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झारखंड: कभी नक्सली हिंसा के लिए जाना जाता था यह जिला, आज मिलेट क्रांति में हुआ बड़ा नाम

झारखंड: कभी नक्सली हिंसा के लिए जाना जाता था यह जिला, आज मिलेट क्रांति में हुआ बड़ा नाम

झारखंड का गुमला जिला कभी नक्सली हिंसा और गरीबी के लिए जाना जाता था. लेकिन आज तस्वीर बदल गई है और इसके पीछे वजह है मिलेट क्रांति. मोटे अनाजों ने यहां के लोगों की गरीबी दूर करने में बड़ी मदद की है. सालभर में यह जिला पूर्वी भारत का रागी कैपिटल बन जाएगा.

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मिलेट ने बदली गुमला के लोगों की तकदीर मिलेट ने बदली गुमला के लोगों की तकदीर

झारखंड का गुमला जिला अचानक सुर्खियों में आ गया है. आप सोच रहे होंगे कि गुमला में अचानक ऐसा क्या हुआ जो सुर्खियां बन गईं. तो ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जो गुमला पहले नक्सली हिंसा और गरीबी के लिए जाना जाता था. वह जिला आज मिलेट क्रांति के लिए मशहूर हो रहा है. यहां ऐसी मिलेट क्रांति चल रही है जो गरीबी दूर करने के साथ लोगों के कुपोषण की समस्या भी खत्म करेगी. दरअसल, गुमला में आज मोटे अनाजों से ऐसे-ऐसे खाने के सामान (स्नैक्स) बनाए जा रहे हैं जो लोगों की जिंदगी बदल रही है. इसके लिए गुमला जिले में नए-नए तरह की एग्रो इंडस्ट्री भी पनप रही है.

इस पूरी कवायद के पीछे गुमला के एक युवा अधिकारी को रोलमॉडल बताया जा रहा है जिनका नाम है सुशांत गौरव. इस अधिकारी का कहना है कि वे गुमला जिले को पूर्वी भारत का रागी कैपिटल बनाना चाहते हैं. झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 100 किमी दूर गुमला में मिशन मोड में काम करने वाले सुशांत गौरव को 'प्राइम मिनिस्टर अवॉर्ड्स फॉर एक्सीलेंस' के लिए भी चुना जा चुका है. प्रधानमंत्री का यह सम्मान उन्हें प्रशासनिक कार्यों के लिए दिया गया है. यह सम्मान उन अधिकारियों को दिया जाता है जो अपने काम में कोई रिकॉर्ड हासिल करते हैं. 

गुमला की बदली तस्वीर

आज गुमला की जो बदली हुई तस्वीर दिख रही है, पहले ऐसी नहीं थी. पहले गुमला का गुजर बसर केवल वर्षा आधारित खेती से चलती थी. उसमें भी केवल धान की खेती होती थी. लेकिन बाद में हालात बदल गए, खासकर तब से जब यहां रागी की खेती शुरू हो गई. गुमला के डिप्टी कमिश्नर PTI को दिए एक खास इंटरव्यू में कहते हैं, रागी की खेती के लिए नेशनल सीड कॉरपोरेशन से उच्च क्वालिटी के रागी के बीज खरीदे गए और किसानों में बांटे गए.

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गौरव कहते हैं, शुरू में 1600 एकड़ में रागी की खेती हुई जिसे बढ़ाकर 3600 एकड़ कर दिया गया. इसी के साथ गुमला में रागी का कुल उत्पादन बढ़कर 300 फीसद की तेजी पा गया. इस सक्सेस स्टोरी के पीछे एक महिला स्वयं सहायता समूह का नाम सामने आया जिसका नाम है सखी मंडल समूह. यह वही समूह है जिसने रागी के हाई क्वालिटी बीज खरीदे और गुमला के अलग-अलग इलाकों में इसकी खेती शुरू की.

