छत्तीसगढ़ सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए उन्हें खेती करते हुए गांव में ही उद्योग लगाने की ओर प्रोत्साहित किया है. किसानों को गांव में उद्योग लगाने के लिए वित्तीय एवं तकनीकी मदद करने के मकसद से राज्य सरकार ने रीपा योजना शुरू की है. इसके तहत कृषक उत्पादक समूहों एवं महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को उद्योग लगाने में हर प्रकार की मदद की जाती है. रीपा योजना की सहायता से महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों की Success Stories राज्य के तमाम इलाकों से सामने आ रही हैं. इनमें मिट्टी की मूर्तियां बनाने के सिल्क धागा बनाने के सफल उद्योग संचालन की कहानियां शामिल हैं. छत्तीसगढ़ सरकार का दावा है कि रीपा योजना की मदद से महिला स्व सहायता समूहों ने अपने हुनर और मेहनत से एक नई पहचान बनाने में सफलता हासिल की है. इनमें LED Bulb बनाने, खेत की फेंसिंग के लिए तार जाली बनाने, बिजली घर से निकलने वाली Fly ash से ईंट बनाने, गोबर से पेंट बनाने और तमाम तरह की खाद्य सामग्री बनाने की औद्योगिक इकाईयां गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं.
हाल ही में रक्षाबंधन के अवसर पर गांव के महिला समूह ने कम कीमत पर बेहद आकर्षक राखियां बनाकर अपने हुनर की छाप छोड़ी थी. अब गणेश महोत्सव के आगामी पर्व से पहले गांव की महिलाओं ने आकर्षक गणेश प्रतिमायें बनाकर हर पूजा पंडाल तक अपनी पहुंच बनाने का उपक्रम शुरू कर दिया है.
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इन महिलाओं के माटी कला के हुनर को रीपा योजना ने संसाधन और अवसर मुहैया कराकर इनके सपनों की उड़ान को मंजिल तक पहुंचाया है. समूह की अध्यक्ष नीरा निषाद ने बताया कि उनके समूह ने अब तक 500 गणेश मूर्तियां बना ली हैं. इसकी पहली खेप बाजार में पहुंच गई है.
बाजार से बेहतर प्रतिक्रिया मिलने के आधार पर उन्होंने भरोसा जताया कि इन प्रतिमाओं की बिक्री से उनके सूमह को कम से कम 1 लाख रुपये की आय हो जाएगी. उन्होंने बताया कि समूह के पास विभिन्न आकार की 200 रुपये से लेकर 4000 रुपये तक की गणेश प्रतिमाएं उपलब्ध हैं. इससे उनकी आय में इजाफा होना तय है.
निषाद ने बताया कि माटी कला के मार्फत उनका समूह गणेश प्रतिमाएं बनाने से पहले मूर्तियां, खिलौने और घरेलू सजावट के तमाम अन्य सामान बना रहा है. इससे उनके समूह की आय लगातार बढ़ रही है. अब उनके समूह को 3 लाख रुपये मासिक तक औसत आय होने लगी है.
सरगुजा (अंबिकापुर) जिले में लखनपुर ब्लॉक के पूहपुत्र गांव की महिलाओं के समूह ने रीपा योजना के तहत सिल्क धागे का उद्योग अपने गांव में स्थापित किया है. इस समूह द्वारा तसर सिल्क का धागा, इतनी उम्दा क्वालिटी का है कि इसकी खरीद राज्य सरकार का सिल्क विभाग भी इनसे करता है. इसलिए अब इस सूमह को धागा बिकने की ज्यादा चिंता नहीं करनी पड़ती है.
समूह की सदस्य मीनी रजवाडे ने बताया कि उनके समूह में 20 महिलाएं कार्श्यरत हैं. रीपा योजना के तहत समूह ने सिल्क धागा बनाने की यूनिट लगाने के लिए वित्तीय एवं तकनीक सहयोग लिया. इसके पहले रीपा के तहत ही समूह की सभी महिलाओं को इस उद्योग से जुड़ी तकनीकी जानकारियां देने के लिए प्रशिक्षण मिला. इसके बाद सिल्क विभाग से धागा बनाने के लिए कच्चा माल प्राप्त करके समूह ने यह उद्योग शुरू किया.
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रजवाडे ने बताया पहले दो महीनों में उनके समूह ने 2 किग्रा तसर सिल्क धागा बनाया. इससे उन्हें 11 हजार रुपये की पहली आय हुई. उन्होंने बताया कि सिल्क धागा यूनिट लगाने में उन्हें सबसे कड़ी मदद विभाग से मिली, जिसके तहत उन्हें कच्चे माल की खरीद और अपने उत्पाद की बिक्री के लिए बाजार नहीं जाना पड़ता है.
उन्होंने कहा कि इसके लिए विभाग द्वारा ही कच्चे माल के रूप में उन्हें सिल्क ककून मिल जाता है और इससे बना धागा भी विभाग द्वारा खरीद लिया जाता है. उनके उत्पाद की बिक्री का नियमित भुगतान होने से बिना किसी बाधा के समूह की आय हो रही है.
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