह की महिलाओं ने रेशम की खेती से जोड़ने की योजना शुरू करने के लिए मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के प्रति आभार जताते हुए कहा कि इस बदलाव से जुड़ी समूह की महिलाओं की आंखों में सफलता की खुशी साफ देखी जा सकती है.

सभी के अलग अलग काम

समूह की सदस्य निशा साहू ने बताया कि रेशम विभाग की इस योजना के तहत महिलाओं को रेशम की खेती से जुड़े अलग अलग काम करने को दिए गए हैं. इसके लिए सभी की जिम्मेदारी तय करते हुए कोसा के कृमि पालन से लेकर कोसा फल का उत्पादन करने, कोसा का संग्रह करने और रेशम का धागा बुनने तक, सभी काम किए जाते हैं.

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साहू ने बताया कि इस काम से जुड़ कर समूह की महिलाओं ने 3 साल में लगभग 3 लाख रुपये की अतिरिक्त आमदनी अर्जित की है. इसमें विभाग की योजना के अलावा मनरेगा के अंतर्गत भी 6 लाख 66 हजार रुपये की लागत से 10 हेक्टेयर में 41 हजार साजा और अर्जुन के पौधे रोपे गए हैं. वर्तमान में पौधे लगभग 6 से 8 फीट के हरे भरे पेड़ बन चुके हैं.

इनसे समूह की महिलाएं प्रति वर्ष 1 लाख रुपये तक की आमदनी कर लेती है. रेशम विभाग द्वारा महिलाओं से कृमि पालन और कोसा फल उत्पादन का कार्य करवाया जा रहा है. इससे पहले विभाग की ओर से इस समूह की महिलाओं को रेशम उत्पादन का प्रशिक्षण भी दिया गया. प्रशिक्षण के बाद अब समूह की महिलाएं पूरी तरह से इस काम में दक्ष हो गई है. साथ ही आसपास के गांवों में भी इसी तरह से महिलाओं के समूहों को प्रश‍िक्ष‍ित कर रेशम की खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.

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