इस अधिकारी ने किया कमाल

गौरव बताते हैं, खेती में तेजी आने के बाद एक रागी प्रोसेसिंग सेंटर भी खोला गया जो झारखंड में अपनी तरह का पहला सेंटर है. आज इस सेंटर में रागी के लड्डू, रागी भुजिया, रागी नमकीन और आटा बनाया जा रहा है. इससे लोगों के लिए रोजगार तो बढ़ा ही, गुमला जैसे गरीब जिले में कुपोषण और एनीमिया से जंग लड़ने में मदद मिली. यही वजह है कि सुशांत गौरव को शुक्रवार को दिल्ली में प्रधानमंत्री एक्सीलेंस अवॉर्ड से नवाजा गया. प्रधानमंत्री ने जिन 16 अधिकारियों को सम्मानित किया, उनमें एक गुमला के डिप्टी कमिश्नर सुशांत गौरव भी शामिल हैं. यह पहली बार है जब झारखंड के किसी जिला को पहली बार यह एक्सीलेंस अवॉर्ड मिला है.

सुशांत गौरव ने बताया कि रागी का सक्सेस स्टोरी ये है कि इसके उत्पादन, खरीद और प्रोसेसिंग ने लोगों के बीच बड़ी जागरुकता फैलाई है. इसकी वजह से अधिक से अधिक लोग रागी की खेती में शामिल हो रहे हैं. आज 26000 एकड़ में रागी की खेती हो रही है जो कि चावल के रकबे से 10 गुना अधिक है. अप्रैल महीने के अंत तक रागी की खेती बढ़कर 30,000 एकड़ तक पहुंच जाएगी.

रागी कैपिटल बनेगा गुमला

गौरव ने कहा, आज गुमला के किसान रागी उगाने के लिए नए-नए प्रस्ताव लेकर आ रहे हैं. लोगों की सोच में यह तब्दीली महज दो साल का नतीजा है. इसे देखते हुए रागी को एक साल के भीतर पूर्वी भारत का रागी कैपिटल बनाने का प्रयास है. रागी की इस खेती का एक और खास पहलू है. इसने गुमला में महिला सशक्तीकरण को भी अंजाम दिया है क्योंकि रागी प्रोसेसिंग सेंटर को केवल महिलाएं चला रही हैं. इन प्रोसेसिंग सेंटर्स में हर दिन एक टन रागी का आटा, 300 पैकेट रागी लड्डू और 200 पैकेट रागी भुजिया तैयार हो रहा है. इसके ब्रांड का नाम दिया गया है जोहार रागी.

कुपोषण से लड़ रहा गुमला का रागी

अब ये भी जान लें कि इस मिलेट क्रांति ने गुमला में कुपोषण और एनीमिया को दूर करने में कैसे मदद की है. दरअसल, गुमला के स्कूलों में मध्याह्न भोजन में साग सब्जियों के साथ कई पोषक आहार दिए जाते हैं. इसके लिए 52 तरह के खाद्य सामानों को चिन्हित किया गया है जो बच्चों को दिया जाता है. इसी में मोरिंगा पावडर और करी पत्ता भी है. इसी के साथ बच्चों को रागी के लड्डू भी खिलाए जा रहे हैं ताकि बचपन से ही उनकी कुपोषण की समस्या को दूर किया जा सके. इस पूरे काम में डिप्टी कमिश्नर सुशांत गौरव का सबसे बड़ा रोल है.

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झारखंड की यह सक्सेस स्टोरी इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि भारत की अगुआई में अभी पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स ईयर चल रहा है जिसे संयुक्त राष्ट्र ने घोषित किया है. भारत ने इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र में भेजा था जिसे 72 देशों का समर्थन मिला. आज मिलेट की यह क्रांति देश-दुनिया के साथ झारखंड के नक्सल प्रभावित और गरीबी झेल रहे गुमला में भी नई रोशनी पैदा कर दी है. दुनिया के कई देश आज मोटे अनाजों में ज्वार, बाजरा, रागी, कुटकी, ककुन, चीना, सावा और कोदों की खेती कर रहे हैं.